રામ કથા – 899
માનસ આચાર્ય દેવો ભવ
ONTARIO, LOS ANGELES, USA
શનિવાર, જુલાઈ ૦૨, ૨૦૨૨ થી રવિવાર જુલાઈ ૧૦, ૨૦૨૨
મુખ્ય પંક્તિઓ
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
गुरु पद रज मृदु मंजुल
अंजन।
नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
1
Saturday, 02/07/2022
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥1॥
मैं
गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध
तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो
सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है॥1॥
गुरु पद रज मृदु मंजुल
अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन।
बरनउँ राम चरित भव मोचन॥1॥
श्री
गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का
नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन
से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूँ॥1॥
तीन चीज हमारे आधिन हैं, और तीन चीज वस्तु हमारे आधिन नहीं हैं।
मेरा
कोई भी मेरा बुरा न करे वह हमारे आधिन नहीं हैं लेकिन मैं किसीका बुरा न करु वह हमारे
हाथमें हैं।
तुहूँ सराहसि
करसि सनेहू। अब सुनि मोहि भयउ संदेहू॥
जासु सुभाउ अरिहि अनूकूला। सो किमि करिहि मातु प्रतिकूला॥4॥
तू स्वयं भी राम की सराहना
करती और उन पर स्नेह किया करती थी। अब यह सुनकर मुझे संदेह हो गया है (कि तुम्हारी प्रशंसा
और स्नेह कहीं झूठे तो न थे?) जिसका स्वभाव
शत्रु को भी अनूकल है, वह माता के प्रतिकूल
आचरण क्यों कर करेगा?॥4॥
कोई
मेरे बारे में बुरा न बोले, नींदा न करे, सब अपने अनुकूल हो जाय – यह सब हमारे वशमें
नहीं हैं।
लेकिन
मैं सब के प्रति अनुकूल हो जाउ वह हमारे वश में हैं।
आचार्य
आचारवान होता हैं। उसके विचार शुद्ध होते हैं।
विनोबा
को हम आचार्य कहते हैं।
रामानुजाचार्य,
वल्लभाचार्य, शंकराचार्य ..
आचार्य
किसीका बुरा नहीं करेगा,किसीकी नींदा नहीं करेगा और पुरे जगत के साथ अनुकूल रहेगा।
आचार्य
किसीका बुरा कभी भी सोचेगे नहीं।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं
ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन:
॥
मानस
गुरु गीता में चार बार गुरु शब्द आया हैं, यह चार महत्व के संकेत हैं।
आचार्य
के विचार और उच्चार शुद्ध होते हैं और आचार भी शुद्ध होते हैं।
आचार्य
परस्पर दूसरों के प्रति सहज और सरल व्यवहार करता हैं।
गुर
पद का अर्थ गुरु के आचरण सहित के चरण हैं, स्थान नहीं हैं। ऐसे चरण में हमारा शिर रखनेसे
हमारा प्रारब्ध बदल जाता हैं, हमारा विवेक बढता हैं, हमारे विचार बदल जाते हैं, विचारवान
हो जाते हैं,
भरोसो
द्रढ ईन चरणन केरो …………
निर्विचार
एक अच्छी देन हैं लेकिन उस अवस्था महापुरुषो के लिये हैं।
गुरु
कृपासागर हैं लेकिन गुरु की कृपा कभी कभी खारी होती हैं और ऐसी कृपा भी हमारे हित के लिये हैं।
सागर का जल भी खारा होता हैं।
जगत
कल्याण के लिये, शांति की खोज के लिये छलांग भरे वह हनुमान हैं।
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