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Friday, November 3, 2017

માનસ મસાન ૯ ૨વિવાર, ૨૯/૧૦/૨૦૧૭

માનસ મસાન 
૨વિવાર, ૨૯/૧૦/૨૦૧૭

કથા શ્રવણ કર્યા પછી નીચે મુજબની ૭ વસ્તુઓને ગાંઠે બાંધી લેવી જે એક આપણી સંપદા બની જશે. આ ૭ વાતો એ માનસ મસાન કથાનો સાર છે.
૧       આપને સુખી થવું છે એવો પાકો નિર્ણય કરવો. કથા શ્રવણ દરમ્યાનના શબ્દોનું આંસુમાં રૂપાંતરણ એ કથાનો સાર છે. બીજાને દુઃખી કર્યા સિવાય આપણે સુખી થવું. સુખી થવા માટે શામ, દામ, દંડ અને ભેદની નીતિ યોગ્ય નથી. બીજાને દુઃખી કરી પોતે સુખી નથી થવું ત્વો નિર્ણય લો. બાલકાંડનો સાર સુખ પ્રાપ્તિ છે. પુરુષર્થથી મેળવેલ સુખ સાપેક્ષ છે. સાપેક્ષ સુખ એટલે તે સુખ પાછળ દુઃખ પણ જોડાયેલ છે. કોઈના પ્રસાદ દ્વારા મળેલ સુખ એ સાપેક્ષ સુખ નથી, આ સુખ સાથે દુઃખ જોડાયેલ નથી. બીજાને દુઃખી કરી મેળવેલ સુખ્ન્જો પ્રસાદથી પણ મળ્યું હોય તો તેવું સુખ પણ સાપેક્ષ સુખ બની જાય છે, તેની સાથે દુઃખ જોડાઈ જાય છે. પ્રારબ્ધ અને પુરૂષાર્થમાં કિસ્મત – પ્રારબ્ધ બેઠેલું છે જ્યારે પુરૂષાર્થ એ ક્રિયાનવિત છે. લક્ષ્મીની પ્રાપ્તિ – ધન પ્રાપ્તિ એ આપણા પુરૂષાર્થનું પરિણામ છે. કિસ્મતની રેખાઓ તો હાથમાં છે જ્યારે તે રેખાઓથી આંગળીઓ આગળ છે.
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं
श्री जानकीजी और श्री रामजी की कृपा से सदा सुख पावेंगे

રહેમથી મળેલ સુખ જ દુઃખ મુક્ત છે.
મહેનત કરવાથી કંઈક મળે,
દહેશતથી કશું જ નથી મળતું,
રહેમતથી બધું જ મળે છે.
પ્રસાદથી મળેલ સુખને વહેંચો.
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ।।
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ।। ।।
ईश, जगत में जो कुछ है सब में रमकर गति करता है
कण-कण को गतिमान बनाकर सकल सृष्टि वह रचता है।।
त्याग भाव से भोग करे नर , लोभ नहीं मन में लावे
धन किसका ?सब कुछ ईश्वर का, सदा ध्यान में यह आवे ।। ।।
ईश, जगत में जो कुछ है सब में रमकर गति करता है
कण-कण को गतिमान बनाकर सकल सृष्टि वह रचता है।।
त्याग भाव से भोग करे नर , लोभ नहीं मन में लावे
धन किसका ?सब कुछ ईश्वर का, सदा ध्यान में यह आवे ।। ।।

सब कुछ ईश्वर की ही माया,
तेरा मेरा कुछ भी नहीं है |
जग को अपना समझ रे नर !
                                 तू तेरा सब कुछ वह ही है |    
******
કાશીમાં શોક નથી પણ શ્લોક છે.
૨       પ્રેમ
આપણામાં પ્રેમનાં આંસુ હોવાં જોઈએ.
ઈશ્ક ઈન્સાનની જરૂરીયાત છે.
પ્રેમ નાત, જાત, ઊંચ, નીચ ન જુએ.
દિલ હૈ કદમોમએં કિસીકે તો શીર ઝુકા હો યા ન હો
બંદગી (પ્રેમ) તો મેરી ફિતરત હૈ, ખુદા હો યા ન હો.
તુમ અગર ભૂલ ભી જાઓ તો હક હૈ તુમ્હે ભૂલનેકા
ईस्वर अंस जीव अबिनासीचेतन अमल सहज सुख रासी।।
જયતિ તેSધિકં જન્મના વ્રજઃ
શ્રયત ઈન્દિરા શશ્વદત્ર હિ |
દયિત દૃશ્યતાં દિક્ષુ તાવકા-
સ્ત્વયિ ધૃતાસવસ્ત્વાં વિચિન્વતે ||
હું મૃત્યુ શીખવાડુ છું  …………… ઓશો
હું રડવાનું શીખવાડુ છું. ……………. મોરારી બાપુ
कबीरा हंसना छोड दे रोने से कर प्रीत
પ્રેમી જ્યાં મસ્તક નમાવે છે ત્યાં પ્રિયતમ હોય છે.
દિવસમાં ત્રણ સમયે અશ્રુ આવવાં જોઈએ.
૧ સવારે ઊઠતાં અશ્રુ આવવાં જોઈએ, આ અશ્રુ દ્વારા હરિનો આભાર માનો કે હે હર્રિ, તે મને એક દિવસની જીંદગી આપી.
૨ મધ્યાન્હે અશ્રુ આવવાં જોઈએ. સૂર્ય મધ્યાન્હે હોય, પ્રગતિ શિખર ઉપર હોય ત્યારે કોઈને મદદ કરી અશ્રુ આવવાં જોઈએ.
૩ રાત્રે સુતી વખતે અશ્રુ આવવાં જોઈએ. દિવસના ૨૪ કલાક દરમ્યાન કોઈને ઠેસ પહોંચી હોય તો માટે હે પરમાત્મા મને ક્ષમા કરી દે.
આ નૂતન ત્રિકાલ સંધ્યા છે.
ભરત જેવા પ્રેમ મૂર્તિનું ચરિત્ર સાંભળવાથી પ્રેમ પ્રાપ્ત થાય.
भरत  चरित  करि  नेमु  तुलसी  जो  सादर  सुनहिं
सीय  राम  पद  पेमु  अवसि  होइ  भव  रस  बिरति
तुलसीदासजी  कहते  हैंजो  कोई  भरतजी  के  चरित्र  को  नियम  से  आदरपूर्वक  सुनेंगेउनको  अवश्य  ही  श्रीसीतारामजी  के  चरणों  में  प्रेम  होगा  और  सांसारिक  विषय  रस  से  वैराग्य  होगा
૩ જીવનમાં સુખ મળે, પ્રેમ મળે પછી સતસંગ કરો. કોઈ મહદના ચરણમાં જાવ.
दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग
युवती स्त्रियों का शरीर दीपक की लौ के समान है, हे मन! तू उसका पतिंगा बनकाम और मद को छोड़कर श्री रामचंद्रजी का भजन कर और सदा सत्संग कर
સતસંગથી સુખ વધશે, પ્રેમ વધશે. આ અરણ્યકાંડનો સાર છે.
૪ મૈત્રી – મૈત્રીનો મનોરથ કરો. કોઈની સાથે દુશ્મની નહીં. આપણી સાથે દુશ્મની રાખે તેની સાથે પણ મૈત્રી કરો.
મૈત્રી સાધુતાનું એક લક્ષણ છે.
વૈષ્ણવજન તો તેને કહીએ,  જે  પીડ પરાઈ  જાણે રે;

પરદુ:ખે ઉપકાર કરે તોયે, મન અભિમાન ન આણે રે
સકળ  લોકમાં  સહુને  વંદે.   નિંદા  ન  કરે  કેની  રે;
વાચ-કાછ-મન નિશ્ચલ રાખે, ધન ધન જનની તેની રે
૫ શ્રવણ – એક બીજાને સાંભળો.
૬ વિવેક – લંકાકાંડના ૩ પરિણામ છે, વિજય, વિવેક અને વિભૂતિ.
વિજયની અપેક્ષા છોડી દો.
હારેલાને કોઈ જ ન હરાવી શકે.
ઐશ્વર્ય ન જોઈએ પણ ઈશ્વર જોઈએ.
વિવેક રાખો.
૭ પરમ વિશ્રામ
साधो रे, ये मुर्दों का गाँव
पीर मरी पैगंबर मरी है
मरी है जिंदा जोगी
राजा मरी है, परजा मरी है
मरी है बैद और रोगी
साधो ये मुर्दो का गाँव
साधो ये मुर्दो का गाँव
पीर मरे पैगम्बर मरिहै
मरि है जिन्दा जोगी
साधो......................
राजा मरिहै परजा मरिहै
मरिहै वैध और रोगी
साधो......................
चन्दा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहै धरती आकासा
साधो......................
चौदोहु के चौधरि मरिहै
इन हु कि का आसा
साधो......................
नौ हु मरि है दस हु मरिहै
मरिहै सह्ज अठासी
साधो......................
तैतीस कोटी देवता मरिहै
बडी काल की बाजी
साधो......................
नाम अनाम अनंत रह्त है
दूजा तत्व ना कोई
साधो......................
कहे कबीर सुनो भई साधो
भटक मरो मत कोई
साधो......................
ચૌદ બ્રહ્નાંડ મડદાંના જ ગામ છે.
અંતે તો ફક્ત હરિનામ જ રહેશે. જે પૂર્ણ હોય કે શૂન્ય હોય તે જ બચે. હરિનામ પૂર્ણ છે અને શૂન્ય પણ છે.

૧૪ વ્યક્તિ જીવતા હોવા છતાં મરેલા જ છે.
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ाअति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥
सदा रोगबस संतत क्रोधीबिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥
वाममार्गी, कामी, कंजूस, अत्यंत मूढ़, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा, नित्य का रोगी, निरंतर क्रोधयुक्त रहने वाला, भगवान्विष्णु से विमुख, वेद और संतों का विरोधी, अपना ही शरीर पोषण करने वाला, पराई निंदा करने वाला और पाप की खान (महान्पापी)- ये चौदह प्राणी जीते ही मुरदे के समान हैं
વામ માર્ગી એ છે જે કાયમ વાંકો જ ચાલે, ઊલટું જ કરે.
સ્મશાન એટલે સમ + શાન – જ્યાં ઈજ્જતથી સુવા મળે તે સ્થાન.
उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥

(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! संत की यही बड़ाई (महिमा) है कि वे बुराई करने पर भी (बुराई करने वाले की) भलाई ही करते हैं।
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा।पर निंदा सम अघ न गरीसा।।11।।
वेदोंमें अहिंसा को परम धर्म माना है और परनिन्दा के समान भारी पाप नहीं है।।1।।
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥
श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥
આમ રામ ચરિત માનસના સાત કાંડના ૭ સુત્ર છે.
૧ સુખ
૨ પ્રેમ
૩ સતસંગ
૪ મૈત્રી
૫ શ્રવણ
૬ ઐશ્વર્ય અને વિવેક
૭ પરમ વિશ્રામ
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ।।
एहिं कलिकाल साधन दूजाजोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहिसंतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।3।।
[तुलसीदासजी कहते हैं-] इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साध नहीं हैबस, श्रीरामजीका ही स्मरण करना, श्रीरामजी का ही गुण गाना और निरन्तर श्रीरामजीके ही गुणसमूहोंको सुनना चाहिये।।3।।
ભગવાન શિવજીએ રામ રાજ્યાભિષેક સમયે કરેલ સ્તુતિ
जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहिं जनं।।
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो।।1।।
दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा।।
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे।।2।।
महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं।।
मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी।।3।।
मनजात किरात निपातकिए। मृग लोक कुभोग सरेन हिए।।
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे। बिषया बन पावँर भूलि परे।।4।।
बहुरोग बियोगन्हि लोग हए। भवदंध्रि निरादर के फल ए।।
भव सिंधु अगाध परे नर ते। पद पंकज प्रेम न जे करते।।5।।
अति दीन मलीन दुखी नितहीं। जिन्ह कें पद पंकज प्रीति नहीं।।
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें। प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें।।6।।
नहिं राग न लोभ न मान मदा। तिन्ह कें सम बैभव वा बिषदा।।
एहि ते तव सेवक होत मुदा। मुनि त्यागत जोग भरोस सदा।।7।।
करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ। पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ।।
सम मानि निरादर आदरही। सब संत सुखी बिचरंति मही।।8।।
मुनि मानस पंकज भृंग भजे। रघुबीर महा रनधीर अजे।।
तव नाम जपामि नमामि हरी। भव रोग महागद मान अरी।।9।।
गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं।।
रघुनंद निकंदय द्वंद्वधनं। महिपाल बिलोकय दीन जनं।।10।।
बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग।।14क।
बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास।।14ख।।

हे राम ! हे रमारणय (लक्ष्मीकान्त) ! हे जन्म-मरणके संतापका नाश करनेवाले! आपकी जय हो; आवागमनके भयसे व्याकुल इस सेवक की रक्षा कीजिये। हे अवधिपति! हे देवताओं के स्वामी ! हे रमापति ! हे विभो ! मैं शरणागत आपसे यही माँगता हूँ कि हे प्रभो ! मेरी रक्षा कीजिये।।1।।
हे दस सिर और बीस भुजाओंवाले रावणका विनाश करके पृथ्वीके सब महान् रोगों (कष्टों) को दूर करने वाले श्रीरामजी ! राक्षस समूह रूपी जो पतंगे थे, वे सब आपको बाणरूपी अग्नि के प्रचण्ड तेजसे भस्म हो गये।।2।।
आप पृथ्वी मण्डल के अत्यन्त आभूषण हैं; आप श्रेष्ठ बाण, धनुश और तरकस धारण किये हुए हैं। महान् मद मोह और ममतारूपी रात्रिके अन्धकार समूहके नाश करनेके लिये आप सूर्य तेजोमय किरणसमूह हैं।।3।।
कामदेवरूपी भीलने मनुष्यरूपी हिरनों के हृदय में कुभोग रूपी बाँण मारकर उन्हें गिरा दिया है। हे नाथ ! हे [पाप-तापका हरण करनेवाले] हरे ! उसे मारकर विषयरूपी वनमें भूले पड़े हुए इन पामर अनाथ जीवोंकी रक्षा कीजिये।।4।।
लोग बहुत-से रोगों और वियोगों (दुःखों) से मारे हुए हैं। ये सब आपके चरणों के निरादर के फल हैं। जो मनुष्य आपके चरणकमलोंमें प्रेम नहीं करते, वे अथाह भव सागर में पड़े रहते हैं।।5।।
जिन्हें आपके चरणकमलोंमें प्रीति नहीं है, वे नित्य ही अत्यन्त दीन, मलीन (उदास) और दुखी रहते हैं। और जिन्हें आपकी लीला कथा का आधार है, उनको संत और भगवान् सदा प्रिय लगने लगते हैं।।6।।
उनमें न राग (आसक्ति) है, न लोभ; न मन है, न मद। उनको सम्पत्ति (सुख) और विपत्ति (दुःख) समान है। इसीसे मुनि लोग योग (साधन) का भरोसा सदा के लिये त्याग देते है और प्रसन्नताके साथ आपके सेवक बन जाते हैं।।7।।
वे प्रेम पूर्वक नियम लेकर निरन्तर शुद्ध हृदय से आपके चरणकमलोंकी सेवा करते रहते हैं। और निरादर और आदरको समान मानकर वे सब संत सुखी होकर पृथ्वीपर विचरते हैं।।8।।
हे मुनियों के मनरूपी कमलके भ्रमर ! हे रघुबीर महान् रणधीर एवं अजेय श्रीरघुवीर ! मैं आपको भजता हूँ (आपकी शरण ग्रहण करता हूँ)। हे हरि ! आपका नाम जपता हूँ और आपको नमस्कार करता हूँ। आप जन्म-मरणरूपी रोग की महान औषध और अभिमान के शत्रु हैं।।9।।
आप गुण, शील और कृपा के परम स्थान है। आप लक्ष्मीपति हैं, मैं आपको निरन्तर प्रणाम करता हूँ। हे रघुनन्दन ! [आप जन्म-मरण सुख-दुःख राग-द्वेषादि] द्वन्द्व समूहोंका नाश कीजिये। हे पृथ्वीकी पालना करनेवाले राजन् ! इस दीन जनकी ओर भी दृष्टि डालिये।।10।।
मैं आपसे बार-बार यही वरदान मांगता हूँ कि मुझे आपके चरणकमलोंकी अचलभक्ति और आपके भक्तोंका सत्संग सदा प्रात हो। हे लक्ष्मीपते ! हर्षित होकर मुझे यही दीजिये।
श्रीरामचन्द्रजीके गुणों का वर्णन करके उमापति महादेवजी हर्षित होकर कैलासको चले गये, तब प्रभुने वानरोंको सब प्रकाश से सुख देनेवाले डेरे दिलवाये।।14(ख)।।




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