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Tuesday, July 16, 2019

માનસ આનંદ

રામ કથા

માનસ આનંદ


શનિવાર, તારીખ ૨૯/૦૬/૨૦૧૯ થી રવિવાર, તારીખ ૦૭/૦૭/૨૦૧૯


Detroit, U S A
મુખ્ય પંક્તિઓ

ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। 

सत चेतन घन आनँद रासी॥

जो आनंद सिंधु सुखरासी। 

सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥







શનિવાર, ૨૯/૦૬/૨૦૧૯


प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की। 

कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की॥


एकु दारुगत देखिअ एकू। 

पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू॥2॥


उभय अगम जुग सुगम नाम तें। 

कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥

ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी। 

सत चेतन घन आनँद रासी॥3॥

सज्जनगण इस बात को मुझ दास की ढिठाई या केवल काव्योक्ति न समझें। मैं अपने मन के विश्वास, प्रेम और रुचि की बात कहता हूँ। (‍िनर्गुण और सगुण) दोनों प्रकार के ब्रह्म का ज्ञान अग्नि के समान है। निर्गुण उस अप्रकट अग्नि के समान है, जो काठ के अंदर है, परन्तु दिखती नहीं और सगुण उस प्रकट अग्नि के समान है, जो प्रत्यक्ष दिखती है।
(तत्त्वतः दोनों एक ही हैं, केवल प्रकट-अप्रकट के भेद से भिन्न मालूम होती हैं। इसी प्रकार निर्गुण और सगुण तत्त्वतः एक ही हैं। इतना होने पर भी) दोनों ही जानने में बड़े कठिन हैं, परन्तु नाम से दोनों सुगम हो जाते हैं। इसी से मैंने नाम को (निर्गुण) ब्रह्म से और (सगुण) राम से बड़ा कहा है, ब्रह्म व्यापक है, एक है, अविनाशी है, सत्ता, चैतन्य और आनन्द की घन राशि है॥2-3॥ 


जो आनंद सिंधु सुखरासी। 

सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥

सो सुखधाम राम अस नामा। 

अखिल लोक दायक बिश्रामा॥3॥

ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस (आनंदसिंधु) के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उन (आपके सबसे बड़े पुत्र) का नाम 'राम' है, जो सुख का भवन और सम्पूर्ण लोकों को शांति देने वाला है॥3॥ 

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