રામ કથા - 915
માનસ ગરુડ
Malaysia
શનિવાર, તારિખ 08/04/2023 થી
રવિવાર, તારીખ 16/04/2023
મુખ્ય પંક્તિ
गरुड़ महाग्यनी गुन रासी।
हरि सेवक अति निकट निवासी।I
गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुंडा।
मति अकुंठ हरि भगति अखंडा।।
1
Saturday,
08/04/2023
गरुड़ महाग्यनी गुन रासी। हरि सेवक अति निकट निवासी।
तेहिं केहि हेतु काग सन जाई। सुनी कथा मुनि निकर बिहाई।।2।।
गरुड़जी तो महानज्ञानी, सद्गुणोंकी राशि श्रीहरिके सेवक और उनके अत्यन्त निकट रहनेवाले (उनके वाहन ही) हैं। उन्होंने मुनियों के समूह को छोड़कर, कौए से जाकर हरिकथा किस कारण सुनी ?।।2।।
गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुंडा। मति अकुंठ हरि भगति अखंडा।।
देखि सैल प्रसन्न मन भयऊ। माया मोह सोच सब गयऊ।।1।।
गरुड़जी वहाँ गये जहाँ निर्बाध बुद्धि और पूर्ण भक्तिवाले काकभुशुण्डि बसते थे। उस पर्वत को देखकर उनका मन प्रसन्न हो गया और [उसके दर्शनसे ही] सबसे माया, मोह तथा सोच जाता रहा।।1।।
गरुड
के ९ लक्षण हैं।
1 महा ज्ञानी
2 गुण राशी
3 हरि सेवक
4 अति निकट निवासी
5 अखंड भक्ति
6 अकुंठित बुद्धि
7 ज्ञानी
8 भक्त शिरोमणि
9 भगवान विष्णुका वाहन
पक्षीराज
गरुड मेरी विभूति हैं ………… कृष्ण
गरूड
अपने पैंरो में साप को पकडके रखता हैं, जिसका मतलब हैं कि गरूड साप – काल (समय) को
अपने
हाथ में पकडके रखता हैं और फिर उडान भरता हैं, काल को हस्तामलक करता हैं। काल का एक
अर्थ मृत्यु भी हैं।
गरुड
की पंख में वेद के साथ साथ सामवेदका गान होता हैं।
गावत बेद पुरान अष्टदस। छओ सास्त्र
सब ग्रंथन को रस।।
गाने
से विचलित नहीं लेकिन विगलित (लय) होता हैं।
मीरा,
नानक, तुकाराम, चैतन्य, नानक वगेरे गाने से विगलित हुए हैं।
भूल
होने पर माफी मागना और दूसरो को माफ करना विगलित होनेका प्रथम सोपान हैं।
जहां
गान होता हैं वह स्थान हि वैकुंठ हैं।
माला
के साथ स्मरण, आसन के साथ ध्यान होना चाहिये।
जहां
आर्त भावसे नाम स्मरण होता हैं वह स्थान की संनिग्धिमें रहनेसे विगलित हुआ जा शकता
हैं।
नर्तन
से भी विगलित होने की प्रक्रिया शुरु होती हैं।
गरुड
के पास दीर्ध द्रष्टि हैं।
गरुडकी
चांच सत्य से मढी हुई हैं।
जब
तक सदगुरु नहीं मिलता हैं तब तक भ्रम पेदा होनेकी संभावना रहती हैं।
अति
नजदिक रहने से भी भ्रम पेदा हो शकता हैं। ईसीलिये गुरु शिष्य में द्वैत होना चाहिये।
ईन्द्रजीत
हनुमान और भगवान राम को बांधता हैं।
विवेक,
धैर्य और आश्रय ब्रह्म उपदेश के लिये आवश्यक हैं।
2
Sunday, 09/04/2023
विहलित
और विसर्जन में क्या फरक हैं?
हमारे
देशमें अस्थिको पवित्र स्थानोमें विसर्जित किआ जाता हैं। भारत के दक्षिण के कई प्रान्तो
में अस्थि को जल में विसर्जित करते समय उस के साथ नमक भी मिलाया जाता हैं जिस में अशि
का विसर्जन होता हैं और नमक विगलित होता हैं, नमक अओत्प्रोत हो जाता हैं।
भूमिदाह
में समाधि में नमक डाला जाता हैं।
जब
साधु किसीको क्षमा करता हैं तब अपराधी के साथ साधु विगलित हो जाता हैं, एकरुप हो जाता
हैं।
सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन
खगेस।
जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्हि
महेस।।63ख।।
पक्षिराज
गरुड़जीने कोमल वचन कहे-आप तो सदा ही कृतार्थरूप हैं, जिनकी बड़ाई स्वयं महादेवजी ने
आदरपूर्वक अपने श्रीमुख से की है।।63(ख)।।
गोपीजन
विगलित होने के लिये कृष्ण के पास जाती हैं, एक के रुपा में समाविष्ट होने के लिये
गोपी गोपीतालाब में विगलित हो जाती हैं।
नाभी
बानी में न वाद्य, न वादक और न वादक की कोई प्रक्रिया होती हैं। उस में एक अलौकिक धुनी,
अलौकिक आवाज होती हैं।
महारास
विगलित हो जाने के लिये हैं।
ज्ञान
परख बात सुननेके साथ साथ, शास्त्र पढने के साथ साथ वाचक को वह बात पाचक भी होनी चाहिये।
कथा
श्रवण भी पाचक होनी चाहिये।
जिज्ञासा
के समाधान का श्रवण मन, बुद्धि और चित से होना चाहिये।
भक्ति
परख बात कान से सुनी जाती हैं।
सुनहु राम अब कहउँ निकेता। जहाँ बसहु सिय लखन समेता॥
जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना।
कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना॥2॥
हे रामजी!
सुनिए, अब मैं वे स्थान बताता हूँ, जहाँ आप, सीताजी और लक्ष्मणजी समेत निवास कीजिए।
जिनके कान समुद्र
की भाँति आपकी सुंदर कथा रूपी अनेक सुंदर नदियों
से-॥2॥
समुद्रमें
अनेक नदीयां आकर समा जाती हैं।
प्रेम
की बात केवल आंखो से सुनी जाती हैं।
सिर्फ
आंखो से देखते रहना (सुनना) की स्थिति विगलित होने की स्थिति हैं। ऐसी स्थिति में शब्द
विसर्जित हो जाते हैं हम मौन में विगलित हो जाते हैं।
गरुड
परम वैष्णव हैं।
या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तनुवा शंतमया गिरिशन्ताभिचाकशीहि॥
O
Lord, who blesses all creatures by revealing the Vedas, deign to make us happy
by Thy calm and blissful self, which roots out terror as well as sin.
हे
प्रभु! वेदों को प्रकाशित कर तू सभी प्राणियों पर कृपा की वर्षा करता है, अपने शान्त
और आनन्दमय रूप द्वारा हम सब को प्रसन्न रखने का अनुग्रह करता है जिससे भय और पाप दोनों
नष्ट हो जाते हैं।
ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे
जगत्कारणम् ।
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे
पशूनां पतिम् ॥
वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे
मुकुन्दप्रियम् ।
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे
शिवंशंकरम् ॥
बळी
जवुं अने भळी जवुं मां फर्क छे.
भरहिं निरंतर
होहिं न पूरे। तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गुह रूरे॥
लोचन चातक जिन्ह करि राखे। रहहिं दरस जलधर अभिलाषे॥3॥
निरंतर भरते रहते हैं, परन्तु कभी पूरे (तृप्त)
नहीं होते, उनके हृदय आपके लिए सुंदर घर हैं और जिन्होंने
अपने नेत्रों को चातक बना रखा है, जो आपके दर्शन रूपी मेघ के लिए सदा लालायित रहते हैं,॥3॥
राम रूपु नख सिख सुभग बारहिं बार
निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि॥315॥
नख
से शिखा तक श्री रामचन्द्रजी के सुंदर रूप को बार-बार देखते हुए पार्वतीजी सहित श्री
शिवजी का शरीर पुलकित हो गया और उनके नेत्र (प्रेमाश्रुओं के) जल से भर गए॥315॥
महाभारत
में विसर्जन की प्रक्रिया हैं जब कि महारास में विगलित होनेकी प्रक्रिया हैं।
प्रेम
को कोई विशेषण लगाया नहीं जाता हैं।
प्रेम
में जब हमारी आंखो से अश्रु नीकलते हैं तब वह अश्रु प्रेम को दाद देते हैं – वाहवाह
करते हैं।
काम
१२ स्थान में रहता हैं – ५ कर्मेन्द्रीय, ५ ज्ञानेन्द्रीय और मन, बुद्धि मिलाकर १२
स्थान कामका निवास स्थान हैं।
गरुडकी
द्रष्टि अपार हैं।
मानस
के बालकांड में मंत्र की प्रधानता हैं, राम नाम की महिमा का गान हैं।
अयोध्याकांड
सूत्र कांड हैं।
सूत्र
उसे कहते हैं जहां कम शब्दोमें बडी बात कही जाती हैं और उसके अनेक अर्थ नीकलए हैं।
सूत्र कि बात का कोई ईन्कार नहीं कर शकता हैं। सूत्र किसी की निंदा नहीं करता हैं।
मानस
एक सूत्रात्मक ग्रंथ हैं।
अरण्यकांड
चरितकांड हैं, एक मंजर का कांड हैं।
लंका
का मंजर ……
पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति
अनुरूप अनूप सुहाई॥
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत
जे बन सुर नर मुनि भावन॥1॥
पुरवासियों
के और भरतजी के अनुपम और सुंदर प्रेम का मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार गान किया। अब
देवता, मनुष्य और मुनियों के मन को भाने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के वे अत्यन्त
पवित्र चरित्र सुनो, जिन्हें वे वन में कर रहे है
कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना
घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर
बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि
को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत
नहिं बनै॥1॥
विचित्र
मणियों से जड़ा हुआ सोने का परकोटा है, उसके अंदर बहुत से सुंदर-सुंदर घर हैं। चौराहे,
बाजार, सुंदर मार्ग और गलियाँ हैं, सुंदर नगर बहुत प्रकार से सजा हुआ है। हाथी, घोड़े,
खच्चरों के समूह तथा पैदल और रथों के समूहों को कौन गिन सकता है! अनेक रूपों के राक्षसों
के दल हैं, उनकी अत्यंत बलवती सेना वर्णन करते नहीं बनती॥1॥
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं
सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि
मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल
गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक
एकन्ह तर्जहीं॥2॥
वन,
बाग, उपवन (बगीचे), फुलवाड़ी, तालाब, कुएँ और बावलियाँ सुशोभित हैं। मनुष्य, नाग, देवताओं
और गंधर्वों की कन्याएँ अपने सौंदर्य से मुनियों के भी मन को मोहे लेती हैं। कहीं पर्वत
के समान विशाल शरीर वाले बड़े ही बलवान् मल्ल (पहलवान) गरज रहे हैं। वे अनेकों अखाड़ों
में बहुत प्रकार से भिड़ते और एक-दूसरे को ललकारते हैं॥2॥
ईस
तरह हनुमानजी लंका का मंजर – चित्र वर्णन करते हैं।
लंकाकांड
क्षेत्रकांड हैं। यहां क्षेत्र का अर्थ शरीर, स्त्री, विस्तार हैं।
उत्तरकांड
नेत्रकांड हैं।
नेत्र
के कई प्रकार हैं।
मम माया संभव संसारा। जीव चराचर
बिबिधि प्रकारा।।
सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।।2।।
यह
सारा संसार मेरी माया से उत्पन्न है। [इसमें] अनेकों प्रकार के चराचर जीव हैं। वे सभी
मुझे प्रिय हैं; क्यों कि सभी मेरे उत्पन्न किये हुए हैं। [किन्तु] मनुष्य मुझको सबसे
अधिक अच्छ लगते हैं।।2।।
3
Monday, 10/04/2023
गरुडके
मानव जात उपर बहुत उपकार हैं। गरुडने भुषुंडीसे राम कथा का खजाना खुलवाया हैं।
गरुड
कश्यप और वनिता का पुर हैं।
जो
निंदा और निंद्रा से मुक्त हैं उसे स्वप्न नहीं आता हैं।
कुछ
वक्ति के स्वप्न सच पदते हैं।
बुद्द
पुरुष का और उनकी माता का स्वप्न सच पडता हैं।
नख
शीश शुद्ध साधवीका स्वप्न सच पडता हैं।
छोटे
निर्दोष बालक का स्वप्न सच पडता हैं।
मानस
के तीन पात्र के स्वप्न सच पडे हैं।
a.
भवानी
b.
त्रिजटा
c.
सीताजी
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन
जेहि ध्यावहीं।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति
गावहीं॥
सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय
पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित
रघुकुलमनी॥
ज्ञानी मुनि, योगी और सिद्ध निरंतर निर्मल चित्त से जिनका ध्यान करते हैं तथा वेद, पुराण और शास्त्र 'नेति-नेति' कहकर
जिनकी कीर्ति गाते हैं, उन्हीं सर्वव्यापक, समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, मायापति, नित्य परम स्वतंत्र, ब्रह्मा रूप भगवान् श्री
रामजी ने अपने भक्तों के हित के लिए (अपनी इच्छा से) रघुकुल के मणिरूप में अवतार लिया है।
जो व्यक्ति अपना कर्तव्य
नहीं निभाता हैं उसकी मृत्यु समय से पहले होती हैं। ……….. गरुड पुराण
जो प्रमादी रहता हैं
उसकी मृत्यु समय से पहले होती हैं।
पांडुरंग दादाने भगवान प्राप्त्ति के ૪ उपाय बताये हैं।
1.
મન
અને બુદ્ધિ ઈશ્વરને આપો ઓ હરિ તમારો.
2.
અભ્યાસ
કરો તો હરિ તમારો.
3.
કર્મ
કરો તો હરિ તમારો
4.
કર્મના
ફળનો ત્યાગ કરો તો હરિ તમારો.
सूत्र का श्लोक …..
स्वल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद्विश्वतोमुखम्
|
अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो
विदुः ||
अल्प = little → स्वल्प = minimal
अक्षराणि = letters,
syllables
स्वल्पाक्षरम् =
having minimal number of letters
असंदिग्धम् –
असंदिग्धम् = clear,
non-confusing
सारवत्
सारः = 1 Essential.
-2 Best, highest, most excellent; Summary, epitome, compendium
वत् = suffix
denoting “containing”
सारवत् = containing
the essential, summary 1 Substantial. -2 Fertile. -3 Having sap. -4 Solid,
firm.
विश्वतोमुखम् = unto
the universe, universal, omnipresent
अस्तोभम् =
non-stoppable, eternal
अनवद्यम् –
न वद्यम् इति अवद्यम्
((नञ्-तत्पुरुषः)
वद्यम् = speakable → अवद्यम् = unspeakable → अनवद्यम् = not unspeakable, hence
speakable, worth quoting
सूत्रम् –
सूत्रम् –1 A thread, string, line, cord -7 A short rule or precept, an aphorism. -8 A short or concise technical
sentence used as a memorial rule;
This श्लोक defines
six qualifications, by verification of which, a statement can be called as an
aphorism सूत्रम्.
In a way, this श्लोक
lays down six criteria for composing aphorisms.
While सूत्रम् is a statement with minimal number of letters, it summarises a deep, eternally valid meaning of
universal applicability.
गरुड चारेय युग में हैं।
बुद्ध पुरुष पूण्य नहीं
देता हैं लेकिन बुद्ध पुरुष प्रेम, पवित्रता, प्रसन्नता और परमात्मा देता हैं।
बंदउँ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि
राम पद।
बिछुरत दीनदयाल प्रिय तनु तृन इव
परिहरेउ॥16॥
मैं अवध के राजा श्री दशरथजी की वन्दना करता हूँ, जिनका श्री रामजी के चरणों में सच्चा प्रेम था, जिन्होंने दीनदयालु प्रभु के
बिछुड़ते ही अपने प्यारे शरीर को मामूली तिनके की तरह त्याग दिया॥16॥
No comments:
Post a Comment