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Wednesday, May 22, 2019

માનસ કબંધ


રામ કથા

માનસ કબંધ

ડુંગરપુર, રાજસ્થાન

શનિવાર, તારીખ ૧૮/૦૫/૨૦૧૯ થી રવિવાર, તારીખ ૨૬/૦૫/૨૦૧૯

મુખ્ય પંક્તિઓ

आवत पंथ कबंध निपाता।

तेहिं सब कही साप कै बाता॥

ताहि देइ गति राम उदारा।

सबरी कें आश्रम पगु धारा॥


શનિવાર, ૨૦/૦૪/૨૦૧૯
संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन॥
आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता॥3
वह सघन वन लताओं और वृक्षों से भरा है। उसमें बहुत से पक्षी, मृग, हाथी और सिंह रहते हैं। श्री रामजी ने रास्ते में आते हुए कबंध राक्षस को मार डाला। उसने अपने शाप की सारी बात कही॥3


शबरी पर कृपा, नवधा भक्ति उपदेश और पम्पासर की ओर प्रस्थान
ताहि देइ गति राम उदारा। सबरी कें आश्रम पगु धारा॥
सबरी देखि राम गृहँ आए। मुनि के बचन समुझि जियँ भाए॥3
भावार्थ:- उदार श्री रामजी उसे गति देकर शबरीजी के आश्रम में पधारे। शबरीजी ने श्री रामचंद्रजी को घर में आए देखा, तब मुनि मतंगजी के वचनों को याद करके उनका मन प्रसन्न हो गया॥3


Sunday, May 19, 2019

માનસ હનુમાના


રામ કથા

માનસ હનુમાના

શનિવાર, એપ્રિલ ૨૦, ૨૦૧૯ થી રવિવાર, એપ્રિલ ૨૮, ૨૦૧૯

Rwanda, Kigali

મુખ્ય પંક્તિઓ

महाबीर बिनवउँ हनुमाना।

राम जासु जस आप बखाना॥

मारुत सुत मैं कपि हनूमाना।

नामु मोर सुनु कृपानिधाना।।








શનિવાર, ૨૦/૦૪/૨૦૧૯


रिपुसूदन पद कमल नमामी। सूर सुसील भरत अनुगामी॥
मैं श्री शत्रुघ्नजी के चरणकमलों को प्रणाम करता हूँ, जो बड़े वीर, सुशील और श्री भरतजी के पीछे चलने वाले हैं। मैं महावीर श्री हनुमानजी की विनती करता हूँ, जिनके यश का श्री रामचन्द्रजी ने स्वयं (अपने श्रीमुख से) वर्णन किया है॥5॥

को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए।।

[भरतजीने पूछा-] हे तात ! तुम कौन हो ? और कहाँ से आये हो ? [जो] तुमने मुझको [ये] परम प्रिय (अत्यन्त आनन्द देने वाले वचन सुनाये [हनुमान् जी ने कहा-] हे कृपानिधान ! सुनिये; मैं पवन का पुत्र और जाति का वानर हूँ; मेरा नाम हनुमान् है।।4।।


तेहि  अवसर  एक  तापसु  आवा।  तेजपुंज  लघुबयस  सुहावा॥
कबि  अलखित  गति  बेषु  बिरागी।  मन  क्रम  बचन  राम  अनुरागी॥4॥
उसी  अवसर  पर  वहाँ  एक  तपस्वी  आया,  जो  तेज  का  पुंज,  छोटी  अवस्था  का  और  सुंदर  था।  उसकी  गति  कवि  नहीं  जानते  (अथवा  वह  कवि  था  जो  अपना  परिचय  नहीं  देना  चाहता)।  वह  वैरागी  के  वेष  में  था  और  मन,  वचन  तथा  कर्म  से  श्री  रामचन्द्रजी  का  प्रेमी  था॥4॥