રામ કથા
માનસ રુદ્રાભિષેક
પેરિસ, ફ્રાન્સ
શનિવાર, તારીખ ૧૭/૦૮/૨૦૧૯ થી રવિવાર, તારીખ ૨૫/૦૮/૨૦૧૯
મુખ્ય પંક્તિઓ
रुद्रहि देखि मदन भय माना।
दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥
बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना।
सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना॥
रुद्रहि देखि मदन भय माना।
दुराधरष दुर्गम भगवाना ॥
बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना।
सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना॥
૧
શનિવાર, ૧૭/૦૮/૨૦૧૯
भए तुरत सब जीव सुखारे। जिमि मद उतरि गएँ मतवारे॥
रुद्रहि देखि मदन भय माना। दुराधरष दुर्गम भगवाना॥2॥
तुरंत ही सब जीव वैसे ही सुखी हो गए, जैसे मतवाले (नशा पिए हुए) लोग मद (नशा) उतर जाने पर सुखी होते हैं। दुराधर्ष (जिनको पराजित करना अत्यन्त ही कठिन है) और दुर्गम (जिनका पार पाना कठिन है) भगवान (सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य रूप छह ईश्वरीय गुणों से युक्त) रुद्र (महाभयंकर) शिवजी को देखकर कामदेव भयभीत हो गया॥2॥
बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना। सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना॥
मागहिं हृदयँ महेस मनाई। कुसल मातु पितु परिजन भाई॥4॥
(अनिष्टशान्ति के लिए) वे प्रतिदिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देते थे। अनेकों विधियों से रुद्राभिषेक करते थे। महादेवजी को हृदय में मनाकर उनसे माता-पिता, कुटुम्बी और भाइयों का कुशल-क्षेम माँगते थे॥4॥
ऊँ याते रुद्र शिवातनूरघोरा पापकाशिनी।
तयानस्तावा शन्तमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि।
ऊँ याते रुद्र शिवातनूरघोरा पापकाशिनी।
तयानस्तावा शन्तमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि।