રામ કથા - 920
માનસ રામચરિત
Boston, USA
શનિવાર, તારીખ 08/07/2023
થી રવિવાર, તારીખ 16/07/2023
કેન્દ્રીય વિચાર પંક્તિ
रामचरित चिंतामति चारू।
संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
जग मंगल गुनग्राम राम के।
दानि मुकुति धन धरम धाम के॥1॥
1
Saturday, 08/07/2023
रामचरित चिंतामति चारू। संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥1॥
श्री
रामचन्द्रजी का चरित्र सुंदर चिन्तामणि है और संतों की सुबुद्धि रूपी स्त्री का सुंदर
श्रंगार है। श्री रामचन्द्रजी के गुण-समूह जगत् का कल्याण करने वाले और मुक्ति, धन,
धर्म और परमधाम के देने वाले हैं॥1॥
राम
चरित मानस में ५ चरित्र महद हैं, राम चरित, शिव चरित, भरत चरित, हनुमंत चरित और भुषंडी
चरित, यह पंचामृत हैं।
वैसे
तो यह ९ चरित्र हैं।
१
राम चरित्र, २ सीता चरित्र
५
भरत
६
हनुमंत
७
रावण – ऐसे तो रावण का चरित्र आचरणीय नहीं हैं, लेकिन रावण को भी अवतार माना गया हैं,
और जैसे स्मशान कि भष्म का भगवान शंकर लेपन करते हैं तब वह भष्म आभुषण बन जाती हैं
वैसे रावण की पत्नी की प्रज्ञा और उसके सतीत्व के संग से रावण का जीवन विचारणीय हैं।
मंदोदरी का स्थान पंच कन्या में हैं।
अहल्या द्रौपदी तारा कुंती
मंदोदरी तथा।
पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं
महापातकनाशम्||
अहल्या,
द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे
पाप धुल जाते हैं|
पंच
कन्या - पुराणानुसार ये पाँच स्त्रियाँ - अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी-
जो विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र मानी गई हैं।
बन बाग उपबन बाटिका सर
कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या
रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल
समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि
एक एकन्ह तर्जहीं॥2॥
वन,
बाग, उपवन (बगीचे), फुलवाड़ी, तालाब, कुएँ और बावलियाँ सुशोभित हैं। मनुष्य, नाग, देवताओं
और गंधर्वों की कन्याएँ अपने सौंदर्य से मुनियों के भी मन को मोहे लेती हैं। कहीं पर्वत
के समान विशाल शरीर वाले बड़े ही बलवान् मल्ल (पहलवान) गरज रहे हैं। वे अनेकों अखाड़ों
में बहुत प्रकार से भिड़ते और एक-दूसरे को ललकारते हैं॥2॥
८
साधु चरित
साधु चरित सुभ चरित कपासू।
निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा।
बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥
संतों
का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ है, जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता
है। (कपास की डोडी नीरस होती है, संत चरित्र में भी विषयासक्ति नहीं है, इससे वह भी
नीरस है, कपास उज्ज्वल होता है, संत का हृदय भी अज्ञान और पाप रूपी अन्धकार से रहित
होता है, इसलिए वह विशद है और कपास में गुण (तंतु) होते हैं, इसी प्रकार संत का चरित्र
भी सद्गुणों का भंडार होता है, इसलिए वह गुणमय है।) (जैसे कपास का धागा सुई के किए
हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने और बुने
जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता
है, उसी प्रकार) संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता है, जिसके
कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है॥3॥
बिप्र एक बैदिक सिव पूजा।
करइ सदा तेहिं काजु न दूजा।।
परम साधु परमारथ बिंदक।
संभु उपासक नहिं हरि निंदक।।2।।
एक
ब्राह्मण देवविधिसे सदा शिवजीकी पूजा करते, उन्हें दूसरा कोई काम न था। वे परम साधु
और परमार्थके ज्ञाता थे। वे शम्भुके उपासक थे, पर श्रीहरिकी निन्दा करनेवाले न थे।।2।।
९
भुषुंडी चरित
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Sunday, 09/07/2023
राम
कथा चिंतामनि हैं, साधु की सुमति रुपी स्त्री का आभुषण हैं।
भगवान
राम के गुण समुह जग मंगल करनेवाला हैं, राम कथा हमें चार वस्तु – मुक्ति, धन, धर्म
और धाम देती हैं।
राम
कथा एक मणि हैं।
चिंतामणि
हमारी चिंताओ को दूर कर देता हैं।
चिंता
सर्पणी हैं।
चिंता
अनेक होती हैं।
एक
चिता हमारे शरीर स्वास्थ्य की हैं।
संघर्ष
विजय नहीं देता हैं सिर्फ जय देता हैं।
सत्य
विजय देता हैं।
दूसरी
चिंता अपने मन के विचार की हैं।
युवानी
में संवेदना और अश्रु होने चाहिये और बुढापे में चहरे पर स्मित होना चाहिये।
चिंता बुद्धि की हैं। चोथी चिंता धन की हैं।
चिंता
मिटानेके चार कारण हैं।
जब
हमारे पास कामना, प्रतिष्ठा, धन, उन्नति होती हैं तब चिंता हमारा पीछा करती हैं।
१
चिंता कामना का विस्तार करने से कम होती हैं। दूसरों को मदद करने की कामना का विस्तार करनेसे हमारी चिंता कम होगी।
२
कामना को संक्षिप्त करने से चिंता कम होगी।
प्रभु प्रसाद
सुचि सुभग सुबासा।
सादर जासु लहइ नित नासा॥
तुम्हहि निबेदित
भोजन करहीं। प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं॥1॥
जिसकी नासिका
प्रभु (आप) के पवित्र और सुगंधित (पुष्पादि)
सुंदर प्रसाद को नित्य आदर के साथ ग्रहण करती (सूँघती) है और जो आपको अर्पण करके भोजन करते हैं और आपके प्रसाद रूप ही वस्त्राभूषण
धारण करते हैं,॥1॥
३
अपनी चिंता परमात्मा को समर्पित करने से चिंता कम होगी।
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी।
कपटी मित्र सूल सम चारी॥
सखा सोच त्यागहु बल मोरें।
सब बिधि घटब काज मैं तोरें॥5॥
मूर्ख
सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र- ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले
हैं। हे सखा! मेरे बल पर अब तुम चिंता छोड़ दो। मैं सब प्रकार से तुम्हारे काम आऊँगा
(तुम्हारी सहायता करूँगा)॥5॥
४
केवल एक हि की कामना करने से चिंता कम होगी।
आस्था
और अटल विश्वास चिंता कर देती हैं।
आश्रित
चिंता करे वह भगवद अपराध हैं।
साधु
की सुमति उसकी स्त्री हैं।
साधु
जिसके घर भोजन करे और भजन करे उसके जन्मोजन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।
धाम
का एक अर्थ स्वर्ग हैं। अपना घर भी धाम हैं। धाम का अर्थ काम भी हैं।
चिंता
से मुक्त होना हि मुक्ति हैं।
हरि
नाम परम घन हैं, परम अर्थ हैं।
धन्यता
हि धन हैं।
सनातन
धर्म का सार सत्य, प्रेम, करुणा हैं।
3
Monday, 10/07/2023
राम चरित मानस एक सरोवर हैं, मणि हैं, माणेक हैं,
सुत्रात्मक ग्रंथ हैं, चिंतामणी हैं, राकेश – चंद्र की कितण हैं जो सब को सुख देती
हैं।
यह
जगत त्रिगुणात्मक हैं।
जगत
दुःखालय होते हुए कई व्यक्तिओ के लिये सुखरुप लगया हैं।
कई
लोगों को यह जगत मोहित करता हाइं।
दुःख
आदमी को विवेकी बनाता हैं और सुख आदमी को अविवेकी बनाता हैं।
जिसमें
फूलसे ज्यादा कोमलता हो और जिसका निर्णय अत्यंत कठोर हो – वज्र से भी ज्यादा कठोर हो
वह वीर हैं।
मोह
शिकारी बन जाता हैं।
राम
कथा सुनने से यह सृष्टि सुंदर लगने लगती हैं।
कथामृत
का नशा जन्मोजन्म तक रहता हैं।
व्यसन
का अर्थ दुःख हैं, पीडा हैं।
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं
प्रियहितं च यत्।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं
तप उच्यते।।17.15।।
।।17.15।।उद्वेग
न करनेवाला, सत्य, प्रिय, हितकारक भाषण तथा स्वाध्याय और अभ्यास करना -- यह वाणी-सम्बन्धी
तप कहा जाता है।
।।17.15।।
जो वाक्य (भाषण) उद्वेग उत्पन्न करने वाला नहीं है, जो प्रिय, हितकारक और सत्य है तथा
वेदों का स्वाध्याय अभ्यास वाङ्मय (वाणी का) तप कहलाता है।।
पृथ्वी
पर कोइ साधु की उपस्थिति परमात्माकी हयाती का प्रमाण हैं।
अगर
फूल हैं तो उसका मूल भी अवश्य हैं।
सदगुर ग्यान बिराग जोग
के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
जननि जनक सिय राम प्रेम
के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥2॥
ज्ञान,
वैराग्य और योग के लिए सद्गुरु हैं और संसार रूपी भयंकर रोग का नाश करने के लिए देवताओं
के वैद्य (अश्विनीकुमार) के समान हैं। ये श्री सीतारामजी के प्रेम के उत्पन्न करने
के लिए माता-पिता हैं और सम्पूर्ण व्रत, धर्म और नियमों के बीज हैं॥2॥
प्रेम
से हरि प्रगट होता हैं और प्रेम को प्रगट करनेके लिये उसके माता पिता सीता रामजी आवश्यक
हैं।
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना।
प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥
देस काल दिसि बिदिसिहु
माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥3॥
मैं तो यह जानता हूँ कि भगवान सब जगह समान रूप से व्यापक हैं, प्रेम से वे प्रकट हो जाते हैं, देश, काल, दिशा, विदिशा में बताओ, ऐसी जगह कहाँ है, जहाँ प्रभु न हों॥3॥
हनुमान
चालीसामें संकट शब्द तीन बार आया हैं।
संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय
बसहु सुर भूप ॥
संकट
से बचनेके लिये मन, बचन, कर्म से हनुमानजी का आश्रय करना चाहिये, हनुमान चालीसा का
पाठ करना चाहिये।
जिसका
ध्यान करो उसका स्मरण भी करना चाहिये।
हनुमान
चालीसा कविता का सत्य नहीं हैं लेकिन सविता -सूर्य का सत्य हैं, सूरज जैसा सत्य हैं।
हनुमानजी
के गुरु सूर्य हैं, ईसीलिये हनुमान चालीसा गुरु का सत्य हैं।
हनुमान
चालीसा आदि चालीसा हैं, शुद्ध हैं और सिद्ध भी हैं।
मन
से दूसरों का बुरा न करना ध्यान हैं।
वाणी
से और क्रिया से दूसरों को ठेस न पहुंचाना ध्यान हैं।
THINKING, FEELING AND ACTION बुद्धि का क्षेत्र
हैं।
हनुमानजी
बलबीरा हैं, हमे ध्यान जो बलबीर हो उसका करना चाहिये। हनुमानजी बलबीरा होने से जब हम
ध्यान से हट जाते हैं तब वह हमें फिर ध्यान की स्थितित में ला देते हाइं।
संकट
के तीन प्रकार हैं – धर्म संकट, प्राण संकट और राष्ट्र/विश्व संकट।
वैराग्य
से, त्याग से प्राण संकट दूर होगा।
ज्ञान
से धर्म संकट दूर होगा।
संघर्ष
दो अधर्म के बीच होता हैं। …….. विनोबाजी
परस्पर
मैत्री, परस्पर विश्वास का नाम धर्म हैं। परस्पर प्रीति धर्म हैं।
परस्पर
योग -सहयोग से राष्ट्र संकट दूर होगा।
अश्विनीकुमार
देवो के वैद्य हैं।
द्वेष,
निंदा, ईर्षा असाध्य रोग हैं।
राम
चरित मानस ऐसा वैद्य हैं जो क्रमशः द्वेष, निंदा, ईर्षा मिटायेगा, उस में कुछ समय लग
शकता हैं।
प्रेम
के कई प्रकार हैं – राष्ट्र प्रेम, पारिवारिक प्रेम, विश्व प्रेम, नैतिक प्रेम, आध्यत्मिक
प्रेम, गुप्त प्रेम, अशरीरी प्रेम, भाव का प्रेम, पति पत्नी के बीच का प्रेम वगेरे।
प्रेम
के माता पिता राम चरित मानस हैं।
बापु
के लिये प्रकृति और पुरुष – परमेश्वर मानस हैं।
सब
प्रकारके व्रत और धर्म और नीति का बीज राम चरित मानस हैं।
व्रत
के कई प्रकार हैं – सत्य व्रत, धर्म व्रत, मौन व्रत वगेरे।
एकांत
पाठशाला हैं और मौन पाठ हैं – एकांत में मौन रहना।
4
Tuesday, 11/07/2023
सम,
विचार, संतोष और साधुसंग, यह चार मोक्ष के
द्वार हैं। योग वशिष्ट
साधु
पुरुष, बुद्ध पुरुष,, परमहंस, सदगुरु वगेरे पर्याय शब्द हैं।
कभी
कभी साधु पुरुष के पास रहनेवाले साधुसंग से विचलित हो जाते हैं और दूर रहनेवाले साधुसंग
प्राप्त करते हैं।
ब्रह्म
निकट से निकट और दूर से दूर हैं।
साधुसंग
का पहला पडाव सम – शम – क्रमशः बढती भीतरी शांति हैं।
दूसरा
पडाव विचार हैं, आदमी विचारशील होना चाहिये। विचारकी कूख शांति हैं, शांति से विचार प्रगट होते
हैं, लेकिन एसे विचार सम्यक होने चाहिये। विचार के कारण धारणामें …….
पतंजलि
के योग सूत्र यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि हैं।
धारणा
समाधि नहीं हैं।
श्रद्धा
का कोई विकल्प नहीं हैं।
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो
गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो
मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।
।।12.16।।जो
आकाङ्क्षासे रहित, बाहर-भीतरसे पवित्र, दक्ष, उदासीन, व्यथासे रहित और सभी आरम्भोंका
अर्थात् नये-नये कर्मोंके आरम्भका सर्वथा त्यागी है, वह मेरा भक्त मुझे प्रिय है।
।।12.16।।
जो अपेक्षारहित, शुद्ध, दक्ष, उदासीन, व्यथारहित और सर्वकर्मों का संन्यास करने वाला
मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है।।
जब
हम अपेक्षा को छोडते हैं तब गुरु हमें सुनता हैं।
धारणा
को ओवेरटेक कर कर समाधि तक जाना हैं।
अष्टावक्र
कहते हैं कि समाधि भी बाधा हैं, सहजता हि एक मात्र उपाय हैं।
साधु
सहज समाधि ….
निर्दोषता
और सहज में क्या फर्क हैं?
कई
लोग सहज हि झूठ कार्य करते रहते हैं।
हम
मोज गुरु के कवच के कारण कर रहे हैं।
स्थुल
रुप में साधु की सेवा होती हैं, सुक्ष्म रुपमें साधु का संग होता हैं।
घरमें
ठाकोरजी की सेवा, परिवारमें पारदर्शिता, अन्य की सेवा, दया, नीति, नीति का धन, नीति
का धान जिस घरमें होता हैं ऐसे घरमें परमात्मा निवास करता हैं। घर मेंजो नोकर चाकर
काम करते हैं उस पर दया करो, उन्हे अपने घर के सदस्य समजो। ……….. त्रापरकर दादा
साधु
किसीसे दूर नहीं होता हैं औए किसी के नजदिक भी नहीं होता हैं।
अपने
माबाप की जब हयाती हो तब उनकी सेवा करो और जब हयाती न हो तब उनका स्मरण करो।
समन पाप संताप सोक के।
प्रिय पालक परलोक लोक के॥
सचिव सुभट भूपति बिचार
के। कुंभज लोभ उदधि अपार के॥3॥
पाप,
संताप और शोक का नाश करने वाले तथा इस लोक और परलोक के प्रिय पालन करने वाले हैं। विचार
(ज्ञान) रूपी राजा के शूरवीर मंत्री और लोभ रूपी अपार समुद्र के सोखने के लिए अगस्त्य
मुनि हैं॥3॥
पाप,
संताप और शोक को राम चरित मानस नष्ट कर देता हैं।
संत दर्शन से पाप नष्ट होते हैं, जब हम में अकारण
प्रसंशा आये तो समजो हमारे पाप नष्ट हो रहे हैं।
राम
चरित मानस गाने से पाप नष्ट होंगे।
रामनाम
महा मंत्र जपने से पाप कम होने लगेंगे।
वाणी
का पाप असत्य – झूठ हैं।
वाणी
का पाप निंदा हैं।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं
ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन:
॥
सत्य
बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु
असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है ॥
कायिक
पाप शरीर से हुआ पाप हैं।
बुद्ध
पुरुष की नजर हमारे उपर पडने से हमारी आंखे के पाप नष्ट होंगे।
हमारी
सब ईन्द्रीयां पाप करती हैं।
दूसरों
का बुरा सोचना मानसिक पाप हैं।
धनवान
पाप करते हैं और निर्धन भी पाप करते हैं।
सहज बिरागरूप मनु मोरा।
थकित होत जिमि चंद चकोरा॥
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ।
कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ॥2॥
मेरा
मन जो स्वभाव से ही वैराग्य रूप (बना हुआ) है, (इन्हें देखकर) इस तरह मुग्ध हो रहा
है, जैसे चन्द्रमा को देखकर चकोर। हे प्रभो! इसलिए मैं आपसे सत्य (निश्छल) भाव से पूछता
हूँ। हे नाथ! बताइए, छिपाव न कीजिए॥2॥
धन
की तीन गति हैं – भोग, नाश और दान।
संताप
मानसिक होता हैं जो राम चरित माअनस से दूर होगा।
भगवत
कथा में हमारे शोक श्लोक में परिवर्तित होते हैं।
राम
जन्म की कथा ………
5
Wednesday, 12/07/2023
तीलक,
गले में माला, मंत्र और सतसंग कबीर पंथ के चार सूत्र हैं।
नीम्न
पांच को हमेशां याद रखना चाहिये।
१
जन्म
देनी वाली जननी
२
जन्म
भूमि
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
माता और
मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।
३
जीव
ईश्वर का अंश हैं।
सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी।।
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख
रासी।।1।।
हे
तात ! यह अकथनीय कहानी (वार्ता) सुनिये। यह समझते ही बनती है, कही नहीं जा सकती। जीव
ईश्वर का अंश है। [अतएव] वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है।।1।।
संचित,
क्रियमान और प्रारब्ध कर्म हरिनाम से मिट जाते हैं, भजन से मिट जाते हैं।
हम
सुख रिप हैं।
४
अपने
बुद्ध पुरुष को कभि भी न भूलना व्हाहिये।
५
दूसरोंने
किये हुए उपकार क्भी भी न भूलना चाहिये।
६
हमारी
प्रगति के प्रेरणा स्तोत्र को कभी भी न भूलना चाहिये। हमारी शुभ यात्रा जिस बिंदुसे
शुरु होती हो उस बिंदु को कभी भी न भूलना चाहिये।
गंगा उसके उदगम स्थान विष्णु को मिलने
के लिये खारे समुद्र में समा जाति हैं। विष्णु क्षीर सागरमें शयन करते हैं। और गंगा
का उदगम स्थान विष्णु का नख हैं।
जय
जय भगीरथ नन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि, नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।
बिस्नु-पद-सरोजजासि,
ईस-सीसपर बिभासि, त्रिपथ गासि, पुन्रूरासि, पाप-छालिका।1।
सुरद – सज्जन मित्र को कभी भी भूलना चाहिये।
हरिनाम कभी भी न भूलना चाहिये।
काम कोह कलिमल करिगन के।
केहरि सावक जन मन बन के॥
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि
के। कामद घन दारिद दवारि के॥4॥
भक्तों
के मन रूपी वन में बसने वाले काम, क्रोध और कलियुग के पाप रूपी हाथियों को मारने के
लिए सिंह के बच्चे हैं। शिवजी के पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं और दरिद्रता रूपी दावानल
के बुझाने के लिए कामना पूर्ण करने वाले मेघ हैं॥4॥
काम,
क्रोध, कलियुग के मल को मिटाने के लिये राम चरित मानस सिंह का बच्चा हैं। यह राम चरित
रुपी सिंह का बच्चा हमारे काम, क्रोध, कलियुग का मल जैसे विकारो को दूर कर देता हैं।
भगवान
शिवजी के लिये राम कथा अतिथि रुप हैं।
अतिथि
पूज्य हैं, राम कथा भगवान शिवजी के लिये प्रियतम हैं।
जो
अच्छा श्रोता हैं वहीं अच्छा वक्ता हैं।
श्रवण
प्रथम भक्ति हैं।
राम
चरित मानस का आश्रय करने से हमारी दरिद्रता मिट जाती हैं।
6
Thursday, 13/07/2023
अपनी
मातृ भाषा न्हीं भूलनी चाहिये।
घरमें
अपनी मातृ भाषा बोलनी चाहिये।
मंत्र महामनि बिषय ब्याल
के। मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
हरन मोह तम दिनकर कर से।
सेवक सालि पाल जलधर से॥5॥
विषय
रूपी साँप का जहर उतारने के लिए मन्त्र और महामणि हैं। ये ललाट पर लिखे हुए कठिनता
से मिटने वाले बुरे लेखों (मंद प्रारब्ध) को मिटा देने वाले हैं। अज्ञान रूपी अन्धकार
को हरण करने के लिए सूर्य किरणों के समान और सेवक रूपी धान के पालन करने में मेघ के
समान हैं॥5॥
सालि
का अर्थ खेती हैं।
नखशीश
शीतलता का प्रतीक दाये पांव के अंगेठे पर किया हुआ चंदन तीलक हैं।
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि
तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न
त्वं वेत्थ परन्तप।।4.5।।
4.5
The Blessed Lord said Many births of Mine have passed as well as of thine, O
Arjuna; I know them all but thou knowest not, O Parantapa (scorcher of foes).
परमपिता
परमात्मा ने कहा: हे अर्जुन, आपके और मेरे दोनों के अनेक जन्म हुए हैं। आप उन्हें भूल
गए हैं, जबकि मैं उन सभी को याद करता हूं, हे परंतप।
सर्प
दंश का झहर मणि से दूर होता हैं. लेकिन ऐसा चिंतामणि दूर्लभ हैं।
मंत्र
के द्वारा भी सर्प दंश का झहर उतारा जा शकता हैं।
राम
चरित मानस चिंतामणि हैं और महामंत्र भी हैं।
मंत्र
गुप्त रखना चाहिये।
मंत्र
का अर्थ विचार हैं, गुप्त विचार हैं।
भजनानंदी
का शरीर सुडोळ होता हैं, अपवाद हो शकते हैं।
भजनानंदी
शरीर से कभी दुर्गंध नहीं आती हैं, एक नुरानी खुश्बु – डिवाईन स्मेल आती हैं।
भजनानंदी
के उत्सर्ग पदार्थ से गंध नहीं आती हैं।
भजनानंदी
की गति को कोई रोक नहीं शकता हैं।
विवेक
चूडामणि
निर्धनोऽपि सदा तुष्टोऽप्यसहायो
महाबलः।
नित्यतृप्तोऽप्य भुंजानोऽप्यसमः
समदर्शनः।।
वह
निर्धन होने पर भी सदा संतुष्ट, असहाय होने पर महा बलवान, भोजन न करने पर भी नित्य
तृप्त और विषम भाव से बर्तता हुआ भी समदर्शी होता है।
भजनानंदी
– साधु निर्धान होते हुए सदा संतुष्ट रहता हैं, असहाय होते हुए महा बलवान होता हैं,
भोजन न करते हुए सदा तृप्त रहता हैं, उसे कोई विषय नहीं होता हैं और समदर्शी रहता हैं।
वैसे
बुद्ध पुरुष हमारी समज में नहीं आअता हैं लेकिन वह समदर्शी रहता हैं।
परम
अव्यवस्था का नाम परमात्मा हैं।
प्रत्येक
रोग को राम चरित मानस मिटा देता हैं।
राम
चरित मानस महा मोह को मिटानेके लिये सूर्य किरन समान हैं।
राम
चरित मानस अपने आश्रित का पालन करता हैं।
पून्य
का फल समय आने पर मिलता हैं।
7
Friday, 14/07/2023
सहज
कार्य
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि
न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।
।18.48।।हे
कुन्तीनन्दन ! दोषयुक्त होनेपर भी सहज कर्मका त्याग नहीं करना चाहिये; क्योंकि सम्पूर्ण
कर्म धुएँसे अग्निकी तरह किसी-न-किसी दोषसे युक्त हैं।
।।18.48।।
हे कौन्तेय ! दोषयुक्त होने पर भी सहज कर्म को नहीं त्यागना चाहिए; क्योंकि सभी कर्म
दोष से आवृत होते है, जैसे धुयें से अग्नि।।
ऊंघ
में श्वास लेना, आंख की पलको का कार्य, रुधिराभिसरण क्रिया वगेरे सहज कर्म हैं।
वैराग्य
सहज आता हैं।
सहज बिरागरूप मनु मोरा।
थकित होत जिमि चंद चकोरा॥
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ।
कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ॥2॥
मेरा
मन जो स्वभाव से ही वैराग्य रूप (बना हुआ) है, (इन्हें देखकर) इस तरह मुग्ध हो रहा
है, जैसे चन्द्रमा को देखकर चकोर। हे प्रभो! इसलिए मैं आपसे सत्य (निश्छल) भाव से पूछता
हूँ। हे नाथ! बताइए, छिपाव न कीजिए॥2॥
सुगम
कर्म
दुर्गम
कर्म – यह कर्म कष्टदायक होता हैं।
अभिमत दानि देवतरु बर से।
सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
सुकबि सरद नभ मन उडगन से।
रामभगत जन जीवन धन से॥6॥
मनोवांछित
वस्तु देने में श्रेष्ठ कल्पवृक्ष के समान हैं और सेवा करने में हरि-हर के समान सुलभ
और सुख देने वाले हैं। सुकवि रूपी शरद् ऋतु के मन रूपी आकाश को सुशोभित करने के लिए
तारागण के समान और श्री रामजी के भक्तों के तो जीवन धन ही हैं॥6॥
राम
चरित मानस कल्पतरु हैं।
राम
चरित मानस आश्रित के लिये सुलभ और सुखद हैं।
राम
चरित मानस भक्तो के लिये जीवन धन हैं।
आश्रित
के लिये राम चरित मानस साधु हैं।
साधु
आश्रित का यथार्थ कल्याण करता हैं।
राम
चरित मानस साधु हैं।
जो
पांच वस्तु करे वह साधु हैं।
१
जो
हमारे कल्याण के विचार हैं वैसा मंत्र दे वह साधु हैं। साधु कल्याणकारी विचार दाता
हैं। साधु मंत्र दाता हैं।
२
जो
दिशा बताये वह साधु हैं। અધુરું જ્ઞાન જેલમાં મોકલી દે.
अपना
शरीर एक कमरा हैं जिसमें क्रोध की. लोभ की और कामना की स्वीच कहां हैं वह हमें ढूंढ
लेनी चाहिये। ઘડો ( આ શરીર) અને ઘડી (મળેલી પળ) સાચવી લેવી જોઈએ.
સૂર્યોદય,
મધ્યાહ્ન અને સૂર્યાસ્ત નું મહત્વ છે, પૂજનીય છે. અને તેથી જ ત્રિકાલ સંધ્યા કરવામાં
આવે છે.
बड़े भाग मानुष तनु पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा।।
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा।
पाइ न जेहिं परलोक सँवारा।।4।।
बड़े
भाग्य से यह मनुष्य-शरीर मिला है। सब ग्रन्थों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को
भी दुर्लभ है (कठिनतासे मिलता है)। यह साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर
भी जिसने परलोक न बना लिया,।।4।।
મનુષ્ય
શરીર, માનવતા અને મોક્ષ ની વૃત્તિ દુર્લભ છે. સાધુ પુરુષ નો સંગ દુર્લભ છે.
પ્રેમ
મોક્ષનો દરવાજો છે. …… આદિ શંકર
३
साधु
आश्रय दाता होना चाहिये
४
साधु
रक्षण दाता होना चाहिये।
सकल सुकृत फल भूरि भोग
से। जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
सेवक मन मानस मराल से। पावन गंग तरंग माल से॥7॥
सम्पूर्ण
पुण्यों के फल महान भोगों के समान हैं। जगत का छलरहित (यथार्थ) हित करने में साधु-संतों
के समान हैं। सेवकों के मन रूपी मानसरोवर के लिए हंस के समान और पवित्र करने में गंगाजी
की तरंगमालाओं के समान हैं॥7॥
राम
चरित मानस हंस हैं।
पितृ
ॠण, देव ॠण और आचार्य ॠण से मुक्त होना चाहिये। जनोई के तीन धागे का अर्थ यह हैं।
8
Saturday, 15/07/2023
कथामें
कैसे आना चाहिये, कथा श्रवण किस लिये करनी चाहिये और कथा श्रवण के बाद क्या करना चाहिये?
कथामें
उत्साह के साथ आना चाहिये और ऐसा समजना चाहिये कि मैं सत्य, प्रेम और करुणा के मंडप
में जा रहा हुं।
कथा
उत्साह वर्धन के लिये सुननी चाहिये।
कथा
श्रवण के बाद उससे जो उत्साह वर्धन हुआ हैं वह उत्साह वर्धन के प्रसाद को अपने परिवारमें
बांटना चाहिये जिससे परिवार में सत्य का राज्य, प्रेम का राज्य और करुणा का राज्य आये।
ईच्छा
के पांच प्रकार हैं। ईच्छा और एषणा अलग हैं, एषणा का अर्थ है-कामना। ऐसी कामना जिसमें
मुख्यत: विवेक का अभाव रहता है। जिस व्यक्ति के मन में सदा कामनाएं बनी रहती हैं, वह
किसी भी कार्य या सिद्धांत पर नहीं टिक सकता है। एषणाएं मुख्य रूप से तीन प्रकार की
होती हैं-वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा।
ईच्छा
के प्रकार
१
भोगेच्छा
– प्रत्येक व्यक्ति में भोगेच्छा होति हैं। हमारी प्रत्येक ईन्द्रीय कुछ न कुछ भोग
की ईच्छा करती हैं। अच्छी ईच्छा ठाकोरजी का भोग बन जाती हैं।
शिव
का तांडव नृत्य, नारद का नृत्य, हनुमानजी का नर्तन, चैतन्य महाप्रभुजी भी नाचे थे,
मीरा ने नृत्य किया, नरसिंह महेताने नृत्य किया, तुकाराम भी नाचे वगेरे
मन
का नृत्य भी होता हैं।
आत्मा
भी नर्तक हैं।
२
मानेच्छा
– समाज में मान मिले ऐसी ईच्छा
३
महेच्छा
– विरल कार्य करनेकी ईच्छा
४
मोक्ष
की ईच्छा
५
मनोरथेच्छा
कथा
के यजमान ने कहा कि कथा यजमान शब्द बोज लगता हैं।
मनोरथ,
संकल्प, प्रतिज्ञा, पर्ण, वगेरे वचन बद्धता नहीं हैं।
उत्साह
हमें बुढा नहीं होने देता हैं।
जो
सत्य को पकड लेता हैं उस के लिये समर्पण अपनेआप आ जाता हैं। बालक की अपनी छाया पकडने
का उदाहरण।
राम सत्य हैं, लक्ष्मण समर्पण हैं।
धरती
की शोभा – श्रींगार समुद्र, नदीयां, पर्वत, अढारभार वनस्पती, साधु की उपस्थिति वगेरे
हैं, यह सब साधु के पर्याय हैं।
वसुधैव
कुटुंबकम् और वसुधैव संवेदनम् होना चाहिये।
कुपथ कुतरक कुचालि कलि
कपट दंभ पाषंड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि
इंधन अनल प्रचंड॥32 क॥
श्री
रामजी के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दम्भ और पाखण्ड को
जलाने के लिए वैसे ही हैं, जैसे ईंधन के लिए प्रचण्ड अग्नि॥32 (क)॥
यह
सात यज्ञ के समिध हैं।
गुरु
के पास समिध पानी लेकर जाना चाहिये।
गुरु
अपने आश्रित की सभी बुराईयों को समिध की तरह यज्ञ में होम देता हैं।
१
कुपथ
२
कुतर्क
३
कुचाल
४
कपट
५
दंभ
६
पाखंड
७
कलि
प्रभाव
यह
सात समिध को गुरु हवन में होम देता हैं।
राम
चरित मानस प्रेम यज्ञ हैं जिस में यह सब समिध बन जाते हैं।
स्वार्थ
कुपथ हैं उसे जलानेसे परमार्थ मिलेगा।
विभूति
– भष्म ऐश्वर्य हैं।
२ कुतर्क – तर्क अच्छा हैं, कुतर्क दुष्ट तर्क
हैं। बालकांड में सती पांच तर्क करती हैं।
हरि हर पद रति मति न कुतर
की।
भगवान
शंकर रामजी के लिये पांच संबोधन करते हैं, सत, चित, आनंद, जग पावन, मनोज नसावन।
जय सच्चिदानंद जग पावन।
अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
चले जात सिव सती समेता।
पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥2॥
जगत्
को पवित्र करने वाले सच्चिदानंद की जय हो, इस प्रकार कहकर कामदेव का नाश करने वाले
श्री शिवजी चल पड़े। कृपानिधान शिवजी बार-बार आनंद से पुलकित होते हुए सतीजी के साथ
चले जा रहे थे॥2॥
पशु
पक्षी में मन होता हैं, चित नहीं होता हैं।
गुरु
कोबिज के पत्ते की तरह हर पत्ता खोलकर आश्रित को शून्य कर देता हैं।
तीन
जगह तर्क नहीं करना चाहिये – शास्त्र उपर तर्क नहीं करना चाहिये, महापुरुष – संत पर
तर्क नहीं करना चाहिये, शास्वत सत्ता उपर तर्क नहीं करना चाहिये।
३ कुचाल – गलत चाल, किसी के नुकशान के लिये
गलत चाल नहिं करनी चाहिये।
४ कलि – कलिप्रभाव मन, बुद्धि और चित उपर बहुत
हैं, ऐसे प्रभाव को समिध बनाकर जला देना चाहिये।
५ कपट – बालकांड में सतीने कपट किया, कपटमुनिने
कपट किया; अयोध्याकांड में कैकेयी और मंथराने कपट किया; अरण्यकांड में ईन्द्र के बेटेने
कपट किया, मारीच ने कपट किया, रावण ने कपट किया; किष्किन्धाकांड में मायावी राक्षस
ने कपट किया, सुंदरकांड में सिंहिका ने कपट किया, लंकाकांड में कालनेमीने कपट किया,
रावण ने कपट किया, मेघनादने कपट किया; उत्तरकांड में काकभुषुडीने अपने पुर्व अवतार
में कपट किया – वह कपट से देवा करता था।
६
दंभ – जो हम नही हैं वह दिखानेका दिखावा करना।
७
पाखंड
– अखंड ईश्वर के बारे में थोडी सी जानकारी पाने के बाद अखम्ड ईश्वर को सब तरह जान लिया
ऐसा करना पाखंड हैं।
राम
चरित मानस यह सात को समिध बनाकर जला देता हैं।
9
Sunday, 16/07/2023
वंशे
सदैव भवतां हरिभक्तिरस्तु।
परिवार
में सेतु कैसे बने> समन्वय कैसे रहे?
सेतु
बनाने के चार कारण हैं और न बननेके भी चार कारण हैं। यह चार कारण काल, कर्म, स्वभाव
और गुण हैं।
ईस्वर अंस जीव अबिनासी।
चेतन अमल सहज सुख रासी।।
कथा
के ९ दिन HOLY DAYS हैं।
१
काल
– काल दुःख का कारण हैं जैसे वर्षा के कारण बाढ आना, बहुत गरमी पडना वगेरे काल के कारण
पैदा हुए दुःख हैं।
२
हमारा
कर्म हमें सुख दुःख देता हैं।
कर्म करते
समय फल के सामने न देखो – फल की अपेक्षा न रखो लेकिन सिर्फ कर्म के सामने देखो।
३
गुण
– सत्व गुण शांति देता हैं, रजोगुण थकावट देता हैं और तमोगुण प्रमादी बना देता हैं।
४
स्थिति
और काल का स्वीकार कर लेनेका स्वभाव होना चाहिये।
दर्पण
में खुद को देखो – अपने अवगुण देखो, दुरबीन से दुसरों के अवगुण मत देखो।
रामचरित राकेस कर सरिस
सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित
बिसेषि बड़ लाहु॥32 ख॥
रामचरित्र
पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणों के समान सभी को सुख देने वाले हैं, परन्तु सज्जन रूपी
कुमुदिनी और चकोर के चित्त के लिए तो विशेष हितकारी और महान लाभदायक हैं॥32 (ख)॥
राकेस
का अर्थ चंद्रमा हैं।
राम
कथा सुख देती हैं।
ऐसे राम हैं दुःख हरिन ………
हमारा
ह्मदय हि राम चरित हैं जहां भगवान राम लक्ष्मण, सीता, हनुमानजी शित बिराजते हैं।
बापु
ने कहा मुझे ९ दिन दो, मैं तुम्हे नवजीवन दूंगा।
एहिं कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।
संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।3।।
[तुलसीदासजी
कहते हैं-] इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साध नहीं
है। बस, श्रीरामजीका ही स्मरण करना, श्रीरामजी का ही गुण गाना और निरन्तर श्रीरामजीके
ही गुणसमूहोंको सुनना चाहिये।।3।।
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह
समान रघुबीर।।
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु
बिषम भव भीर।।130क।।
हे
श्रीरघुवीर ! मेरे समान कोई दीन नहीं है और आपके समान कोई दीनों का हित करनेवाला नहीं
है। ऐसा विचार कर हे रघुवंशमणि ! मेरे जन्म-मरणके भयानक दुःखकों हरण कर लीजिये ।।130(क)।।
कामिहि नारि पिआरि जिमि
लोभिहि प्रिय जिमि दाम।।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय
लागहु मोहि राम।।130ख।।
जैसे
कामीको स्त्री प्रिय लगती है और लोभी को जैसे धन प्यारा लगता है, वैसे ही हे रघुनाथजी
! हे राम जी ! आप निरन्तर मुझे प्रिय लगिये।।130(ख)।।
यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं
सुकविना श्रीशम्भुना दुर्गमं
श्रीमद्रामपदाब्जभक्तिमनिशं
प्राप्त्यै तु रामायणम्।
मत्वा तद्रघुनाथनामनिरतं
स्वान्तस्तंमःशान्तये
भाषाबद्धमिदं चकार तुलसीदासस्तथा
मानसम्।।1।।
श्रेष्ठ
कवि भगवान् शंकरजीने पहले जिस दुर्गम मानस-रामायणकी, श्रीरामजीके चरणकमलोंके नित्य-निरन्तर
[अनन्य] भक्ति प्राप्त होनेके लिये रचना की थी, उस मानस-रामायणको श्रीरघुनाथजीके नाममें
निरत मानकर अपने अन्तः करणके अन्धकारको मिटानेके लिये तुलसीदासने इस मानसके रूपमें
भाषाबद्ध किया।।1।।
पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं
विज्ञानभक्तिप्रदं
मायामोहमलापहं सुविमलं
प्रेमाम्बुपुरं शुभम्।
श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं
भक्त्यावगाहन्ति ये
ते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति
नो मानवाः।।2।।
यह
श्रीरामचरितमानस पुण्यरूप, पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और भक्तिको
देनेवाला, माया, मोह और मलका नाश करनेवाला, परम निर्मल प्रेमरूपी जलसे परिपूर्ण तथा
मंगलमय है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसाररूपी सूर्यकी
अति प्रचण्ड किरणोंसे नहीं जलते।।2।।
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