રામ કથા - 870
માનસ વિનય પત્રિકા
જયપુર
શનિવાર, 0૧/0૧/૨0૨૨ થી
રવિવાર, તારીખ 0૯/0૧/૨0૨૨
મુખ્ય પંક્તિ
‘बिनय-पत्रिका’ दीनकी, बापु ! आपु ही
बाँचो ।
हिये हेरि तुलसी लिखी सो
सुभाय सही करि बहुरि पूँछिये पाँचो ॥
૧
શનિવાર, 0૧/0૧/૨0૨૨
यह
कथा द्वारा हम दीन हिन की ठाकुरजी को विनय पत्रिका पेश कर रहे हैं, विषम परिस्थिति
में विनय पत्रिका पेश कर रहे हैं।
जो
पांच लोग – सीताजी, भरतजी, लक्ष्मण, शत्रुघ्न महाराज और हनुमानजी हैं।
जानकी
स्तुति
कबहुँक अंब, अवसर पाइ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करून-कथा चलाइ।1।
विनयी
व्यक्ति में विद्या होती हैं, चाहे पढा हो या न पढा हो।
अगर
विनय न हो तो विद्या का कोई अर्थ नहीं हैं।
विनयी
व्यक्ति गुणवान होता हैं।
विनयी
व्यक्ति में थोडा सा डर रहता हैं कि कहीं विनय भंग न हो जाय।
विनयी
व्यक्ति शीलवान होता हैं।
प्रसन्न्ता
के ५ शास्त्र के +२ चित्रकूट के कोने का = ७ सुत्र हैं। यहीं मानस के सात सोपान हैं।
हम
सब पंच तत्व से बने हैं।
पृथ्वी
का गुन धैर्य और सहनशीलता हैं।
अग्नि
तत्व का गुन ऊग्रता – संताप हैं।
वायु
तत्व का गुन हवा का चलना – हवा में आ जाना - पद प्रतिष्ठा का शीतल, मंद सुगंध हैं।
आकाश
तत्व का गुन विशालता हैं – नितान्त शून्यता, असीमता, असंगता हैं।
हमारा
स्वरुप जीव स्वरुप हैं, अगर हमारे में अहंकार, मूढ्ता नहीं आती हैं तो हम प्रसन्न रह
शकते हैं।
दूसरे
का जीव का स्वरुप अगर हम समज ले तो प्रसन्न रह शकते हैं।
जो परम का स्वरुप, परमात्मा का स्वभाव जान ले तो वह प्रसन्न रह शकता हैं। परमात्मा
हमारे सब अवगुण भूल जाता हैं और परमात्मा क्या करता हैं वह भी भूल जाता हैं।
हमारी
प्रसन्नता के बाधक स्वरुप – विरोधी स्वरुप जानता हैं वह प्रसन्न रहता हैं।
जो
फल स्वरुप को जान लेता हैं वह प्रसन्न रहता हैं।
जो अपनी गति – गति का स्वरुप जान लेता हैं वह प्रसन्न
रह शकता हैं। अपनी गति की क्षमता के अनुसार हमें चलना चाहिये।
हमारे
विश्राम का स्वरुप क्या हैं – विश्राम स्थान क्या हैं यह जो जान लेता हैं वह प्रसन्न
रह शकता हैं।
6
Thursday, 06/01/2022
हमारी
जितनी जरुरीयात हैं उतना हमारे पास हैं।
असंगी
का संग करे, आकाश असंग हैं, संगी के संगी के संग- विषयी के संग में दोष दर्शन होता
हैं। जब भी मौका मिले आकाश का संग करो – आकाश दर्शन करो। जो आकाश के नीचे सोते हैं
वह सब बहुत उदार होते हैं।
महल
में जगह नहीं होती हैं लेकिन झोंपडी में जगह होती हैं।
पवन
– हवा असंग हैं, अग्नि असंग हैं, जल असंग हैं – नदी असंग हैं, यह सब का संग करो, पृथ्वी
थोडी संगी – थोडी स्थुलता – मालिक पना - हैं।
महाभारत
का युद्ध जय के लिये लडा गया, रामायण का युद्ध विजय के लिये हुआ हैं। जय विजय अलग हैं।
नख
शीश बुद्ध पुरुष का संग सब से अच्छा असंगी का संग हैं। बुद्ध पुरुष से सदाय द्वैत होना
चाहिये। गुरु और आश्रित में द्वैत होना चाहिये। गुरु पावन हैं , आश्रित पतीत हैं।
बुद्ध
पुरुष किस को कहे?
जिस
के पास ६ वस्तु हैं वह बुद्ध पुरुष हैं।
भूख
रोग हैं और अन्न उस की औषधि हैं। ………… आदि शंकर
अन्न
का उपयोग औषधि की मात्रा मुजब करे। जितना जरुरी हैं और अपने शरीर को अनुकूल हो – आरोग्यप्रद
हो ईतना खाना चाहिये।
साधु
पुरुष का भोजन आरोग्य प्रद और अपने शरीर के अनुकूल होता हैं।साधु पुरुष को एकान्त प्रिय
हैं।
साधु
पुरुष कल्यानकारी बात एकबार – उचित बात एकबार हि बोलता हैं।
साधु
पुरुष – बुद्ध पुरुष आश्रित के दोष देखता नहीं हैं।
बुद्ध
पुरुष कम निंद्रा लेता हैं और मर्यादा में विहार करता हैं।
भजन
बढेगा तो निंद्रा अपने आप कम हो जायेगी।
बुद्ध
पुरुष परम तत्व के विधान अनुशीलन करता हैं और नित्य भजन करता हैं, सब कार्य समयसर करता
हैं।
साधन
कम करो स्मरण ज्यादा करो। स्मरण करना नहीं पडता हैं स्मरण अपनेआप हो जाता हैं।
स्वासकी
रिधम को भजन कहते हैं।
बुद्ध
पुरुष के पास बैठने से सब साधन की समाप्ति जो काती हैं, ओर कोई साधन करने की आवश्यकता
हि नहीं रहती हैं।
असंगी
को कोई अपेक्षा नहीं होती हैं और उसे देने का कोई याद नहीं रहती हैं – देने का कोई
गर्व नहीं होता हैं।
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि
जानकी दीन॥8॥
श्री
जानकीजी नेत्रों को अपने चरणों में लगाए हुए हैं (नीचे की ओर देख रही हैं) और मन श्री
रामजी के चरण कमलों में लीन है। जानकीजी को दीन (दुःखी) देखकर पवनपुत्र हनुमान्जी
बहुत ही दुःखी हुए॥8॥
पूरकनाम राम सुख रासी।
मनुजचरित कर अज अबिनासी॥
आगें परा गीधपति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा॥9॥
पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री
रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे हैं। आगे (जाने पर) उन्होंने गृध्रपति जटायु को पड़ा
देखा। वह श्री रामजी के चरणों का स्मरण कर रहा था, जिनमें (ध्वजा, कुलिश आदि की) रेखाएँ
(चिह्न) हैं॥9॥
सब
फर्ज निभाने के बाद त्याग लेना चाहिये।
7
Friday, 07/01/2022
भगवान
का नाम अमोघ हैं, अमोघ वह हैं जो सफल होता हि हैं और वह कायम रहता हैं।;
राम
का बाण, जानकी की वाणी, लक्ष्मण की जागृति, भरत का प्रेम, हनुमानजी की भूजा, शत्रुग्नका मौन, कर्म का परिणाम
– कर्म की कहानी, साधु पुरुष का लहाणी, यह
सब अमोघ हैं कभी भी विफल नहीं होता हैं – अखंड होता हैं।
काम,
क्रोध, लोभ भीतरी शत्रु हैं, लोभ ऐसा शत्रु हैं जो कायम रहता हैं, काम और क्रोध कायम
नहीं रहता हैं।
रिपुसूदन पद कमल नमामी।
सूर सुसील भरत अनुगामी॥
महाबीर बिनवउँ हनुमाना।
राम जासु जस आप बखाना॥5॥
मैं
श्री शत्रुघ्नजी के चरणकमलों को प्रणाम करता हूँ, जो बड़े वीर, सुशील और श्री भरतजी
के पीछे चलने वाले हैं। मैं महावीर श्री हनुमानजी की विनती करता हूँ, जिनके यश का श्री
रामचन्द्रजी ने स्वयं (अपने श्रीमुख से) वर्णन किया है॥5॥
काम बात कफ लोभ अपारा।
मंथरा
लोभ हैं, कैकेयी में क्रोध हैं, दशरथ में काम हैं।
शत्रुघ्न
मंथरा को मारते हैं। शत्रुघ्न भीतरी शत्रु – काम, क्रोध और लोभ को नष्ट करता हैं।
मीरा
को नृत्य करनेसे कृष्ण मिला हैं, नानक को गाने से ईश्वर मिला हैं, हनुमानजी, नारद,
चैतन्य सब को ईश्वर प्राप्त हुआ हैं।
नींदा
से जिसको खेद नहीं होता हैं और प्रसंशा से जिसको मोद नहीं होता हैं वह जीवन मुक्त हैं।
……. आदि शंकर
कामिहि नारि पिआरि जिमि
लोभिहि प्रिय जिमि दाम।।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय
लागहु मोहि राम।।130ख।।
जैसे
कामीको स्त्री प्रिय लगती है और लोभी को जैसे धन प्यारा लगता है, वैसे ही हे रघुनाथजी
! हे राम जी ! आप निरन्तर मुझे प्रिय लगिये।।130(ख)।।
श्रेष्ठ
का अपमान करना उसे मारने के समान हैं।
कामी,
क्रोधी व्यक्ति दिखाई देता हैं लेकिन लोभी व्यक्ति की पहचान मुश्किल हैं, लोभी व्यक्ति
दिखाई नहीं देता हैं।
राम
सत्य हैं, लक्ष्मण प्रेमी हैं, भरत जानकी करुणा हैं, शत्रुघ्न सबसे छोटा हैं, सब कुछ
होते हुए जो अओअने को सबसे छोटा समजे वह शत्रुघ्न हैं, शत्रुघ सदा मौन रहता हैं, शत्रुघ्न
ने अपने राज परिवेष को कभी नीकाला नहीं हैं। परिवेष नहीं बदलना सबसे बडा ______ - साधुता
हैं।
ગીતા,
ગંગા, ગાયત્રી અને ગોવિંદ એ ચાર ગ કાર જેના જીવનમાં હોય તેનો પુનઃજન્મ નથી થતો
ગુરુ
નો ગ કાર જેની પાસે હોય તે તેની ઈચ્છા પ્રમાણે જન્મ લઈ શકે છે, અથવા જન્મ થી મુક્તિ
પણ મેળવી શકે છે.
ગુરુ
ગંગા છે જે અખંડ વહે છે, ગુરુ ગીતા છે, ગુરુ ગાયત્રી છે, ગુરુ જ ગોવિંદ છે, ગોવિંદ
થી પણ મોટો છે, .ગુરુ માં ૨૪ સ્વાભાવિક લક્ષ્ણ છે તેથી ગુરુ ગાયત્રી છે.
सुतकीर्ति
में श्रवण करनार छे.
जो
सबकी सुतकीर्ति सुने वहीं शत्रुघ्न हैं।
भवन
के भ – भरत जब निकल जाता हैं तब भवन वन बन जाता हैं।
जयति जय शत्रु-केसरी शत्रुहन,
शत्रुतम-तुहिनहर किरणकेतू।
देव-महिदेव-महि-धेनु-सेवक
सुजन-
सिद्ध-मुनि-सकल-कल्याण-हेतू।1।
जयति सर्वांगसुन्दर सुमित्रा-सुवन,
भुवन-विख्यात-भरतानुगामी।
वर्मचर्मासि-धनु-बाण-तूणीर-धर
शत्रु-संकट-समय यत्प्रणामी।2।
जयति लवणाम्बुनिधि-कुंभसंभव
महा-
दनुज-दुर्वनदवन, दुरितहारी।
लक्ष्मणानुज, भरत-राम-सीता-चरण-
रेणु-भूषित-भाल-तिलकधारी।3।
जयति श्रुतिकीर्ति-वल्लभ
सुदुर्लभ सुलभ
नमत नर्मद भुक्तिमुक्तिदाता।
दास तुलसी चरण-शरण सीदत
विभो,
पाहि दीनार्त्त-संताप-हाता।4।
Sunday, 09/01/2022
भुशुंडीजी
८४ प्रसंग का कथन करते हैं जो हमें ८४ लाख जन्मो से मुक्त करते हैं।
पंच
तत्व में सब से सुक्ष्म पृथ्वी हैं, अग्नि उस से सुक्ष्म, जल उससे सुक्ष्म, आकाश उससे
सुक्ष्म हैं; शब्द जो आकाश का गुण हैं जो सब से सुक्ष्म हैं। सुक्ष्म तत्व की ताकात
बहुत होती हैं।
कोई
विचार भी मंत्र हैं।
संगीत
भी भजन हैं।
भक्ति
को पाने के लिये आंखे बंध करके आंतर खोज करो, स्वयंप्रभा – जिस की अपनी खुद किई प्रभा
हैं - का बंदरो को आंखो बंध करने का संकेत यह हैं।
अभिमान
एक अर्थ संशय होता हैं, हनुमानजी को संशय होता हैं, अभिमान नहीं होता हैं।
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