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Saturday, July 22, 2023

માનસ નવસો (માનસ દ્વાદશ જ્યોતિર્લિંગ) - 900

 

રામ કથા - 900

માનસ નવસો (માનસ દ્વાદશ જ્યોતિર્લિંગ)

શનિવાર, તારીખ 22/07/2023  થી મંગળવાર, તારીખ 07/08/2023

 

Date

 

 

1

22/07/2023

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

उत्तराखंड

2

24/07/2023

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

उत्तर प्रदेश

3

25/07/2023

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

झारखंड

4

27/07/2023

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

आन्ध्रप्रदेश

5

29/07/2023

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग

तामिलनाडु

6

31/07/2023

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र

7

01/08/2023

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र

8

02/08/2023

त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र

9

03/08/2023

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

मध्य प्रदेश

10

04/08/203

ओंमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

मध्य प्रदेश

11

05/08/2023

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

मध्य प्रदेश

12

07/08/2023

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

गुजरात

 

मुख्य पंक्ति

श्री गुर पद नख मनि गन जोती।

सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥

लिंग थापि बिधिवत करि पूजा।

सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥

 

 

1

Saturday, 22/07/2023

 

श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥

 

श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥3॥

 

सुनि कपीस बहु दूत पठाए। मुनिबर सकल बोलि लै आए॥

लिंग थापि बिधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥3॥

 

श्री रामजी के वचन सुनकर वानरराज सुग्रीव ने बहुत से दूत भेजे, जो सब श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर ले आए। शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया (फिर भगवान बोले-) शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है॥3॥

 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेद स्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्।।

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसारपारं नतोऽहम्।।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारूगंगा, लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा।।

समग्र हिमालय की भूमि तपो भूमि हैं, साधना भूमि, भजन भूमि, प्रेम भूमि हैं।

तीन नाथ हैं – (१) केदारनाथ जो सत्य हैं, (२) बद्रीनाथ जो नरनारायण की प्रीति हैं, जो प्रेम हैं, (३) पशुपतिनाथ जो करुणा हैं। यह तीन नाथ हमें अनाथ नहीं होने देता हैं।

केदारनाथ की ज्योति के साथ नरनारायण जुडे हुए हैं।

नरनारायण अवतार हैं, अखंड जोडी हैं।

 

नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता॥

भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन॥3॥

ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुंदर भाई हैं, ये जगत का पालन और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। ये भक्ति रूपिणी सुंदर स्त्री के कानों के सुंदर आभूषण (कर्णफूल) हैं और जगत के हित के लिए निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं॥3॥

नरनारयण के राम कार्य में आये विघ्नो को केदारनाथ की ज्योति दूर करती हैं। जब विघ्न आते थे तब निराकारका आकार नरनारायण की पीठ ठपठपाते थे।

ईर्षा, द्वेष, निंदा को सहन करना तप हैं।

केदारनाथ शांति, शक्ति, शुद्धि, स्मृति, सद्‌बुद्धि, सिद्धि देता हैं।

केदारनाथ के तीन संदेश हैं।

(१)    प्रत्येक व्यक्ति का जीवन भद्र – शुभ बने, नखशीश भद्र – मंगल बने।

(२)   प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भाव पेदा हो

(३)   प्रत्येक व्यक्ति का जीवन पूर्ण जीवन हो, संपूर्ण माया का अनुभव करे, परम विश्राम मिले।

केदारनाथ कि भूमि में रहना हि तप हैं।

केदारनाथ के वैश्विक संदेश …

(१)    प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दिव्य क्रिडा होनी चाहिये।

(२)   प्रत्येक व्यक्ति को अपना स्वास्थ्य और सौंदर्य संभालना चाहिये।

(३)   गुरु के आश्रय में रहकर भक्ति या मुक्ति का चुनाव करना।

कान गुरु महादेव हैं, विश्वनाथ कानगुरु हैं, जो कान में गुप्त मंत्र देता हैं।

शान गुरु संकेत करता हैं, गुरु के संकेत समजनेवाले बहुत कम होते हैं।

भान गुरु जो जीव को भान कराते हैं। जीव ईश्वर अंश हैं उसका भान कराता हैं।

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी।।

गान गुरु जो सर्वदा गाता रहता हैं।  

गावत संतत शंभु भवानी

 

या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ।

तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥

 

हे रुद्र भगवान शिव, वेदों को प्रकाशित कर तू सभी प्राणियों पर कृपा की वर्षा करता है, अपने शान्त और आनन्दमय रूप द्वारा हम सब को प्रसन्न रखने का अनुग्रह करता है जिससे भय और पाप दोनों नष्ट हो जाते हैं।

केदारनाथ ११ वा ज्योतिर्लिंग हैं जो एक संकेत हैं।

केदारनाथ शान गुरु हैं।

हनुमान ११ वा रुद्र हैं, हनुमान हि केदार हैं।

रुद्र ११ हैं।

एकादशी का व्रत श्रेष्ठ व्रत हैं जो ११ का एक संकेत हैं।

विश्वरुप अगियारवा अध्याय में आता हैं।

भागवत का ११ वा स्कंध महत्वका हैं।

पांच ज्ञानेद्रीय, पांच कर्मेन्द्रीय और मन मिलाकर ११ होता हैं।

११ का अर्थ एक का एक से मिलन हैं। एक हरि और एक हर का मिलन हैं।

 

મોહનને મહાદેવ, જો સુંદર ગાશો

હરિહરના ગુણ ગાતા, હરિચરણે જાશો...ૐ હર હર હર મહાદેવ

એ બે એક સ્વરૂપ અંતર નવ ધરશો

ભોળા ભૂધરને ભજતાં, ભવસાગર તરશો... ૐ હર હર હર મહાદેવ

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि ।।

जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं, समस्त सृष्टि के जो सार हैं, जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं, वह भगवान शिव माता पार्वती सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

 

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

 

ગાંધીજીનાં ૧૧ વ્રત છે.

 

સત્ય, અહિંસા, ચોરી ન કરવી, વણજોતું નવ સંઘરવું;

બ્રહ્મચર્ય ને જાતે મહેનત, કોઈ અડે ન અભડાવું.

અભય, સ્વદેશી, સ્વાદત્યાગ ને સર્વ ધર્મ સરખા ગણવા;

એ અગિયાર મહાવ્રત સમજી નમ્રપણે દૃઢ આચરવાં.

 

LINK  https://www.youtube.com/watch?v=yLuhlb7abQA

2

Monday, 24/07/2023, विश्वनाथ

साधु चरित राजा के राज्य में कभी भी अकाल नहीं पडता हैं।

समर्थ वह हैं जिसमें परमात्माने सामर्थ्य दिया हैं।

प्रताम भानु ने मागा कि ………

 

जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ।

एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ॥164॥

 

मेरा शरीर वृद्धावस्था, मृत्यु और दुःख से रहित हो जाए, मुझे युद्ध में कोई जीत न सके और पृथ्वी पर मेरा सौ कल्पतक एकछत्र अकण्टक राज्य हो॥164॥

अनीति से कमाये हुए धन में पांच प्रकार के प्रेत होते हैं। धन का भी कुसंग होता हैं।

अर्थ बुरा नहीं हैं। शोषण के धन में प्रेत निवास करते हैं।

कलियुग का एक गुण हैं।

सोइ भव तर कछु संसय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं।।

कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुन्य होहिं नहिं पापा।।4।।

 

वही भवसागर से तर जाता है, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं। नामका प्रताप कलियुगमें प्रत्यक्ष है। कलियुगका एक पवित्र प्रताप (महिमा) है कि मानसिक पुण्य तो होते हैं, पर [मानसिक] पाप नहीं होते।।4।।

कलियुग में मानसिक रुप में दान करो उसका भी फल मिलता हैं। कलियुग में मानसिक रुप में किये गये पाप का फल नहीं भोगना पडता हैं।

काशी का अर्थ उजाला हैं।

 

न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:

न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥

 

न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव, मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था, मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य, मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

महाकाल महान अवसर प्रदान करता हैं।

शिव भगवान के पंच मुख …….

                  ईशान

                 अघोर

                 तत्पुरुष

                 सद्योजात

                 वामदेव

DAY 2 LINK 


3

Thursday 25/07/2023, वैद्यनाथ (झारखंड)

हमारे लिये हमारा बुद्ध पुरुष हि शंकर हैं। उसकी आज्ञा का कभी भी न मानना अपराध हैं।

DANCING LIFE, SINGING LIFE, DIVINE LIFE, LAUGHING LIFE

सत कर्म कष्ट के बिना नहीं होता हैं, और ऐसा कर्म हि फल देता हैं।

गुरु अपराध सब से बडा अपराध हैं।

पांच प्रेत

                  अभिप्रेत -मुझे अच्छा लगे ऐसा सब करे ऐसी अपेक्षा रखना अभिप्रेत हैं।

                 भूतप्रेत – भूतकाल की घटना का बदला लेने की चेष्टा

                 कर्णप्रेत – दूसरों ने कान में जो डाला – कहा इस तरफ वर्तन करना और उसका बदला लेना

                 चितभ्रम प्रेत

                 अहंप्रेत

DAY 3 LINK 

4

Friday, 28/07/2023, मल्लिकार्जुन, श्रीशैलम्

राम चरित मानस में रुद्र शब्द ८ बार, अभिषेक शब्द १६ बार आया हैं।

भगवान शिव में १६ रस हैं।

दुर्गा, राम, कृष्ण, शिव, समर्थ बुद्ध पुरुष, भवानी सब रुद्र हैं।

जब दीन हिन को देखकर हमारी आंख में अश्रु आये तो वह हमारा नेत्राभिषेक हैं।

दूसरों के कान में उस के कल्याण के लिये कुछ कहना कर्णाभिषेक हैं।

गुरु का आश्रित को स्पर्श करना स्पर्शाभिषेक हैं।

आत्मा को विकसित करने के लिये कोई मुस्कहारट दे दे और आत्मा प्रसन्न हो जाय तो वह मुस्कान अभिषेक हैं।

शिव के १६ रस हैं, राम के १६ शील हैं, दुर्गा की १६ ऊर्जा कला हैं, बुद्ध पुरुष की अतिशय विचित्र कला १६ हैं, कृष्ण की १६ कला हैं।

 

या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ।

तया नस्तन्वा शंतमया गिरिशन्ताभिचाकशत् ॥

 

 

हे रुद्रदेव ! पर्वत पर विराजमान रहते हुए भी आप हम सबका मंगल करने वाले हैं। आप अपने पापनाशक सौम्य स्वरूप तथा मंगलमय स्वरूप द्वारा हमें सभी ओर से प्रकाशमान करें। आपकी जो ताम्रवर्ण, लाल, भूरी, अत्यन्त लाल तथा हजारों सूर्यकिरणरूपी मूर्तियाँ चारों दिशाओं में संव्याप्त हैं, हम स्तुतिगान हेतु उनकी हृदय से कामना करते हैं ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः |

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||

 

गुरु का दर्शन रुद्री पाठ हैं।

पंच तत्व का अभिषेक होना चाहिये।

व्यास पीठ के पास तीसरी आंख -दिव्य द्रष्टि होती हैं।

कला के साथ शील जरुरी हैं।

कृष्णने गीता गायी हैं।

कृष्ण की १६ कला

                  वादन कला, वाद्य कला – वेणु बजानेकी कला

 

नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई॥

भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी॥4॥

नीच का झुकना (नम्रता) भी अत्यन्त दुःखदायी होता है। जैसे अंकुश, धनुष, साँप और बिल्ली का झुकना। हे भवानी! दुष्ट की मीठी वाणी भी (उसी प्रकार) भय देने वाली होती है, जैसे बिना ऋतु के फूल!॥4॥

                 गायन कला

                 नर्तन कला – रास कला

                 केश कला

                 प्रेम कला

                 काम कला

                कर्म कला

                 असंग कला

                 राज कला

१०              वाक्‌ कला

११               युद्ध कला

पंजरी क्या हैं?

दादा ने बताये हुए अर्थ …..

बीज का अर्थ क्या हैं?

ऑशो का जवाब

बीज का अर्थ अनेक संभावना हैं, बीज धरती को हरियाली कर शकता हैं और सर्वनाश भी कर शकता हैं।

पंजरी पांच सूत्र हैं।

                  स्वीकार – कृष्ण प्रसाद का स्वीकार करना।

                 सब से प्यार करना, किसीसे नफरत न करना।

शिष्य गुरु को देता हैं वह प्यार हैं और गुरु को शिश्य को जो दीता हैं वह प्रेम हैं। … स्वामी शरणानंदजी

                  सब का द्वार बनना, किसी की भी दिवार न बनना।

                 यदि तुम्हारे पास शुभ कल्याणकारी विचार हैं तो उसका आदान प्रदान करो – सदविचार विनीमय करो।

                 पुकार

रुद्राष्टकम्‌ परम साधु की पुकार हैं।

प्रेम पीठ, ज्ञान पीठ और वैराग्य पीठ – यह तीन पीठ व्यास पीठ से जुडी हुई हैं, व्यास पीठ यह तीन पीठ का संगम हैं। व्यास पीठ को कर्म पीठ भी कह  शकते हैं।

 

LINK DAY 4 

5

Saturday, 29/07/2023, रामेश्वरम्‌

 

रामेश्वर भगवान के साथ पांच वस्तु जुडी हुई हैं।

                  यह पराक्रमी भूमि हैं।

                 यह एकताकी भूमि हैं।

                 यह प्रकाश की भूमि हैं, काशी ज्ञान की भूमि हैं।

                 यह बोध की भूमि हैं।

                 यह भाव भूमि हैं।

यह भूमि पर आने से यह पांच वस्तु की प्रेरणा मिलती हैं।

यह ज्योतिर्लिंग को काशीरामेश्वर भी कहा जा शकता हैं।

राम की प्राप्ति ज्ञान से, कृष्ण की प्राप्ति भाव से और शिव की प्राप्ति भाव से होती हैं।

 

धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई।

अति निर्मल बानी अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई

मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई।

राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई॥2॥

 

फिर उसने मन में धीरज धरकर प्रभु को पहचाना और श्री रघुनाथजी की कृपा से भक्ति प्राप्त की। तब अत्यन्त निर्मल वाणी से उसने (इस प्रकार) स्तुति प्रारंभ की- हे ज्ञान से जानने योग्य श्री रघुनाथजी! आपकी जय हो! मैं (सहज ही) अपवित्र स्त्री हूँ, और हे प्रभो! आप जगत को पवित्र करने वाले, भक्तों को सुख देने वाले और रावण के शत्रु हैं। हे कमलनयन! हे संसार (जन्म-मृत्यु) के भय से छुड़ाने वाले! मैं आपकी शरण आई हूँ, (मेरी) रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए॥2॥

 

शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं ।

काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं ॥ १ ॥

सेतुबंध एक पराक्रम हैं।

महान व्यक्ति की पीडा भी महान होती हैं।

शिव की पांच ज्योति हैं।

श्रींगार मूर्ति भगवान वैद्यनाथ हैं।

रुद्राष्टक महाकालेश्वर के सामक्ष एक साधु ने गाया हैं, उस के रचयिता अज्ञात हैं, किसी को पता नहीं हैं।

राम चरित मानस में श्लोक, छंद, चोपाई, सोरठा औए दोहा आता हैं, यह पंचामृत हैं।

 

सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥

कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥1॥

 

शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे। जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया। शिवजी ने साँपों के ही कुंडल और कंकण पहने, शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया॥1॥

 

ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा

गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥2॥

 

शिवजी के सुंदर मस्तक पर चन्द्रमा, सिर पर गंगाजी, तीन नेत्र, साँपों का जनेऊ, गले में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी। इस प्रकार उनका वेष अशुभ होने पर भी वे कल्याण के धाम और कृपालु हैं॥2॥

 

कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजाचले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा

देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनि जग नाहीं॥3॥

 

एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू सुशोभित है। शिवजी बैल पर चढ़कर चले। बाजे बज रहे हैं। शिवजी को देखकर देवांगनाएँ मुस्कुरा रही हैं (और कहती हैं कि) इस वर के योग्य दुलहिन संसार में नहीं मिलेगी॥3॥

बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता। चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता॥

सुर समाज सब भाँति अनूपा। नहिं बरात दूलह अनुरूपा॥4॥

 

विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं के समूह अपने-अपने वाहनों (सवारियों) पर चढ़कर बारात में चले। देवताओं का समाज सब प्रकार से अनुपम (परम सुंदर) था, पर दूल्हे के योग्य बारात न थी॥4॥

कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला महाकालेश्वर हैं, ससि ललाट सोमनाथ हैं, सिर गंगा विश्वनाथ हैं, नयन तीनि त्रयकंबेश्वर हैं, उपबीत भुजंगा नागेश्वर हैं, असिव बेष भीमाशंकर हैं, सिवधाम कृपाला रामेश्वर हैं, कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा ऑमकारेश्वर हैं, चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा केदारनाथ हैं, देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं घृष्णेश्वर हैं, बर लायक दुलहिनि जग नाहीं मल्लिकार्जुन हैं।

DAY 5 LINK 

6

Monday, 31/07/2023, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

 

 

तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही॥

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥3॥

 

और जैसा कुछ मेरी समझ में आता है, हे सुमुखि! वही कारण मैं तुमको सुनाता हूँ। जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं॥3॥

 

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥4॥

 

और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं॥4॥

अवतार धर्म – सत्य, प्रेम और करुणा को बार बार स्थापना करता हैं, अधर्म का निर्वाण – नव निर्माण करता हैं।

निर्माण और निर्वाण सापेक्ष हैं।

 

 

DAY 6 LINK 

 

7

Tuesday, 01/08/2023, भीमाशंकर

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा रामायण काल से कुछ पीछे तक संलग्न हैं, जुदी हुई हैं।

 

कहि बिराध बध जेहि बिधि देह तजी सरभंग।।

बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभु अगस्ति सत्संग।।65।।

 

जिस प्रकार विराध का वध हुआ और शरभंगजीने शरीर त्याग किया, वह प्रसंग कह-कर, फिर सुतीक्ष्णजी का प्रेम वर्णन करके प्रभु और अगस्त्यजीका सत्संग वृत्तान्त कहा।।65।।

 राम चरित मानस स्वयं द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं।

परमात्मा वात्सविक हैं, लेकिन व्यवहारुं नहीं हैं।

नर नारायण, सेवक स्वामी वगेरे बुद्ध पुरुष की विचित्र कला हैं।

कैलाश १३ वा परम ज्योतिर्लिंग हैं।

हनुमानजी जानकी को १३ बार मा (मा, माता, जननि) कहते हैं।

हनुमान चालीसा में ४० पंक्ति क्यां हैं?

हनुमान चालीसा में निम्न तरफ ४० अंक आता हैं।

शंकर के पंच मुख                                    5

शंकर भगवान की अष्ट मूर्ति                       8

द्वादश ज्योतिर्लिंग                                     12

शंकर भगावन के पंच मुख के १५ नेत्र          15

                                                ________________            

Total                                                    40

यह हनुमान चालीसा की ४० पंक्ति हैं।

हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो वह द्वादश ज्योतिर्लिंग की आरती समान हैं।

शास्त्र, सदगुर, सद विचार और सअ मंत्र पर कभी भी शंका नहीं करनी चाहिये।

जो अपनी मा, पिता और देवा – आचार्य को नहीं मानता हैं – आदर नहीं देता हैं वह राक्षस हैं।

 

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥

मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥1॥

पराए धन और पराई स्त्री पर मन चलाने वाले, दुष्ट, चोर और जुआरी बहुत बढ़ गए। लोग माता-पिता और देवताओं को नहीं मानते थे और साधुओं (की सेवा करना तो दूर रहा, उल्टे उन) से सेवा करवाते थे॥1॥

जो साधु से अपनी सेवा कराता हैं वह राक्षस हैं।

साधु सेवा ईन्द्र भी नहीं कर शकता हैं।

व्यास पीठ परम तीर्थ हैं।

बुद्ध पुरुष तारण हैं और तरण भी हैं।

राम साधु हैं।

महादेव साधु हैं।

 

'मातृ देवो भव। पितृ देवो भव। आचार्य देवो भव। अतिथि देवों भव।'

 

अर्थात् माता को, पिता को, आचार्य को और अतिथि को देवता के समान मानकर उनके साथ व्यवहार करो।

 

जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥

अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी॥2॥

 

(श्री शिवजी कहते हैं कि-) हे भवानी! जिनके ऐसे आचरण हैं, उन सब प्राणियों को राक्षस ही समझना। इस प्रकार धर्म के प्रति (लोगों की) अतिशय ग्लानि (अरुचि, अनास्था) देखकर पृथ्वी अत्यन्त भयभीत एवं व्याकुल हो गई॥2॥

कुछ अवसर आदमी का भान भूला देते हैं, ऐसे वक्त बडे बडे गुलाट खा जाते हैं।

ભોળપણ ભગવાન નો દરવાજો છે.

ભોળાનો ભગવાન છે.

 

गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥

सेवक स्वामि सखा सिय पी के। हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के॥2॥

 

श्री महेश और पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जो मेरे गुरु और माता-पिता हैं, जो दीनबन्धु और नित्य दान करने वाले हैं, जो सीतापति श्री रामचन्द्रजी के सेवक, स्वामी और सखा हैं तथा मुझ तुलसीदास का सब प्रकार से कपटरहित (सच्चा) हित करने वाले हैं॥2॥

રામ ચરિત માનસ દ્વાદશ જ્યોતિર્લિગ હૈં।

 

DAY 7 LINK 

 

 

8

Wednesday, 02/08/2023

DAY 8 LINK 

9

Thursday, 03/08/2023, घृष्णेश्वर

 

ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम् ।

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ॥

वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् ।

वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम् ॥

त्रिशूल भगवान महादेव की शरण में जानेसे हि मिटेगा।

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10

Friday, 04/08/2023

भगवान के पास दो ज्योति – प्रगट ज्योति और अप्रगट ज्योति होती हैं।

बुद्ध पुरुष के पास नख ज्योति होती हैं। यह ज्योति को हम स्पर्श कर शकते हैं। नख की एक ज्योति होती हैं।

गुरुके पास उसकी नेत्र ज्योति होती हैं।

आत्म ज्योति अप्रगट ज्योति हैं।

गुरु का स्मरण करनेसे उसकी नख ज्योति प्राप्त होती हैं।

 

रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥3॥

 

जब श्री रघुवीर ने कृपा की है, तभी तो आपने मुझे हठ करके (अपनी ओर से) दर्शन दिए हैं। (हनुमान्‌जी ने कहा-) हे विभीषणजी! सुनिए, प्रभु की यही रीति है कि वे सेवक पर सदा ही प्रेम किया करते हैं॥3॥

ओंमकारेश्वर की भूमि ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग की भूमि हैं।

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11

Saturday, 05/08/2023, મહાકાલેશ્વર જ્યોતિર્લિંગ

भगावान राम को मानस के कई पात्र प्रिय लगते हैं जैसे कि भगवान शिव, सीता, निषाधराज गुह, विभीषण वगेरे।

जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥

ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥

 

राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥4॥

 

रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥3॥

 

जब श्री रघुवीर ने कृपा की है, तभी तो आपने मुझे हठ करके (अपनी ओर से) दर्शन दिए हैं। (हनुमान्‌जी ने कहा-) हे विभीषणजी! सुनिए, प्रभु की यही रीति है कि वे सेवक पर सदा ही प्रेम किया करते हैं॥3॥

जानकी निर्मल बुद्धि देती हैं।

हमारी बुद्धि प्रज्ञा बननी चाहिये।

सत्य व्रत, मौन जैसे व्रत सुव्रत हैं।

राम नाम का रटन और राम कार्य सुकर्म हैं।

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12

Sunday, 06/08/2023, नागेश्वर ज्योतिर्लंग, गुजरात

नागेश्वर सूर्य ज्योति हैं, सोमनाथ चंद्र ज्योति हैं।

नागेश्वर और सोमनाथ के बीच द्वारका हैं जहां सूर्य और चंद्र दोनो की ज्योति हैं।

कथा शांति स्थापित करती हैं।

नागेश्वर भगवान की पूजा स्वयं भगवान कृष्ण ने की हैं।

पवित्र स्थान में पांच प्रकार की कथा जुडी हुई होती हैं।

                  पौराणिक कथा

                 लोक कथा

                 विद्वान की कथा

                 पवित्र स्थान के पुजारी के पूर्वजो की कथा

                 भजनानंदी साधु के अंतःकरण की धारा की कथा

राग द्वेष मुक्त व्यक्ति का सौंदर्य एक भीतरी प्रकाश होता हैं।

आध्यात्मिक जगत में सौंदर्य अंदर से प्रकाशित होता हैं।

साधु में कभी भी राग द्वेष पेदा नहीं होता हैं।

शिव लोक नाथ हैं लोगो के लिये हैं।

दीन हिन को देखकर अश्रु आये और परिश्रम करते समय पसीना आये वह शिव अभिषेक हैं।

दूध का अभिषेक परम ध्येय का अभिषेक हैं।

मध का अभिषेक मीठी नजर का, मीठी बोली का और मीठे विचार का अभिषेक हैं।

शिव के आठ अवगुण बताये गये हैं।

निर्गुण निलज कुबेष कपाली | अकुल अगेह दिगंबर बयाली ||

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13

Monday, 07/08/2023, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

कबीरने कहा हैं …………

दया, गरीबी, बन्दगी, समता शील उपकार।

ईत्ने लक्षण साधु के, कहें कबीर विचार॥

संत कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन पुरुष में निम्न गुणों का होना आवश्यक है- सभी के लिए दया भाव, अभिमान भाव की गरीबी, इश्वर की भक्ति, सभी के लिए समानता का विचार, मन की शीतलता एवं परोपकार।

हम  में शौर्य, सौंदर्य, औदार्य होना चाहिये।

सौंदर्य का अर्थ प्रेम हैं।

सत्य बोलना, सत्य बोलने के लिये शौर्य – हिंमत जरुरी हैं।

उदारता के लिये करुणा होनी चाहिये।

स्वभाव पर काबु पानेके लिये यमुनाष्टक का पाठ करना चाहिये।

निम्न लिखित चार अपराध से बचना चाहिये।

                  बुझुर्ग का अनादर करने से बचना चाहिये।

                 कोई भी वादा करने के बाद उसे तोडने से बचना चाहिये।

                 कभी भी असमानता – भेद करने से बचना चाहिये।

                 गुरु पत्नी पर कुद्रष्टि करने से बचना चाहिये।

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