રામ કથા - 969
માનસ ત્રિપતિ
Tirupati - Andhra
Pradesh
શનિવાર, તારીખ 20/12/2025
થી રવિવાર, તારીખ 28/12/2025
મુખ્ય ચોપાઈ
श्रीपति निज माया तब प्रेरी।
सुनहु कठिन करनी तेहि केरी॥
राम रमापति कर धनु लेहू।
खैंचहु मिटै मोर संदेहू॥
भूमि सप्त सागर मेखला।
एक भूप रघुपति कोसला।।
1
Saturday, 20/12/2025
तब नारद हरि पद सिर नाई। चले
हृदयँ अहमिति अधिकाई॥
श्रीपति निज माया तब प्रेरी। सुनहु कठिन करनी तेहि केरी॥4॥
तब
नारदजी भगवान के चरणों में सिर नवाकर चले। उनके हृदय में अभिमान और भी बढ़ गया। तब लक्ष्मीपति
भगवान ने अपनी माया को प्रेरित किया। अब उसकी कठिन करनी सुनो॥4॥
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु
मिटै मोर संदेहू॥
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ।
परसुराम मन बिसमय भयऊ॥4॥
(परशुरामजी
ने कहा-) हे राम! हे लक्ष्मीपति! धनुष को हाथ में (अथवा लक्ष्मीपति विष्णु का धनुष)
लीजिए और इसे खींचिए, जिससे मेरा संदेह मिट जाए। परशुरामजी धनुष देने लगे, तब वह आप
ही चला गया। तब परशुरामजी के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ॥4॥
भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।।
भुवन अनेक रोम प्रति जासू।
यह प्रभुता कछु बहुत न तासू।।1।।
अयोध्या
में श्रीरघुनाथजी सात समुद्रों की मेखला (करधनी) वाली पृथ्वीके एकमात्र राजा हैं। जिनके
एक-एक रोम में अनेकों ब्रह्माण्ड हैं, उनके लिये सात द्वीपों की यह प्रभुता कुछ अधिक
नहीं है।।1।।
પહેલા
શ્વાસ અને અંતિમ શ્વાસ વચ્ચે વિશ્વાસ રાખવો.
બાલકાંડ
જન્મોત્સવ છે.
અયોધ્યાકાંડ
પ્રેમોત્સવ છે.
અરણ્યકાંડ
વનોત્સવ છે.
કિષ્કિંધાકાંડ
મિત્રોત્સવ છે
સુંદરકાંડ
શરણોત્સવ છે.
લંકાકાંડ રણોત્સવ છે.
ઉત્તરકાંડ
પરમોત્સવ છે.
શ્રવણ
સુધા છે.
ઉત્સનો
અર્થ ઝરણું થાય છે.
2
Sunday, 21/12/2025
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ
न कछु भय हानि कपीसा॥3॥
जो
मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते।
यदि उसे रावण ने भेद लेने को भेजा है, तब भी हे सुग्रीव! अपने को कुछ भी भय या हानि
नहीं है॥3॥
पंचशील
1. मनश्री - शील
2. नयनश्री - शील
3. श्रवणश्री - शील
4. शब्दश्री – निर्मल बानी
5. मुखश्री
यह
पांचो का पति परमात्मा हैं जो श्रीपति हैं।
भक्तिमणि
सापेक्ष नहीं हैं।
સત્ય,
શ્રદ્ધા, વિજ્ઞાન, નિષ્ઠા, આકાશ – અવકાશ, શૂન્ય. પૂર્ણ વગેરે આઠ જાણવા યોગ્ય છે, જ્ઞાતવ્ય
છે. …… છાન્દોગ્ય ઉપનિષદ
Monday, 22/12/2025
બુદ્ધ
પુરુષનાં વચન કાલાંતરે શાસ્ત્ર બની જાય છે.
સતી,
શરભંગ અને શબરી રામાયણમાં યોગના પ્રમાણ છે.
શબરીને
દાંત નથી પણ તે વેદાંતી છે.
કથા
શાસ્વત છે, કથા પરમાત્માનું પરમ સાનિધ્ય છે, કથા શ્રવણ પરમ સાધન છે.
पृथिव्यप्तेजोऽनिलखे समुत्थिते
पञ्चात्मके योगगुणे प्रवृत्ते।
न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्॥
When
the fivefold perception of Yoga, arising from (concentrating the mind on)
earth, water, light, air and ether, have appeared to the Yogin, then he has
become possessed of a body made of the fire of Yoga, and he will not be touched
by disease, old age or death.
जब
योगी के समक्ष योग के द्वारा योग के पाँच गुण प्रकट हो जाते हैं तब उसे योगाग्नि से
बना शरीर प्राप्त हो जाता है और तब वह रोग, जरा, मृत्यु से मुक्त हो जाता है।
"न
तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्" एक संस्कृत श्लोक है जिसका अर्थ है कि जिस व्यक्ति
को योगाग्नि से युक्त शरीर प्राप्त हो जाता है, उसे रोग, बुढ़ापा (जरा), और मृत्यु
नहीं होती. यह श्वेताश्वतरोपनिषद (श्लोक 2.12) से लिया गया है और योग के उच्च स्तर
(पंचाग्नि विद्या) को प्राप्त करने पर मिलने वाले लाभों का वर्णन करता है, जहाँ साधक
पंचमहाभूतों पर नियंत्रण प्राप्त कर शरीर को अमरत्व के करीब ले जाता है.
जब
पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश—इन पाँचों महाभूतों (तत्वों) से उत्पन्न
योग के गुणों (सिद्धियों) में व्यक्ति का प्रवेश हो जाता है, तो उसे योगाग्नि से बना
शरीर प्राप्त होता है. ऐसे योगी को फिर न कोई रोग होता है, न बुढ़ापा आता है, और न
ही मृत्यु का भय रहता है (अर्थात वह मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है).
यह
उक्ति बताती है कि गहन योग साधना (विशेषकर पंचाग्नि विद्या) से शरीर इतना शुद्ध और
शक्तिशाली हो जाता है कि वह सामान्य शारीरिक सीमाओं, जैसे बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु,
से ऊपर उठ जाता है. यह एक प्रकार से इच्छा-मृत्यु (अपनी इच्छा से शरीर त्यागने) या
अमरता की ओर इशारा करता है।
આપણા
ઘરમાં સાધન હોય, ગુરુના ઘરમાં સાધના હોય, આપણા ધરમાં શસ્ત્ર હોય, ગુરુના ઘરમાં શાસ્ત્ર
હોય.
ધર્મશ્રી,
કર્મશ્રી, ચર્મશ્રી - સૌદર્યશ્રી (શરીરનું સૌદર્ય), વનશ્રી, પદ્યશ્રી વગેરે પણ શ્રી
છે.
કથામાં
જે આનંદ મળે છે તેવો આનંદ ક્યાંય બીજે નથી મળતો.
મનમાં
સંદેહ પેદા થાય તો તે વિનાશ તરફ લઈ જાય છે, તેથી મનમાં સંદેહ પેદા ન થવા દેવો. સતીના
મનમાં સંદેહ પેદા થતાં સતીનો વિનાશ થાય છે.
4
Tuesday, 23/12/25
સાધુની
ભાષા સાંકેતિક હોય છે તેથી સમજમાં નથી આવતી.
લક્ષ્મીના
પાંચ રુપ
ધન
લક્ષ્મી – પરિશ્રમથી કમાયેલા પૈસા પરમાર્થમાં વપરાય એ લક્ષ્મી ધન છે.
ગૃહ
લક્ષ્મી
પૃથ્વી
લક્ષ્મી
વૈકુંઠ
લક્ષ્મી
શુભ
લક્ષ્મી – સંસ્કારની લક્ષ્મી, ઊચ્ચ વિચારની લક્ષ્મી
મૌનશ્રી
– મૌન પણ લક્ષ્મી છે.
Day 6
25/12/2025
ગુરુની
પાદૂકા મહાલક્ષ્મી છે, આપણું સૌભાગ્ય છે.
પ્રાણ
સંકટ સમયે બચાવનાર સૌભાગ્ય છે, પાદૂકા પ્રાણ સંકટ સમયે રક્ષા કરે છે.
चरनपीठ करुनानिधान के। जनु
जुग जामिक प्रजा प्रान के॥
संपुट भरत सनेह रतन के। आखर
जुग जनु जीव जतन के॥3॥
करुणानिधान
श्री रामचंद्रजी के दोनों ख़ड़ाऊँ प्रजा के प्राणों की रक्षा के लिए मानो दो पहरेदार
हैं। भरतजी के प्रेमरूपी रत्न के लिए मानो डिब्बा है और जीव के साधन के लिए मानो राम-नाम
के दो अक्षर हैं॥3॥
कुल कपाट कर कुसल करम के।
बिमल नयन सेवा सुधरम के॥
भरत मुदित अवलंब लहे तें।
अस सुख जस सिय रामु रहे तें॥4॥
रघुकुल
(की रक्षा) के लिए दो किवाड़ हैं। कुशल (श्रेष्ठ) कर्म करने के लिए दो हाथ की भाँति
(सहायक) हैं और सेवा रूपी श्रेष्ठ धर्म के सुझाने के लिए निर्मल नेत्र हैं। भरतजी इस
अवलंब के मिल जाने से परम आनंदित हैं। उन्हें ऐसा ही सुख हुआ, जैसा श्री सीता-रामजी
के रहने से होता है॥4॥
वेद
हमारी संपदा हैं।