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Sunday, August 21, 2016

રામ ચરિત માનસમાં સહજ શબ્દ વપરાયો હોય તેવી પંક્તિઓ


1.     पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया।।7।।

2.     धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई॥

3.     सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥14 क॥

4.     बरनत बरन प्रीति बिलगाती। ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती॥2

5.     कीन्ह कपटु मैं संभु सन नारि सहज जड़ अग्य॥57 क॥


6.     संकर सहज सरूपु सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा॥4

7.     सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा॥1


8.     सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी॥1

9.     संभु सहज समरथ भगवाना। एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना॥

10. जौं न मिलिहि बरु गिरिजहि जोगू। गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू॥

11. सासति करि पुनि करहिं पसाऊ। नाथ प्रभुन्ह कर सहज सुभाऊ॥

12. तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ॥

13. निज कर डासि नागरिपु छाला। बैठे सहजहिं संभु कृपाला॥

14. प्रस्न उमा कै सहज सुहाई। छल बिहीन सुनि सिव मन भाई॥3

15. उमा प्रस्न तव सहज सुहाई। सुखद संतसंमत मोहि भाई॥3

16. सहज प्रकासरूप भगवाना। नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना॥3

17. अब मोहि आपनि किंकरि जानी। जदपि सहज जड़ नारि अयानी॥2

18. हियँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान।

19. सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी॥2

20. सहज प्रीति भूपति कै देखी। आपु बिषय बिस्वास बिसेषी॥3

21. देखि तात तव सहज सुधाई। प्रीति प्रतीति नीति निपुनाई॥

22. सुंदर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी॥3

23. सेन बिलोकि सहज अभिमानी। बोला बचन क्रोध मद सानी॥2

24. जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई॥1

25. बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाईं। सहज सिंगार किएँ उठि धाईं॥

26. जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥

27. सहज बिरागरूप मनु मोरा। थकित होत जिमि चंद चकोरा॥

28. सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू। ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू॥2

29. निरखि सहज सुंदर दोउ भाई। होहिं सुखी लोचन फल पाई॥

30. जासु बिलोकि अलौकिक सोभा। सहज पुनीत मोर मनु छोभा॥

31. रघुबंसिन्ह कर सहज सुभाऊ। मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ॥

32. मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।

33. बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने। होइ सुचि सहज पुनीत नहाने॥

34. जोगिन्ह परम तत्वमय भासा। सांत सुद्ध सम सहज प्रकासा॥2

35. सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥

36. ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ। ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ॥4

37. सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी॥

38. भृकुटी कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते॥3

39. सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही। नीचु मीचु सम देख न मोही॥4

40. सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना। बालक बचनु करिअ नहिं काना॥1

41. चौकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाईं॥4

42. सोहति बनिता बृंद महुँ सहज सुहावनि सीय।

43. रही न लाज प्रीति उर छाई। सहज सनेहु बरनि किमि जाई॥1

44. जनु उछाह सब सहज सुहाए। तनु धरि धरि दसरथ गृहँ छाए॥

45. छुहे पुरट घट सहज सुहाए। मदन सकुन जनु नीड़ बनाए॥3

46. चारि सिंघासन सहज सुहाए। जनु मनोज निज हाथ बनाए॥

47. भूप बचन सुनि सहज सुहाए। जरित कनक मनि पलँग डसाए॥

48. कीन्हि सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ।

49. मुनि  प्रसन्न  लखि  सहज  सनेहू।  कहेउ  नरेस  रजायसु  देहू॥4

50. कौसल्या  सम  सब  महतारी।  रामहि  सहज  सुभायँ  पिआरी॥

51. मन  मुसुकाइ  भानुकुल  भानू।  रामु  सहज  आनंद  निधानू॥

52. सहज  सकल  रघुबर  बचन  कुमति  कुटिल  करि  जान।

53. करहु  राम  पर  सहज  सनेहू।  केहिं  अपराध  आजु  बनु  देहू॥3

54. सहज  सुहृद  गुर  स्वामि  सिख  जो  न  करइ  सिर  मानि।

55. धीरजु  धरेउ  कुअवसर  जानी।  सहज  सुहृद  बोली  मृदु  बानी॥

56. सकल  सुकृत  कर  बड़  फलु  एहू।  राम  सीय  पद  सहज  सनेहू॥2

57. सहज  सनेह  बिबस  रघुराई।  पूँछी  कुसल  निकट  बैठाई॥2

58. सहज  सनेह  राम  लखि  तासू।  संग  लीन्ह  गुह  हृदयँ  हुलासू॥

59. अब  करि  कृपा  देहु  बर  एहू।  निज  पद  सरसिज  सहज  सनेहू॥4

60. राजकुअँर  दोउ  सहज  सलोने।  इन्ह  तें  लही  दुति  मरकत  सोने॥4

61. सहज  सुभाय  सुभग  तन  गोरे।  नामु  लखनु  लघु  देवर  मोरे॥
62. एक  कहहिं  ए  सहज  सुहाए।  आपु  प्रगट  भए  बिधि  न  बनाए॥1

63. सहज  सरल  सुनि  रघुबर  बानी।  साधु  साधु  बोले  मुनि  ग्यानी॥

64. जाहि  न  चाहिअ  कबहुँ  कछु  तुम्ह  सन  सहज  सनेहु।

65. तुलसी  सराहत  सकल  सादर  सीवँ  सहज  सनेह  की॥

66. जोरि  पानि  बर  मागउँ  एहू।  सीय  राम  पद  सहज  सनेहू॥4

67. रामसखाँ  तेहि  समय  देखावा।  सैल  सिरोमनि  सहज  सुहावा॥

68. प्रभु  पद  बंदि  सीस  रज  राखी।  बोले  सत्य  सहज  बलु  भाषी॥3

69. गोपद  जल  बूड़हिं  घटजोनी।  सहज  छमा  बरु  छाड़ै  छोनी॥1

70. निरखि  सिद्ध  साधक  अनुरागे।  सहज  सनेहु  सराहन  लागे॥

71. सहज  सुभायँ  समाज  दुहु  राम  चरन  अनुरागु॥280

72. देखेउँ  पाय  सुमंगल  मूला।  जानेउँ  स्वामि  सहज  अनुकूला।

73. सहज  सनेहँ  स्वामि  सेवकाई।  स्वारथ  छल  फल  चारि  बिहाई॥

74. सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ।

75. मम दरसन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज सरूपा॥

76. सुनहु उदार सहज रघुनायक। सुंदर अगम सुगम बर दायक॥

77. जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई॥

78. गिरि त्रिकूट ऊपर बस लंका। तहँ रह रावन सहज असंका॥

79. सहज बानि सेवक सुखदायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥

80. पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥

81. सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4

82. गर्जहिं तर्जहिं सहज असंका। मानहुँ ग्रसन चहत हहिं लंका॥4

83. सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम।

84. सहज भीरु कर बचन दृढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई॥

85. सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥1

86. गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1

87. सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा अब प्रसाद तोरें॥

88. सहज असंक लंकपति सभाँ गयउ मद अंध॥16 क॥

89. प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥1

90. लाजवंत तव सहज सुभाऊ। निज मुख निज गुन कहसि न काऊ॥3

91. सहज भीम पुनि बिनु श्रुति नासा। देखत कपि दल उपजी त्रासा॥5

92. तुम्ह समरूप ब्रह्म अबिनासी। सदा एकरस सहज उदासी॥

93. खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई।।1।।

94. सुनहु राम कर सहज सुभाऊ। जन अभिमान न राखहिं काऊ।।

95. सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस बरदाना।।1।।

96. कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु।

97. पुरुष प्रताप प्रबल सब भाँती। अबला अबल सहज जड़ जाती।।8।।

98. ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी।।1।।

99. संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु।।

100.    पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया।।7।।




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