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Sunday, May 22, 2022

मानस जय सियाराम - માનસ જય સિયારામ - 896

 

રામ કથા - 896

માનસ જય સિયારામ

જનકપુર, નેપાળ

શનિવાર, તારીખ ૨૧/0૫/૨0૨૨  થી રવિવાર ૨૯/0૫/૨0૨૨

 

મુખ્ય ચોપાઈ

सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेमु काहुँ न लखि परै।

मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै॥

करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै।

बलि जाउँ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै॥

 

 

 

 

 

1

Saturday, 21/05/2022

 

सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेमु काहुँ न लखि परै।

मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै॥2॥

 

स्वयं सूर्यदेव प्रेम सहित अपने कुल की सब रीतियाँ बता देते हैं और वे सब आदरपूर्वक की जा रही हैं। इस प्रकार देवताओं की पूजा कराके मुनियों ने सीताजी को सुंदर सिंहासन दिया। श्री सीताजी और श्री रामजी का आपस में एक-दूसरे को देखना तथा उनका परस्पर का प्रेम किसी को लख नहीं पड़ रहा है, जो बात श्रेष्ठ मन, बुद्धि और वाणी से भी परे है, उसे कवि क्यों कर प्रकट करे?॥2॥

 

करि बिनय सिय रामहि समरपी जोरि कर पुनि पुनि कहै।

बलि जाउँ तात सुजान तुम्ह कहुँ बिदित गति सब की अहै॥

परिवार पुरजन मोहि राजहि प्रानप्रिय सिय जानिबी।

तुलसीस सीलु सनेहु लखि निज किंकरी करि मानिबी॥

 

विनती करके उन्होंने सीताजी को श्री रामचन्द्रजी को समर्पित किया और हाथ जोड़कर बार-बार कहा- हे तात! हे सुजान! मैं बलि जाती हूँ, तुमको सबकी गति (हाल) मालूम है। परिवार को, पुरवासियों को, मुझको और राजा को सीता प्राणों के समान प्रिय है, ऐसा जानिएगा। हे तुलसी के स्वामी! इसके शील और स्नेह को देखकर इसे अपनी दासी करके मानिएगा।

 

यह मन, बुद्धि से पर का विषय हैं।

मा जानकी का चरित्र सातो कांड में हैं।

जानकी का किशोरी रुप

जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥

ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥

 

राजा जनक की पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥4॥

जानकी शांति हैं, जानकी सब पर कृपा करती हैं।

राम विश्राम हैं।

सीता माया हैं, भक्ति हैं, शक्ति हैं, मातृ शरीर हैं, परम प्रकृति हैं, अदभूत ऊर्जा हैं, राम परम पुरुष हैं, सीता परा अंबा हैं, पृथ्वी ऊर्जा प्रदान करती हैं। जल से भी ऊर्जा प्राप्त हैं – महालक्ष्मी जो जल से पेदा हुई ऊर्जा हैं।

अग्नि से प्रगट हुई द्रौपदी ऊर्जा हैं।

राम विश्राम होते हुए सीता की – शांति की खोजमें नीकलते हैं।

उत्तरकांड में जानकी महारानी के रुप में आती हैं।

जानकी के कारण कई यज्ञ संपन्न हुए हैं।

हमें बागमें राम और जानकी के हेतु तरह जाना चाहिये। राम गुरु पूजा के लिये फूल लेने के लिये और जानकी गौरी पूजा के लिये बागमें जाते हैं।

जनकपुरमें सुदरता का यज्ञ संपन्न हुआ हैं। समर यज्ञ और धनुष्य यज्ञ भी जनकपुर में हुआ हैं।

जानकी ने सात पर विशेष कृपा करी हैं।

मानस – कथा - अर्थ हैं, मानस रस हैं, मानस शांत रस हैं, मानस छंद – वेद – लयबध्द्दता हैं, मानस मंगलकारी हैं।

 


Sunday, May 1, 2022

मानस प्रथम सोपान - 895

 

રામ કથા - 895

માનસ પ્રથમ સોપાન

લલિતપુર, ઉત્તર પ્રદેશ

શનિવાર, તારીખ ૩0/0૪/૨0૨૨ થી રવિવાર, 0૮/0૫/૨0૨૨

મુખ્ય ચોપાઈ

प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी।।

पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रावन अवतारा।।

 

प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई।।

 

बालचरित कहि बिबिधि बिधि मन महँ परम उछाह।।

रिषि आवगन कहेसि पुनि श्रीरघुबीर बिबाह।।

 

1

Saturday, 30/04/2022

 

प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी।।

पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रावन अवतारा।।4।।

 

हे भवानी ! पहले तो उन्होंने बड़े ही प्रेम से रामचरितमानस सरोवर का रूपक समझाकर कहा। फिर नारद जी का अपार मोह और फिर रावण का अवतार कहा।।4।।

 

प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई।।5।।

 

फिर प्रभु के अवतारकी कथा वर्णन की। तदनन्तर मन लगाकर श्रीरामजीकी बाललीलाएँ कहीं।।5।।

 

बालचरित कहि बिबिधि बिधि मन महँ परम उछाह।।

रिषि आवगन कहेसि पुनि श्रीरघुबीर बिबाह।।64।।

 

मनमें परम उत्साह भरकर अनेकों प्रकारकी बाललीलाएँ कहकर, फिर ऋषि विश्वामित्रजी का अयोध्या आना और श्रीरघुवीरका विवाह वर्णन किया।।64।।

सनातन वैदिक धर्ममें सात की महिमा हैं, सात समुद्र हैं, सात उपरके लोक, सात पाताल, संगीतके सुर सात हैं।

गरुड ने सात प्रश्न पूछे हैं।

बालकांड में सात की वंदना करी गई हैं।

पांव पकडना बंध हो जाय और हाथ पकडना शुरु हो जाय तो वही सही विकास हैं।

विश्राम तब मिलेगा जब सबके हाथ छोडकर किसी एकका हाथ पकड लो – किसी एककी शरणागति का स्वीकार कर लेना हि सही विश्राम हैं।

हरि रुठे तो गुरु बचाता हैं, गुरु कभी भी रुठता नहीं हैं, गुरु दशावतार का विग्रह हैं।

दशावतारके सभी प्रधान लक्षण गुरु – साधु पुरुष में हैं, गुरु के चरण का पासवर्ड भरोंसा हैं।

प्रेमी के आंसु दिखाई देने चाहिये।

गुरु आंसु देखता हैं।

गुरु आंसु को झिलता हैं।

गुरु ऐसी करुणा करता हैं कि हमारी आंखसे प्रेम के हि आंसु निकले।

 

જેનાં નેણ અને વેણ દિવ્ય હોય તેનો સંગ કરવો.

સાધુ કોઈની ઉપેક્ષા ન કરે તેમજ કોઈ અપેક્ષા પણ ન રાખે.