રામ કથા - 857
માનસ વૃંદાવન – मानस वृंदावन
વૃંદાવન, મથુરા,
શનિવાર, તારીખ ૨૦/૦૩/૨૦૨૧
થી રવિવાર, તારીખ ૨૮/૦૩/૨૦૨૧
મુખ્ય પંક્તિઓ
गोपाल गोकुल वल्लभी प्रिय
गोप गोसुत वल्लभम |
चरणारविन्द महम भजे, भजनीय
सुर मुनि दुर्लभम् ||
कच कुटिल सुंदर तिलक भ्रूराकामयंक
समाननम।
अपहरण तुलसी दास त्रास
विहार वृन्दा कननम।|
૧
શનિવાર, ૨૦/૦૩/૨૦૨૧
પ્રવાહિત નદીમાં જે ડૂબી જાય છે તે મરી જાય છે જ્યારે રામ કથામાં જે
ડુબી જાય છે તે તરી જાય છે.
गोपाल गोकुल वल्लभे, प्रिय
गोप गोसुत वल्लभं ।
चरणारविन्दमहं भजे, भजनीय
सुरमुनि दुर्लभं ॥
घनश्याम काम अनेक छवि,
लोकाभिराम मनोहरं ।
किंजल्क वसन किशोर मूरति,
भूरिगुण करुणाकरं ॥
सिरकेकी पच्छ विलोलकुण्डल,
अरुण वनरुहु लोचनं ।
कुजव दंस विचित्र सब अंग,
दातु भवभय मोचनं ॥
कच कुटिल सुन्दर तिलक,
ब्रुराकामयंक समाननं ।
अपहरण तुलसीदास, त्रास
बिहारी बृन्दाकाननं ॥
गोपाल गोकुल वल्लभे, प्रिय
गोप गोसुत वल्लभं ।
चरणारविन्दमहं भजे, भजनीय
सुरमुनि दुर्लभं ॥
- गोस्वामी तुलसीदास
भगवान
शंकर को हम दादा कहते हैं, हनुमानजी को भी दादा कहते हैं, सदगुरु भगवान भी दादा हैं,
तपस्वी ऋषि कृष्णशंकर दादा हैं, अतुलकृष्ण भी दादा हैं। यह ५ दादा की सानिध्यमें –
स्मृति में कथा हैं।
मानस
बृंदावन हैं, जो वृंदावन में हैं, वह सब मानस में भी हैं।
प्रवचन
से आत्मा नहीं मिलती हैं, भगवत कथा से आत्मा मिलती हैं।
2
Sunday, 21/02/2021
भावमय
ब्र्ह्म ज्ञानीओ को कहां मिलता हैं?
ममतामय
संसारमें जब उसका वडील उदास रहता हैं तब घर के सदस्य के साथ साथ घरकी दिवाल भी चिंतित
होती हैं।
गुरु
उदास हो जाय तो आश्रित चिंतित हो जाते हैं।
जीव
प्रेम नहीं करता हैं, सिर्फ प्रीति करता हैं, जीव कॉ तरफ से जो होता हैं, वह प्रेम
हैं और भगवन की तरफसे जो होता हैं वह प्रीति हैं।
प्रेम
शास्वत हैं।
साधु
जैसा संवेदनशील ओर कोई हैं हि नहीं।
प्रेम
रसमें डूबे हुए व्यक्तिका – संत का संग करो।
सत संगति दुर्लभ संसारा।
निमिष दंड भरि एकउ बारा।।
जब
तुम कोई पवित्र भजनानंदी को दंभी मानते हैं तब तुम्हारे में कलि प्रभाव आ गया हैं।
गोपाल गोकुल वल्लभी प्रिय
गोप गोसुत वल्लभं।
चरणारविन्द महं भजे, भजनीय
सुर मुनि दुर्लभं॥
घनशाम काम अनेक छवि लोकाभिराम
मनोहरम।
किंजलिक वसन किशोर मूर्ति
मूल गुण करुणाकरम्
सिरकेकि पच्छ विलोल कुंडल
अरुंण वनरूह लोचनं
गुंजावतंस विचित्र सब अंग
धातु भाव भय मोचनम,
गोपाल गोकुल वल्लभी प्रिय
गोप गोसुत वल्लभम ।
कच कुटिल सुंदर तिलक भ्रू,
राकामयंक समाननं।
अपहरण तुलसी दास त्रास
विहार वृन्दा काननं।
जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं।
ते जनु सकल बिभव बस करहीं॥
मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजें।
सबु पायउँ रज पावनि पूजें॥3॥
जो
लोग गुरु के चरणों की रज को मस्तक पर धारण करते हैं, वे मानो समस्त ऐश्वर्य को अपने
वश में कर लेते हैं। इसका अनुभव मेरे समान दूसरे किसी ने नहीं किया। आपकी पवित्र चरण
रज की पूजा करके मैंने सब कुछ पा लिया॥3॥
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
मैं
गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध
तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो
सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1॥
શ્યામ વિના વ્રજ સૂનું
લાગે, ઓધવ હમકો ન ભાવે રે
હમ રંક પર રીસ ન કીજે,
કરુણા સિંધુ કહાવે રે
શ્યામ વિના વ્રજ સૂનું
લાગે
बिदा किए बटु बिनय करि फिरे पाइ मन काम।
उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम॥109॥
तदनन्तर श्री रामजी ने विनती करके चारों ब्रह्मचारियों
को विदा किया, वे मनचाही
वस्तु (अनन्य भक्ति)
पाकर लौटे। यमुनाजी
के पार उतरकर सबने यमुनाजी
के जल में स्नान किया, जो श्री रामचन्द्रजी के शरीर के समान ही श्याम रंग का था॥109॥
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी।
करम कथा रबिनंदनि बरनी॥
हरि हर कथा बिराजति बेनी।
सुनत सकल मुद मंगल देनी॥5॥
विधि
और निषेध (यह करो और यह न करो) रूपी कर्मों की कथा कलियुग के पापों को हरने वाली सूर्यतनया
यमुनाजी हैं और भगवान विष्णु और शंकरजी की कथाएँ त्रिवेणी रूप से सुशोभित हैं, जो सुनते
ही सब आनंद और कल्याणों को देने वाली हैं॥5॥
नारि बिबस नर सकल गोसाईं।
नाचहिं नट मर्कट की नाईं।।
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं
ग्याना। मेलि जनेऊँ लेहिं कुदाना।।1।।
हे
गोसाईं ! सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह [उनके
नचाये] नाचते हैं। ब्रह्माणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर
कुत्सित दान लेते हैं।।1।।
3
Monday, 22/03/2021
हमारा
ह्मदय हि वृंदावन हैं।
आंख
से जब हरिनाम पुकारते समय अश्रु निकलते हैं तो ह्मदय के वृंदावन से नीकली कालिन्दि हैं।
मानस
ह्मदय हैं, वृंदावन हैं।
बुद्ध
पुरुष के पास १८ अनुग्रह हैं।
पहुंचा
हुआ महापुरुष अगर हमारे घर आता हैं तो हमारे सब ॠण समाप्त हो जाते हैं।
कृपा
कठोर हो शकती हैं, लेकिन करुणा कभी भी कठोर नहीं होती हैं।
पांच
देव - राम देव, महादेव, कामदेव, ज्ञानदेव और नाम देव में से एक देव नाम देव समज में
आ जाय तो पर्याप्त हैं।
बुद्ध
पुरुष के १८ अनुग्रह –
कभी
कभी सिद्ध महा पुरुष का पतन होता हैं, लेकिन कभी भी शुद्ध पुरुष का पतन नहीं होता हैं।
१
साधक को अखंड आनंद का अनुभव होता हैं, ऐसा आनंद कभी भी खंडित नहीं होता
हैं, ऐसे साधक की हर क्रिया में आनंद का अनुभव करता हैं।
२
अदभूत अनुभव होता हैं।
३
अलौकिकता में प्रवेश मिलता हैं।
४
अजर अमर गुननिधि सुत होहू। चैत्सिक बुढापा नहीं आती हैं, भीतरी अजर
अमर महसुस करता हैं।
५
अगोचर की यात्रा शरु हो जाती हैं।
६
असित्वका अहेसास होने लगता हैं।
७
साधक बाह्य रुपसे प्रवृति करता हैं लेकिन भीतरी अक्रियता रहती हैं।
८
अखिल के साथ अपनापन जोड देता हैं, सब अपने लगने लगते हैं।
९
अजपाजप की स्थिति में आ जाता हैं। जाप चलता रहता हैं लेकिन साधक को
उसका पता हि नहीं लगता हैं।
१०
साधक अनहद नाद को सुनता है, एक भीतरी आवाझ सिनाई देती हैं।
११
साधक को क्रमशः सभी अवतारो का दर्शन होने लगता हैं। बिरति बिबेक बिनय
बिग्याना। बोध जथारथ बेद पुराना॥
दंभ मान मद करहिं न काऊ। भूलि न देहिं कुमारग
पाऊ॥3॥
तथा वैराग्य, विवेक, विनय, विज्ञान (परमात्मा के तत्व का ज्ञान) और
वेद-पुराण का यथार्थ ज्ञान रहता है। वे दम्भ, अभिमान और मद कभी नहीं करते और भूलकर
भी कुमार्ग पर पैर नहीं रखते॥3॥
१२
साधक बिना हेतु सब को हेत करने लगता हैं।
सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं
सब प्रीति॥1॥
१३
साधक को अरिहंत का बोध होने लगता हैं, बिना किसी भेद वाला बोध होने
लगता हैं।
१४
साधक अमनामन की स्थिति में आ जाता हैं, बिन मन की स्थिति आ जाती हैं।
१५
साधक अश्रु और ड्रढ भरोंसा, यह दो को हि रखता हैं।
१६
साधक अक्रोध अवस्था में आ जाता हैं, क्रोध नहीं करता हैं।
१७
साधक में अपमान को पचाने की ताकात आ जाती हैं।
एहि महँ रघुपति नाम उदारा।
अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा
सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥
इसमें
श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, कल्याण
का भवन है और अमंगलों को हरने वाला है, जिसे पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते
हैं॥1॥
सत
कर्म करे और चूप रहे चाहे छांव मिले …..
4
Tuesday, 23/03/2021
होली
का अर्थ पावित्र क्रिडा हैं।
भगवान
कॄष्ण सात तत्व से सबको आकर्षित करता हैं, ्यह हैं सुकुमारता, रसिकता, सौदर्य, प्रेमानाथ,
मंद मंद मुस्कान, प्रेमालाप, उसका निहारना और नर्तन।
जब
कृष्ण मथुरा जाते हैं तब यह सात पैकी एक तत्व -नर्तन छूट जाता हैं।
संन्यास
जगत का एक नियम हैं एक संन्यासी दूसरे संन्यासी के सिवा किसी अन्य को प्रणाम नहीं करता
हैं।
संन्यासी
को अग्नि को छूना मना हैं।
साधु
शुरवीर होता हैं।
पलँग पीठ तजि गोद हिंडोरा। सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा॥
जिअनमूरि जिमि जोगवत रहउँ। दीप बाति नहिं टारन कहऊँ॥3॥
सीता ने पर्यंकपृष्ठ (पलंग के ऊपर), गोद और हिंडोले को छोड़कर कठोर पृथ्वी पर कभी पैर नहीं रखा। मैं सदा संजीवनी जड़ी के समान (सावधानी से) इनकी रखवाली
करती रही हूँ। कभी दीपक की बत्ती हटाने को भी नहीं कहती॥3॥
महापुरुष
की हरेक चेष्टा एक वैश्विक संदेश होता हैं।
प्रेम
भरा आतिथ्य हि अक्षय पात्र हैं।
कैकेयी
नंदनीय हैं और वंदनीय भी हैं।
प्रभु जानी कैकई लजानी।
प्रथम तासु गृह गए भवानी।।
ताहि प्रबोधि बहुत सुख
दीन्हा। पुनि निज भवन गवन हरि कीन्हा।।1।।
[शिवजी
कहते हैं-] हे भवानी ! प्रभुने जान लिया कि माता कैकेयी लज्जित हो गयी हैं। [इसलिये]
वे पहले उन्हीं के महल को गये और उन्हें समझा-बुझाकर बहुत सुख दिया। फिर श्रीहरिने
अपने महलको गमन किया।।1।।
5
Wednesday, 24/03/2021
प्रेम
करने में जन्मोजन्म लग जाते हैं। पूजा तो सस्ते में हो जाती हैं।
गायो
से जब प्रेम हो जायेगा तो गो और गोवंश बच जायेगा।
राम
चरित मानस में १८ वन का उल्लेख हैं।
राजा,
शास्त्र और मातृ शरीर किसी के वशमें नहीं आते हैं।
साधु
स्वीकारक तत्व हैं।
वृंदावन
प्रेम के ढाई अक्षर की हि बात करता हैं।
पून्य
बन
7
Friday, 26/03/2021
पैसा,
प्रतिष्ठा, पद, विशेष परिचय, -यह ५ वस्तु छूट
जाय तब हि भजन हो शकता हैं, यह ५ वस्तु भजन में बाधक हैं।
जिस
को जाना जाय वह साधु नहीं हैं, राम भी साधु को जान नहीं शकते हैं।
मम गुन गावत पुलक सरीरा।
गदगद गिरा नयन बह नीरा॥
काम आदि मद दंभ न जाकें।
तात निरंतर बस मैं ताकें॥6॥
मेरा
गुण गाते समय जिसका शरीर पुलकित हो जाए, वाणी गदगद हो जाए और नेत्रों से (प्रेमाश्रुओं
का) जल बहने लगे और काम, मद और दम्भ आदि जिसमें न हों, हे भाई! मैं सदा उसके वश में
रहता हूँ॥6॥
कहि सक न सारद सेष नारद
सुनत पद पंकज गहे।
अस दीनबंधु कृपाल अपने
भगत गुन निज मुख कहे॥
सिरु नाइ बारहिं बार चरनन्हि
ब्रह्मपुर नारद गए।
ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ
जे हरि रँग रँए॥
'शेष
और शारदा भी नहीं कह सकते' यह सुनते ही नारदजी ने श्री रामजी के चरणकमल पकड़ लिए। दीनबंधु
कृपालु प्रभु ने इस प्रकार अपने श्रीमुख से अपने भक्तों के गुण कहे। भगवान् के चरणों
में बार-बार सिर नवाकर नारदजी ब्रह्मलोक को चले गए। तुलसीदासजी कहते हैं कि वे पुरुष
धन्य हैं, जो सब आशा छोड़कर केवल श्री हरि के रंग में रँग गए हैं।
साधु
हसे तो भगवान फसे और भगवान फसे तो माया खसे, साधु अकारण हमे देखकर हसे तो हरि फसे,
जिसको देखकर साधु हसता हैं उसे भगवान देखता हैं। यह साधु की महिमा हैं।
अगर
भगवान का भजन हैं तब हि दानी को अपने दीये हुए दान का अभिमान नहीं आता हैं।
बुद्ध
पुरुष की रहमत से सब कुछ हो शकता हैं।
राम
चरितमेम ५ माया हैं और वक्त छ्ठ्ठी माया हैं।
जितना
श्रोता को लाभ होता हैं उतना लाभ वक्ता को नहीं मिलता हैं।
8
Saturday, 27/03/2021
जिसको
हम प्रेम करते हैं उसकी हमें चिंता रहती हैं। प्रेमी के आंसु को हमे समहालकर अपने दामनमें
ग्र्हण क्र लेन चाहिये, यह अश्रु हमारी संपदा हैं।
विरहीओ
की पहली अव्स्था चिंता हैं, दुसरी अवस्था जागरण हैं। विरही व्यक्ति सुषुप्त जागरण में
रहना हैं।
बुद्ध
पुरुष की नींद्रा समाधि स्थिति हैं।
पांव
के नख से मल द्वार तक का भाग पृथ्वी स्थान हैं, मल स्थान से नाभी तक का भाग जल स्थान
हैं, नाभी अग्नि स्थान हैं, नाभी से ह्मदय तक का स्थान वायु स्थान, कंथ की वाणी आकाश
का स्थान हैं, कान, नासिका वगेरे मन का स्थान हैं।
शुकदेव
के माध्यम से स्वयं भगवत बोल रहा हैं।
अगर
कथा के वक्ता या श्रोता को कथा में थाक लगता हैं तो वह उसका दुर्भाग्य हैं।
9
Sunday, 28/03/2021