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Sunday, August 24, 2025

માનસ વૈરાગ્ય – 962

 

રામ કથા - 962

માનસ વૈરાગ્ય – 962

Katowice, Poland

શનિવાર, તારીખ 23/08/2025 થી રવિવાર, તારીખ 31/08/2025

કેંદ્રીય પંક્તિઓ

सहज बिरागरूप मनु मोरा।

थकित होत जिमि चंद चकोरा॥

कहिअ तात सो परम बिरागी।

तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी॥

 

Day 1

Saturday, 23/08/2025

 

सहज बिरागरूप मनु मोरा। थकित होत जिमि चंद चकोरा॥

ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ। कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ॥

 

मेरा मन जो स्वभाव से ही वैराग्य रूप (बना हुआ) है, (इन्हें देखकर) इस तरह मुग्ध हो रहा है, जैसे चंद्रमा को देखकर चकोर। हे प्रभो! इसलिए मैं आपसे सत्य (निश्छल) भाव से पूछता हूँ। हे नाथ! बताइए, छिपाव कीजिए।

 

ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माहीं॥

कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी॥4

 

ज्ञान वह है, जहाँ (जिसमें) मान आदि एक भी (दोष) नहीं है और जो सबसे समान रूप से ब्रह्म को देखता है। हे तात! उसी को परम वैराग्यवान कहना चाहिए जो सारी सिद्धियों को और तीनों गुणों को तिनके के समान त्याग चुका हो।॥4

શબ્દ બ્રહ્મ છે, અશબ્દ પરમ બ્રહ્મ છે.

વૈરાગ્ય એટલે વિલાસથી ભાગવું એવો નથી પણ ભજન કરતાં કરતામ એટલી ઈંચાઈ પ્રાપ્ત કરવી કે જેથી આપણામાં કોઈ છિદ્ર જ ન રહે કે જ્યાંથી વિલાસ આપણામાં પ્રવેશી શકે.

શિવ વિશ્વાસનું ઘનીભૂત રુપ છે.

રામ સત્યનું ઘનીભૂત રુપ છે.

કૃષ્ણ પ્રેમનું ઘનીભૂત રુપ છે.

હનુમાનજી વૈરાગ્યનું ઘનીભૂત રુપ છે.

 

तब मुनि सादर कहा बुझाई। चरित एक प्रभु देखिअ जाई॥

धनुषजग्य सुनि रघुकुल नाथा। हरषि चले मुनिबर के साथा॥

 

तदंतर मुनि ने आदरपूर्वक समझाकर कहा - हे प्रभो! चलकर एक चरित्र देखिए। रघुकुल के स्वामी राम धनुषयज्ञ (की बात) सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र के साथ प्रसन्न होकर चले।

જનક રાજા વિલાસી નગરી જનકપુરમાં રહેતા હોવા છતાં તેમનું મન વિરાગરુપ છે એવું કહે છે.

સમુદ્ર એ મોટામાં મોટો ખાડો છે. નદી એ સમુદ્રને મળવા નથી વહેતી પણ તે રસ્તામાં આવતા નાના નાના ખાડા ભરતી ભરતી સૌથી મોટા ખાડાને ભરવા જાય છે.

જનકપુરનો વિલાસ વર્ણવતાં તુલસીદાસ કહે છે કે ……….

पुर रम्यता राम जब देखी। हरषे अनुज समेत बिसेषी॥

बापीं कूप सरित सर नाना। सलिल सुधासम मनि सोपाना॥3॥

श्री रामजी ने जब जनकपुर की शोभा देखी, तब वे छोटे भाई लक्ष्मण सहित अत्यन्त हर्षित हुए। वहाँ अनेकों बावलियाँ, कुएँ, नदी और तालाब हैं, जिनमें अमृत के समान जल है और मणियों की सीढ़ियाँ (बनी हुई) हैं॥3॥

गुंजत मंजु मत्त रस भृंगा। कूजत कल बहुबरन बिहंगा॥

बरन बरन बिकसे बनजाता। त्रिबिध समीर सदा सुखदाता॥4॥

मकरंद रस से मतवाले होकर भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। रंग-बिरंगे (बहुत से) पक्षी मधुर शब्द कर रहे हैं। रंग-रंग के कमल खिले हैं। सदा (सब ऋतुओं में) सुख देने वाला शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रहा है॥4॥

सुमन बाटिका बाग बन बिपुल बिहंग निवास।

फूलत फलत सुपल्लवत सोहत पुर चहुँ पास॥212।

पुष्प वाटिका (फुलवारी), बाग और वन, जिनमें बहुत से पक्षियों का निवास है, फूलते, फलते और सुंदर पत्तों से लदे हुए नगर के चारों ओर सुशोभित हैं॥212॥

बनइ न बरनत नगर निकाई। जहाँ जाइ मन तहँइँ लोभाई॥

चारु बजारु बिचित्र अँबारी। मनिमय बिधि जनु स्वकर सँवारी॥1॥

नगर की सुंदरता का वर्णन करते नहीं बनता। मन जहाँ जाता है, वहीं लुभा जाता (रम जाता) है। सुंदर बाजार है, मणियों से बने हुए विचित्र छज्जे हैं, मानो ब्रह्मा ने उन्हें अपने हाथों से बनाया है॥1॥

धनिक बनिक बर धनद समाना। बैठे सकल बस्तु लै नाना।

चौहट सुंदर गलीं सुहाई। संतत रहहिं सुगंध सिंचाई॥2॥

कुबेर के समान श्रेष्ठ धनी व्यापारी सब प्रकार की अनेक वस्तुएँ लेकर (दुकानों में) बैठे हैं। सुंदर चौराहे और सुहावनी गलियाँ सदा सुगंध से सिंची रहती हैं॥2॥

मंगलमय मंदिर सब केरें। चित्रित जनु रतिनाथ चितेरें॥

पुर नर नारि सुभग सुचि संता। धरमसील ग्यानी गुनवंता॥3॥

सबके घर मंगलमय हैं और उन पर चित्र कढ़े हुए हैं, जिन्हें मानो कामदेव रूपी चित्रकार ने अंकित किया है। नगर के (सभी) स्त्री-पुरुष सुंदर, पवित्र, साधु स्वभाव वाले, धर्मात्मा, ज्ञानी और गुणवान हैं॥3॥

अति अनूप जहँ जनक निवासू। बिथकहिं बिबुध बिलोकि बिलासू॥

होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन सोभा जनु रोकी॥4॥

जहाँ जनकजी का अत्यन्त अनुपम (सुंदर) निवास स्थान (महल) है, वहाँ के विलास (ऐश्वर्य) को देखकर देवता भी थकित (स्तम्भित) हो जाते हैं (मनुष्यों की तो बात ही क्या!)। कोट (राजमहल के परकोटे) को देखकर चित्त चकित हो जाता है, (ऐसा मालूम होता है) मानो उसने समस्त लोकों की शोभा को रोक (घेर) रखा है॥4॥

धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति।

सिय निवास सुंदर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥

उज्ज्वल महलों में अनेक प्रकार के सुंदर रीति से बने हुए मणि जटित सोने की जरी के परदे लगे हैं। सीताजी के रहने के सुंदर महल की शोभा का वर्णन किया ही कैसे जा सकता है॥213॥

सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा॥

बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रख संकुल सब काला॥1॥

राजमहल के सब दरवाजे (फाटक) सुंदर हैं, जिनमें वज्र के (मजबूत अथवा हीरों के चमकते हुए) किवाड़ लगे हैं। वहाँ (मातहत) राजाओं, नटों, मागधों और भाटों की भीड़ लगी रहती है। घोड़ों और हाथियों के लिए बहुत बड़ी-बड़ी घुड़सालें और गजशालाएँ (फीलखाने) बनी हुई हैं, जो सब समय घोड़े, हाथी और रथों से भरी रहती हैं॥1॥

सूर सचिव सेनप बहुतेरे। नृपगृह सरिस सदन सब केरे॥

पुर बाहेर सर सरित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा॥2॥

बहुत से शूरवीर, मंत्री और सेनापति हैं। उन सबके घर भी राजमहल सरीखे ही हैं। नगर के बाहर तालाब और नदी के निकट जहाँ-तहाँ बहुत से राजा लोग उतरे हुए (डेरा डाले हुए) हैं॥2॥

देखि अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।

कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥3॥

(वहीं) आमों का एक अनुपम बाग देखकर, जहाँ सब प्रकार के सुभीते थे और जो सब तरह से सुहावना था, विश्वामित्रजी ने कहा- हे सुजान रघुवीर! मेरा मन कहता है कि यहीं रहा जाए॥3॥

भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनि बृंद समेता॥

बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए॥4॥

कृपा के धाम श्री रामचन्द्रजी 'बहुत अच्छा स्वामिन्‌!' कहकर वहीं मुनियों के समूह के साथ ठहर गए। मिथिलापति जनकजी ने जब यह समाचार पाया कि महामुनि विश्वामित्र आए हैं,॥4॥

संग सचिव सुचि भूरि भट भूसुर बर गुर ग्याति।

चले मिलन मुनिनायकहि मुदित राउ एहि भाँति॥214॥

तब उन्होंने पवित्र हृदय के (ईमानदार, स्वामिभक्त) मंत्री बहुत से योद्धा, श्रेष्ठ ब्राह्मण, गुरु (शतानंदजी) और अपनी जाति के श्रेष्ठ लोगों को साथ लिया और इस प्रकार प्रसन्नता के साथ राजा मुनियों के स्वामी विश्वामित्रजी से मिलने चले॥214॥

कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा। दीन्हि असीस मुदित मुनिनाथा॥

बिप्रबृंद सब सादर बंदे। जानि भाग्य बड़ राउ अनंदे॥1॥

राजा ने मुनि के चरणों पर मस्तक रखकर प्रणाम किया। मुनियों के स्वामी विश्वामित्रजी ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। फिर सारी ब्राह्मणमंडली को आदर सहित प्रणाम किया और अपना बड़ा भाग्य जानकर राजा आनंदित हुए॥1॥

कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा। बिस्वामित्र नृपहि बैठारा॥

तेहि अवसर आए दोउ भाई। गए रहे देखन फुलवाई॥2॥

बार-बार कुशल प्रश्न करके विश्वामित्रजी ने राजा को बैठाया। उसी समय दोनों भाई आ पहुँचे, जो फुलवाड़ी देखने गए थे॥2॥

स्याम गौर मृदु बयस किसोरा। लोचन सुखद बिस्व चित चोरा॥

उठे सकल जब रघुपति आए। बिस्वामित्र निकट बैठाए॥3॥

सुकुमार किशोर अवस्था वाले श्याम और गौर वर्ण के दोनों कुमार नेत्रों को सुख देने वाले और सारे विश्व के चित्त को चुराने वाले हैं। जब रघुनाथजी आए तब सभी (उनके रूप एवं तेज से प्रभावित होकर) उठकर खड़े हो गए। विश्वामित्रजी ने उनको अपने पास बैठा लिया॥3॥

भए सब सुखी देखि दोउ भ्राता। बारि बिलोचन पुलकित गाता॥

मूरति मधुर मनोहर देखी भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी॥4॥

दोनों भाइयों को देखकर सभी सुखी हुए। सबके नेत्रों में जल भर आया (आनंद और प्रेम के आँसू उमड़ पड़े) और शरीर रोमांचित हो उठे। रामजी की मधुर मनोहर मूर्ति को देखकर विदेह (जनक) विशेष रूप से विदेह (देह की सुध-बुध से रहित) हो गए॥4॥

 

प्रेम मगन मनु जानि नृपु करि बिबेकु धरि धीर।

बोलेउ मुनि पद नाइ सिरु गदगद गिरा गभीर॥215॥

मन को प्रेम में मग्न जान राजा जनक ने विवेक का आश्रय लेकर धीरज धारण किया और मुनि के चरणों में सिर नवाकर गद्ग द्‍ (प्रेमभरी) गंभीर वाणी से कहा- ॥215॥

कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक॥

ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि की सोइ आवा॥1॥

हे नाथ! कहिए, ये दोनों सुंदर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक? अथवा जिसका वेदों ने 'नेति' कहकर गान किया है कहीं वह ब्रह्म तो युगल रूप धरकर नहीं आया है?॥1॥

सहज बिरागरूप मनु मोरा। थकित होत जिमि चंद चकोरा॥

ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ। कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ॥2॥

मेरा मन जो स्वभाव से ही वैराग्य रूप (बना हुआ) है, (इन्हें देखकर) इस तरह मुग्ध हो रहा है, जैसे चन्द्रमा को देखकर चकोर। हे प्रभो! इसलिए मैं आपसे सत्य (निश्छल) भाव से पूछता हूँ। हे नाथ! बताइए, छिपाव न कीजिए॥2॥

બાલકાંડ એ તપનો કાંડ છે.

અયોધ્યાકાંડ ત્યાગનો કાંડ છે.

અરણ્યકાંડ પાતિવ્રત ધર્મનો કાંડ છે.

કિષ્કિંધાકાંડ તૃષા પ્રધાન કાંડ છે.

સુંદરકાંડ સમુદ્ર તરણ પ્રધાનનો કાંડ છે.

લંકાકાંડ તારણનો કાંડ છે.

ઉત્તરકાંડ તૃપ્તિનો કાંડ છે.

 

Day 2

Sunday, 24/08/2025

વૈરાગિ અનુરાગી બની શકે?

અયોધ્યા વૈરાગી ભૂમિ છે.

કાશી જ્ઞાન ભૂમિ છે.

मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खान अघ हानि कर।

जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न ॥

जहाँ श्री शिव-पार्वती बसते हैं, उस काशी को मुक्ति की जन्मभूमि, ज्ञान की खान और पापों का नाश करने वाली जानकर उसका सेवन क्यों न किया जाए?

વૃંદાવન પ્રેમ ભૂમિ છે.

દ્રઢ વૈરાગી સર્વ શ્રેષ્ઠ અનુરાગી છે.

નરસિંહ મહેતા પણ કહે છે કે “દ્રઢ વૈરાગ્ય જેના મનમાં રે ….”

રાગી મોહિત થાય,  પણ અનુરાગને ન જાણે.

ગંગાસતી કહે છે કે “કુપાઇતની આગળ પાનબાઈ …..”

ચોરી પાપ છે તેમજ સંગ્રહ પણ પાપ છે.

વેરડો જેટલો ઊલેચો તેટલું વધારે પાણી તેમાં ભરાય.

નિરંતર ઈર્ષા, દ્વેષ અહંકારને શું કહેવાનું?

હારીએ ન હિંમત વિચારીયે ન હરિનામ

બુદ્ધ પુરુષ આપણા મનના નિર્માતા છે તેમજ જ્ઞાતા પણ છે.

 

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।

अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा॥

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।

निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा॥2॥

हे अविनाशी, सबके हृदय में निवास करने वाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परम आनंदस्वरूप, अज्ञेय, इन्द्रियों से परे, पवित्र चरित्र, माया से रहित मुकुंद (मोक्षदाता)! आपकी जय हो! जय हो!! (इस लोक और परलोक के सब भोगों से) विरक्त तथा मोह से सर्वथा छूटे हुए (ज्ञानी) मुनिवृन्द भी अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर जिनका रात-दिन ध्यान करते हैं और जिनके गुणों के समूह का गान करते हैं, उन सच्चिदानंद की जय हो॥2॥

 

तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा॥

कबि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी॥4॥

उसी अवसर पर वहाँ एक तपस्वी आया, जो तेज का पुंज, छोटी अवस्था का और सुंदर था। उसकी गति कवि नहीं जानते (अथवा वह कवि था जो अपना परिचय नहीं देना चाहता)। वह वैरागी के वेष में था और मन, वचन तथा कर्म से श्री रामचन्द्रजी का प्रेमी था॥4॥

વૈરાગી સમાન કોઈ અનુરાગી નથી.

જનક રાજા તપસ્વી વૈરાગી છે તેથી અનુરાગી છે.

 

सजल  नयन  तन  पुलकि  निज  इष्टदेउ  पहिचानि।

परेउ  दंड  जिमि  धरनितल  दसा    जाइ  बखानि॥110॥

अपने  इष्टदेव  को  पहचानकर  उसके  नेत्रों  में  जल  भर  आया  और  शरीर  पुलकित  हो  गया।  वह  दण्ड  की  भाँति  पृथ्वी  पर  गिर  पड़ा,  उसकी  (प्रेम  विह्वल)  दशा  का  वर्णन  नहीं  किया  जा  सकता॥110॥

राम  सप्रेम  पुलकि  उर  लावा।  परम  रंक  जनु  पारसु  पावा॥

मनहुँ  प्रेमु  परमारथु  दोऊ।  मिलत  धरें  तन  कह  सबु  कोऊ॥1॥

श्री  रामजी  ने  प्रेमपूर्वक  पुलकित  होकर  उसको  हृदय  से  लगा  लिया।  (उसे  इतना  आनंद  हुआ)  मानो  कोई  महादरिद्री  मनुष्य  पारस  पा  गया  हो।  सब  कोई  (देखने  वाले)  कहने  लगे  कि  मानो  प्रेम  और  परमार्थ  (परम  तत्व)  दोनों  शरीर  धारण  करके  मिल  रहे  हैं॥1॥

बहुरि  लखन  पायन्ह  सोइ  लागा।  लीन्ह  उठाइ  उमगि  अनुरागा॥

पुनि  सिय  चरन  धूरि  धरि  सीसा।  जननि  जानि  सिसु  दीन्हि  असीसा॥2॥

फिर  वह  लक्ष्मणजी  के  चरणों  लगा।  उन्होंने  प्रेम  से  उमंगकर  उसको  उठा  लिया।  फिर  उसने  सीताजी  की  चरण  धूलि  को  अपने  सिर  पर  धारण  किया।  माता  सीताजी  ने  भी  उसको  अपना  बच्चा  जानकर  आशीर्वाद  दिया॥2॥

कीन्ह  निषाद  दंडवत  तेही।  मिलेउ  मुदित  लखि  राम  सनेही॥

पिअत  नयन  पुट  रूपु  पियुषा।  मुदित  सुअसनु  पाइ  जिमि  भूखा॥3॥

फिर  निषादराज  ने  उसको  दण्डवत  की।  श्री  रामचन्द्रजी  का  प्रेमी  जानकर  वह  उस  (निषाद)  से  आनंदित  होकर  मिला।  वह  तपस्वी  अपने  नेत्र  रूपी  दोनों  से  श्री  रामजी  की  सौंदर्य  सुधा  का  पान  करने  लगा  और  ऐसा  आनंदित  हुआ  जैसे  कोई  भूखा  आदमी  सुंदर  भोजन  पाकर  आनंदित  होता  है॥3॥

વૈરાગી પરમ રસિક હોય છે.

વૈરાગ્ય એ પરમ જાગરણ છે.

નામ અને સ્મરણ વચ્ચે ૧૧ પડાવ છે.

નારદ સનત્કુમારોને મળે છે અને નીચે પ્રમાણે પ્રશ્ન કરે છે. જેમાં નામથી સ્મરણ વચ્ચેના ૧૧ પડાવ બતાવ્યા છે.

    નામથી આગળ વાણી છે.

    વાણી થી આગળ મન છે.

          મનથી આગળ ચિત છે.

          ચિતથી આગળ ધ્યાન છે.

          ધ્યાનથી આગળ વિજ્ઞાન છે.

          વિજ્ઞાનથી આગળ બળ છે.

          બળથી આગળ અન્ન છે.

          અન્નથી આગળ જલ છે.

          જલથી આગળ તેજ છે.

૧૦        તેજથી આગળ આકાશ છે.

૧૧         આકાશથી આગળ નામ સ્મરણ છે.

 

एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥

जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब सब बिषय बिलास बिरागा॥2॥

 

इस जगत् रूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं, जो परमार्थी हैं और प्रपंच (मायिक जगत) से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जागा हुआ तभी जानना चाहिए, जब सम्पूर्ण भोग-विलासों से वैराग्य हो जाए॥2॥

ભરત રામ ભગવાનના સ્વભાવ વિષે કહે છે કે ….

 

मैं  जानउँ  निज  नाथ  सुभाऊ।  अपराधिहु  पर  कोह    काऊ॥

मो  पर  कृपा  सनेहु  बिसेषी।  खेलत  खुनिस    कबहूँ  देखी॥3॥

अपने  स्वामी  का  स्वभाव  मैं  जानता  हूँ।  वे  अपराधी  पर  भी  कभी  क्रोध  नहीं  करते।  मुझ  पर  तो  उनकी  विशेष  कृपा  और  स्नेह  है।  मैंने  खेल  में  भी  कभी  उनकी  रीस  (अप्रसन्नता)  नहीं  देखी॥3॥

બુદ્ધ પુરુષ અપરાધી ઉપર પણ ક્રોધ ન કરે.

 

सिसुपन  तें  परिहरेउँ    संगू।  कबहुँ    कीन्ह  मोर  मन  भंगू॥

मैं  प्रभु  कृपा  रीति  जियँ  जोही।  हारेहूँ  खेल  जितावहिं  मोही॥4॥

बचपन  में  ही  मैंने  उनका  साथ  नहीं  छोड़ा  और  उन्होंने  भी  मेरे  मन  को  कभी  नहीं  तोड़ा  (मेरे  मन  के  प्रतिकूल  कोई  काम  नहीं  किया)।  मैंने  प्रभु  की  कृपा  की  रीति  को  हृदय  में  भलीभाँति  देखा  है  (अनुभव  किया  है)।  मेरे  हारने  पर  भी  खेल  में  प्रभु  मुझे  जिता  देते  रहे  हैं॥4॥

 

Day 3

Monday, 25/08/2025

આઠ જણાને કથા ન સંભળાવવી એવું ભગવાન શંકર પાર્વતીને કહે છે.

જ્યારે કથા શ્રવણમાં રસ જાગે ત્યારે સમજજો કે આપણા પાપ નષ્ટ થઈ રહ્યા છે.

 

रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दु:ख भागा॥

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥3॥

 

वे श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, (जिनके) सुनते ही सीता जी का दुःख भाग गया। वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं। हनुमान जी ने आदि से लेकर अब तक की सारी कथा कह सुनाई॥3॥

વૈરાગ્ય અને બોધ આરોહણ કરવા માટેની બે પાંખો છે.

વૈરાગ્ય હાર્દિક હોય અને બોધ બૌધિક હોય.

વૈરાગ્યના પ્રકાર

વિષાદ વૈરાગ્ય

પ્રસાદ વૈરાગ્ય

સ્મશાન વૈરાગ્ય

હનુમાન વૈરાગ્ય

ભગવાન શંકર ૯ જણાને ધન્યવાદ આપે છે.

 

धन्य देस सो जहँ सुरसरी। धन्य नारि पतिब्रत अनुसरी।।

धन्य सो भूपु नीति जो करइ। धन्य सो द्विज निज धर्म न टरई।।3।।

 

वह देश धन्य है जहाँ श्री गंगाजी हैं, वह स्त्री धन्य है जो पातिव्रत-धर्मका पालन करती है। वह राजा धन्य है जो न्याय करता है और ब्राह्मण धन्य है जो अपने धर्म से नहीं डिगता।।3।।

 

सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी।।

धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा।।4।।

 

वह धन धन्य है जिसकी पहली गति होती है (जो दान देनेमें व्यय होता है।) वही बुद्धि धन्य और परिपक्य है जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मणकी अखण्ड भक्ति हो।।4।। [धनकी तीन गतियाँ होती है-दान भोग और नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है जो पुरुष न देता है, न भोगता है, उसके धन को तीसरी गति होती है।]

ધનની ત્રણ ગતિ – દાન, ભોગ અને નાશ છે.

 

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।

श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत।।127।।

 

हे उमा ! सुनो। वह कुल धन्य है, संसारभरके लिये पूज्य है और परम पवित्र है, जिसमें श्रीरघुवीरपरायण (अनन्य रामभक्त) विनम्र पुरुष उत्पन्न हो।।127।।

 

बिनती सुनिए नाथ हमारी,

बिनती सुनिए नाथ हमारी,

हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी,

हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी,

मोर मुकुट पीतांबर धारी,

बिनती सुनिए नाथ हमारी ॥

जनम जनम की लगी लगन है,

साक्षी तारो भरा गगन है,

गिन गिन स्वाश आस कहती है,

आएँगे श्री कृष्ण मुरारी,

॥ बिनती सुनिए नाथ हमारी...॥

 

सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन,

हे भव बाधा बिपति बिमोचन,

स्वागत का अधिकार दीजिए,

शरणागत है नयन पुजारी,

॥ बिनती सुनिए नाथ हमारी...॥

और कहूं क्या अंतर्यामी,

तन मन धन प्राणो के स्वामी,

करुणाकर आकर के कहिए,

स्वीकारी विनती स्वीकारी,

॥ बिनती सुनिए नाथ हमारी...॥

बिनती सुनिए नाथ हमारी,

बिनती सुनिए नाथ हमारी,

हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी,

हृदयष्वर हरी हृदय बिहारी,

मोर मुकुट पीतांबर धारी,

बिनती सुनिए नाथ हमारी ॥

આકાશ – SKY ૭ છે અવકાશ – SPACE  અનંત છે.

 

मति अनुरूप कथा मैं भाषी। जद्यपि प्रथम गुप्त करि राखी।।

तव मन प्रीति देखि अधिकाई। तब मैं रघुपति कथा सुनाई।।1।।

 

मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार यह कथा कही, यद्यपि पहले इसको छिपाकर रक्खा था। जब तुम्हारे मनमें प्रेमकी अधिकता देखी तब मैंने श्रीरघुनाथजीकी यह कथा तुमको सुनायी।।1।।

 

यह न कहिअ सठही हठसीलहि। जो मन लाइ न सुन हरि लीलहि।।

कहिअ न लोभिहि क्रोधिहि कामिहि। जो न भजइ सचराचर स्वामिहि।।2।।

 

यह कथा उनसे न कहनी चाहिये जो शठ (धूर्त) हों, हठी स्वभावके हों और श्रीहरिकी लीलाको मन लगाकर न सुनते हों। लोभी, क्रोधी और कामीको, जो चराचरके स्वामी श्रीरामजीको नहीं भजते, यह कथा नहीं कहनी चाहिये।।2।।

કથા શ્રવણ માટે કથા સ્થાનમાં  જગ્યા મળે એ પૂણ્ય પ્રતાપનું પરિણામ છે.

ટીકા કરવી એ ખરાબ નથી પણ નિંદા કરવી એ ખરાબ છે.

પ્રભુ તારા બનાવેલા આજે તને બનાવે છે.

જેના ઉપર કથા દાતાની કૃપા ન થાય તે કથા શ્રવણ ન કરી શકે.

 

द्विज द्रोहिहि न सुनाइअ कबहूँ। सुरपति सरिस होइ नृप जबहूँ।।

राम कथा के तेइ अधिकारी जिन्ह कें सत संगति अति प्यारी।।3।।

 

ब्राह्मणों के द्रोही को, यदि वे देवराज (इन्द्र) के समान ऐश्वर्यवान् राजा भी हो, तब भी यह कथा कभी नहीं सुनानी चाहिये। श्रीरामजीकी कथाके अधिकारी वे ही हैं जिनको सत्संगति अत्यन्त प्रिय है।।3।।

 

गुर पद प्रीति नीति रत जेई। द्विज सेवक अधिकारी तेई।।

ता कहँ यह बिसेष सुखदाई। जाहि प्रानप्रिय श्रीरघुराई।।4।।

 

जिनकी गुरुके चरणों में प्रीति हैं, जो नीति परायण और ब्राह्मणों के सेवक हैं, वे ही इसके अधिकारी है। और उसको तो यह कथा बहुत ही सुख देनेवाली है, जिनको श्रीरघुनाथजी प्राणके समान प्यारे हैं।।4।।

જે તપસ્વી જ હોય તેને કથા ન સંભળાવવી.

કથા શ્રવણ એ પણ તપ છે.

જે ભક્ત ન હોય તેને કથા ન સંભળાવવી.

જેને ઈશ્વર, વેદ, શાસ્ત્ર, મહાત્મા, ગુરુ વગેરેમાં નિષ્ઠા ન હોય તે અભક્ત છે.

ઈર્ષાળુને કથા ન સંભળાવવી.

 

Day 4

Tuesday, 26/08/2025

વૈરાગ્યના પ્રકાર …….

 

कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल कालबस निज कुल घालकु॥

भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू॥1॥

हे विश्वामित्र! सुनो, यह बालक बड़ा कुबुद्धि और कुटिल है, काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंश रूपी पूर्ण चन्द्र का कलंक है। यह बिल्कुल उद्दण्ड, मूर्ख और निडर है॥1॥

 

काल कवलु होइहि छन माहीं। कहउँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥

तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥2॥

अभी क्षण भर में यह काल का ग्रास हो जाएगा। मैं पुकारकर कहे देता हूँ, फिर मुझे दोष नहीं है। यदि तुम इसे बचाना चाहते हो, तो हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर इसे मना कर दो॥2॥

પરશુરામ પણ વિવેક ચૂકીને લક્ષ્મણને બાલકુ એવું સંબોધન કરે છે તેમજ વિશ્વામિત્રને પણ તુમ કહે છે.

 

लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥

अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥3॥

लक्ष्मणजी ने कहा- हे मुनि! आपका सुयश आपके रहते दूसरा कौन वर्णन कर सकता है? आपने अपने ही मुँह से अपनी करनी अनेकों बार बहुत प्रकार से वर्णन की है॥3॥

नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥

बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥4॥

इतने पर भी संतोष न हुआ हो तो फिर कुछ कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुःख मत सहिए। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और क्षोभरहित हैं। गाली देते शोभा नहीं पाते॥4॥

વૈરાગ્ય એ પણ એક રસ છે.

જે વૈરાગી હોય તેની આંખ ભીની થાય જ.

વૈરાગ્ય માટે કોઈ ખાસ વેશ ધારણ કરવો જરુરી નથી.

સાચા વૈરાગીના વેશ સાથે ૩ વસ્તુ જોડાયેલી છે.

                      વૈરાગીનો વેશ એ મૈત્રીનું કપડું છે.

                      વૈરાગીના વેશમાં એક કપડું કરુણાનું હોય.

                      વૈરાગી સદા ઉપકારી રહી અંતિમ શ્વાસ સુધી કંઇક આપતો રહે.

આવો વૈરાગી જ્યાં પણ જાય તે સમાધિ જ છે.

વૈરાગીનું દેહાભિમાન શુન્ય હોય. VACCANT MIND હોય.

નિંદા એ રોગ છે.

કોઈની નિંદા ન કરવી એ પરમ આરોગ્ય છે.

વૈરાગીની વૃત્તિ જ તેનું વસ્ત્ર છે.

કોઈ પણ પ્રકારનો સંકેત કર્યા વગર પોતાના ભિક્ષા પાત્રમાં જે આવે તેને ૫૬ ભોગ ગણી આરોગવું એ વૈરાગીનું વર્તન છે.

પોતે ભૂખ્યા રહીને બીજાને ભિજન કરાવવું, બીજાને જીતાડી પોતે હારી જવું એ વૈરાગીનો સ્વભાવ છે.

વૈરાગ ધારણ કરવાની એજ તિવ્રતા હોય છે. મનુ શતરુપામાં વૈરાગ ધારણ કરવાની તિવ્રતા આવે છે.

મનુ શતરુપાને તિવ્ર વૈરાગ્ય આવ્યો હતો.

પાર્વતી શ્રદ્ધા રુપે શંકર ભગવાન પાસે પ્રશ્ર કરી કથા શ્રવણ માટે વિનંતી કરે છે. અહીં પાર્વતી શ્રદ્ધા રુપ માતૃ સ્વરુપ છે તેની તુલસી તેને માતુ ભવાની કહે છે.

 

बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें॥

पारबती भल अवसरु जानी। गईं संभु पहिं मातु भवानी॥1॥

कामदेव के शत्रु शिवजी वहाँ बैठे हुए ऐसे शोभित हो रहे थे, मानो शांतरस ही शरीर धारण किए बैठा हो। अच्छा मौका जानकर शिवपत्नी माता पार्वतीजी उनके पास गईं।

Day 5

Wednesday, 27/08/2025

Tuesday, August 12, 2025

માનસ રામ રક્ષા – 961

 

રામ કથા – 961

માનસ રામ રક્ષા – 961

Mombasa , Kenya

શનિવાર, તારીખ 09/08/2025 થી રવિવાર, તારીખ 17/08/2025

કેંદ્રીય પંક્તિઓ

सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा।

भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा॥2

करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी।

जिमि बालक राखइ महतारी॥

 

 

1

Saturday, 09/08/2025

 

तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा। प्रभु केहि कारन करै दीन्हा॥

सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा। भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा॥2

 

तब मैं विवाह करना चाहता था। हे प्रभु! आपने मुझे किस कारण विवाह नहीं करने दिया? (प्रभु बोले-) हे मुनि! सुनो, मैं तुम्हें हर्ष के साथ कहता हूँ कि जो समस्त आशा-भरोसा छोड़कर केवल मुझको ही भजते हैं,2

 

करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी॥

गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई। तहँ राखइ जननी अरगाई॥3

मैं सदा उनकी वैसे ही रखवाली करता हूँ, जैसे माता बालक की रक्षा करती है। छोटा बच्चा जब दौड़कर आग और साँप को पकड़ने जाता है, तो वहाँ माता उसे (अपने हाथों) अलग करके बचा लेती है॥3

સંપન્ન વ્યક્તિ પ્રપન્ન (શરણાગત) ન થાય ત્યાં સુધી સંપન્નતાનો કોઈ અર્થ નથી.

શ્રાવણ મહિનો શ્રવણનો મહિનો છે.

ભગવાનના દાસની રક્ષા ભગવાન પોતે કરે છે.

આપણે સાધુ ન બનીએ તો તેનો કોઈ વાંધો નથી પણ આપણે કોઈ સાધુના તો જરુર બનવું જોઈએ.

શબ્દ બ્રહ્મ છે, અશબ્દ – મૌન પરમ બ્રહ્મ છે.

મૌન કૃષ્ણની વિભૂતિ છે.

સાવન – શ્રાવણમાં આદ્રતા હોય અને ભાદ્રમાં ભદ્રતા હોય.

શ્રદ્ધાથી જ્ઞાન મળે.

વિશ્વાસથી ભક્તિ મળે.

ભરોંસાથી ભગવાન મળે.

 

निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा। परस कि होइ बिहीन समीरा॥

कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा। बिनु हरि भजन भव भय नासा॥4

 

निज-सुख (आत्मानंद) के बिना क्या मन स्थिर हो सकता है? वायु-तत्त्व के बिना क्या स्पर्श हो सकता है? क्या विश्वास के बिना कोई भी सिद्धि हो सकती है? इसी प्रकार श्री हरि के भजन बिना जन्म-मृत्यु के भय का नाश नहीं होता॥4

2

Sunday, 10/08/2025

જીવનનો અર્થ પ્રવાહમાન રહેવાનો છે.

કાલ ધર્મ એ છે જે સ્થળ આધારીત છે અને તે સ્થળે તે પ્રમાણે વર્તવું પડે.

દેશ ધર્મ એ છે જ્યાં જે તે દેશના કાનુનનું પાલન કરવું પડે. દરેક દેહ્સ્માં અલગ અલગ કાનુન હોય છે.

ગુણ ધર્મ એ છે જેમાં પોતાનામાં રહેલ રજો ગુણ, તમો ગુણ, સત્વ ગુણ  પ્રમાણે વર્તવું પડે. રજો ગુણ બેસવા ન દે અને તમો ગુણ ઊઠવા ન દે.

સવારના સમયે આપણામાં સત્વ ગુણની પ્રધાનતા હોય છે.

લગભગ સવારના ૧૦ વાગ્યા પછી રજો ગુણની પ્રધાનતા આવે, લોકો કામ ધંધા અર્થે પ્રવૃત થાય.

સાંજના સમયે કામ ધંધાએથી આવ્યા પછી તમો ગુણની પ્રધાનતા આવે, સુવાની – આરામ કરવાની ઈચ્છા થાય.

સ્વભાવ ધર્મ એ સહજ ધર્મ છે.

પ્રસાદ વિશ્રામ આપે જ્યારે પ્રયાસ – પ્રયત્ન શ્રમિત કરે.

સહજં કર્મ કૌન્તેય સદોષમપિ ન ત્યજેત્ ।

સર્વારમ્ભા હિ દોષેણ ધૂમેનાગ્નિરિવાવૃતાઃ ॥ ૧૮-૪૮॥

આપને પૃથ્વીને માતાના રુપમાં જોઈએ છે, અને પૃથ્વી જે જાનકીની માતા છે તેને એક યુવતીના રૂપમાં લીએ તો તે યુવતીના પગના નૂપુર કવિતા અને સરીતા છે.

ભગવાન પાર્વતીના પ્રેમની પરીક્ષા કરે છે એ યોગ્ય કહેવાય?

ભગવાન શંકર એ વિશ્વાસ છે અને પાર્વતી એ શ્રદ્ધા છે. તેથી વિશ્વાસને શ્રદ્ધાની પરીક્ષા કરવાનો અધિકાર છે. સનતકુમારો પાર્વતીના પ્રેમની પરીક્ષા કરે છે. પરીક્ષા કરવાનું સાધન શુદ્ધ હોવું જોઈએ. જેને સાધન શુદ્ધિ કહેવાય.

હરિનામ આપણો પ્રથમ રક્ષલ છે.

ગાંધીજી કહેતા કે રામ નામે મારી રક્ષા કરી છે.

ભક્તિ માર્ગમાં, પ્રેમ માર્ગમાં વિશ્વાસ પરમ ધન છે., પરમ સંપદા છે.

વિશ્વાસ એ જીવન છે જ્યારે સંશય એ મોત છે. ………. વિવેકાનંદ

 

बिस्वास एक राम - नामको ।

मानत नहिं परतीति अनत ऐसोइ सुभाव मन बामको ॥१॥

पढ़िबो पर्यो न छठी छ मत रिगु जजुर अथर्वन सामको ।

ब्रत तीरथ तप सुनि सहमत पचि मरै करै तन छाम को ? ॥२॥

करम - जाल कलिकाल कठिन आधीन सुसाधित दामको ।

ग्यान बिराग जोग जप तप , भय लोभ मोह कोह कामको ॥३॥

सब दिन सब लायक भव गायक रघुनायक गुन - ग्रामको ।

बैठे नाम - कामतरु - तर डर कौन घोर घन घामको ॥४॥

को जानै को जैहै जमपुर को सुरपुर पर धामको ।

तुलसिहिं बहुत भलो लागत जग जीवन रामगुलामको ॥५॥

 

मुझे तो एक राम - नामका ही विश्वास है । मेरे कुटिल मनका कुछ ऐसा ही स्वभाव है कि वह और कहीं विश्वास ही नहीं करता ॥१॥

छः ( न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , मीमांसा , वेदान्त ) शास्त्रोंका तथा ऋक , यजु , अथर्वण और साम वेदोंका पढ़ना तो मेरी छठीमें ही नहीं पड़ा ( भाग्यमें ही नहीं लिखा गया ) है , और व्रत , तीर्थ , तप आदिका तो नाम सुनकर मन डर रहा है । कौन ( इन साधनोंमें ) पच - पचकर मरे या शरीरको क्षीण करे ? ॥२॥

कर्मकाण्ड ( यज्ञादि ) कलियुगमें कठिन है और उसका होना भी धनके अधीन है । ( अब रहे ) ज्ञान , वैराग्य , योग , जप और तप आदि साधन , सो इनके करनेमें काम , क्रोध , लोभ , मोह आदिका भय लगा है ॥३॥

इस भव ( संसार ) - में श्रीरघुनाथजीके गुणसमूहको गानेवाले ही सदा सब प्रकारसे योग्य हैं । जो राम - नामरुपे कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं , उन्हें घनघोर घटा योग्य हैं । जो राम - नामरुपी कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं , उन्हें घनघोर घटा ( तमोमय अज्ञान ) अथवा तेज धूप ( विषयोंकी चकाचौंध ) - का क्या डर हैं ? भाव यह है कि वे अज्ञानके वश होकर विषयोंमें नहीं फँस सकते । इससे पाप - ताप उनसे सदा दूर रहते हैं ॥४॥

कौन जानता है कि कौन नरक जायगा , कौन स्वर्ग जायगा और कौन परमधाम जायगा ? तुलसीदासको तो इस संसारमें रामजीका गुलाम होकर जीना ही बहुत अच्छा लगता है ॥५॥

પોતાના ઈષ્ટદેવનું નામ જ આપણું રક્ષણ કરે છે.

ખૂણો એ કંઈક છુપાવવાનું કામ કરે છે.

નામ અપરાધ કદી ન કરવો.

 

 Day 3

Monday, 11/08/2025

આશીર્વાદ પ્રાપ્ત કરવાના ૫ સ્થાન/સમય છે.

૧          કોઈ સાધુ ચરિત વ્યક્તિ પૂજા કર્યા પછી કે કોઈ મંગળ કાર્ય કર્યા પછી આશીર્વાદ આપે તો તે આશીર્વાદ અસ્તિત્વ પુરા કરે જ. આવા આશીર્વાદ મળે તે માટે પ્રયત્ન કરવો.

૨          કોઈ વૈદિક ઋષિ મુનિ સંદ્યા વંદન કર્યા પછી આશીર્વાદ આપે તો તે અવશ્ય ફળે.

૩          અતિથિને ભોજન કરાવવાથી આશીર્વાદ મળે છે.

૪          ધ્યાન માર્ગીના દર્શન આશીર્વાદ સમાન છે.

૫          સવારે પોતાના પરિવારના વડીલોને પ્રણામ કરવાથી તે આશીર્વાદ આપે તો તે ફળ આપે.

સંસારને છોડવાની જરુર નથી પણ સંસારને સમજવાની જરુર છે.

જો કોઈ વ્યક્તિ વિલાસી જીવનમાં રહેતો હોય પણ જો તેના શરીરમાં કોઈ છિદ્ર ન હોય તો વિલાસ તેના શરીરમાં પ્રવેશી ન શકે ભલે તેની આજુબાજુ વિલાસ હોય.

એક ઘા અને કટકા ત્રણ

એ જાણવું હોય તો ગુજરાતી ભણ       ………….. હરદ્વાર ગોસ્વામી

લક્ષ્મણને કોઈ મનોરથ નથી.

धीरजु धरेउ कुअवसर जानी। सहज सुहृद बोली मृदु बानी॥

तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही॥1॥

 

परन्तु कुसमय जानकर धैर्य धारण किया और स्वभाव से ही हित चाहने वाली सुमित्राजी कोमल वाणी से बोलीं- हे तात! जानकीजी तुम्हारी माता हैं और सब प्रकार से स्नेह करने वाले श्री रामचन्द्रजी तुम्हारे पिता हैं!॥1॥

 

अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू॥

जौं पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहीं॥2॥

 

जहाँ श्री रामजी का निवास हो वहीं अयोध्या है। जहाँ सूर्य का प्रकाश हो वहीं दिन है। यदि निश्चय ही सीता-राम वन को जाते हैं, तो अयोध्या में तुम्हारा कुछ भी काम नहीं है॥2॥

આપણા શરીર સાથે ૨૪ વસ્તુ જોડાયેલી છે – ૫ જ્ઞાનેંદ્રીય, ૫ કર્મેંદ્રીય, ૫ તત્વ – આકાશ, વાયુ, જલ, અગ્નિ અને પૃથ્વી, પંચ પ્રાણ , મન, બુદ્ધિ, ચિત અને અહંકાર.

આ ૨૪ વસ્તુની રક્ષા રામ કરે છે.

આપણા શરીરના પાંચ તત્વોની રક્ષા રામ કરે છે.

પૃથ્વીના ત્રણ ગુણ છે – ક્ષમા, ધીરતા અને સહન કરવાની વૃત્તિ. પૃથ્વીનું એક નામ ક્ષમા છે.

તેથી પાંડુરંગ દાદા કહેતા કે …..

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥

 

(Oh Mother Earth) O Devi, You Who have the Ocean as Your Garments, and Mountains as Your Bosom,

O Consort of Lord Vishnu, Obeisance to You; Please Forgive my Touch of the Feet (on Earth, which is Your Holy Body).

આમ આપણી ધીરતા, ક્ષમા અને સહન કરવાની વૃત્તિની રક્ષા કોણ કરે છે?

વિવેકથી આ ત્રણની રક્ષા થાય.

જળ તત્વની રક્ષા રામ કરે છે.

વાયુ તત્વની રક્ષા રામ કરે છે.

અગ્નિ તત્વની રક્ષા રામ કરે છે.

માનસના બે પાત્ર વાલી અને સુમિત્રા પોતાના પુત્રોને રામને સોંપે છે.

બુદ્ધ પુરુષનું કર્તવ્ય છે કે તે પોતાના આશ્રિતનો હાથ પકડે.

રામને સૌથી પહેલાં પોતાની માતા કૈકેયી યાદ આવે છે.

પંડિત રામ કિંકરજી  મહારાજ કહેતા કે કૈકેયી નરેશની પુત્રી ના રુપમાં કૈકેયી સદૈવ નિંદનીય છે પણ સંત ભરતની માતાના રુપમાં તે સદૈવ વંદનીય છે.

જિજ્ઞાસા એ કંઈક જાણવાની પ્રથા છે જ્યારે પ્રશ્ન પૂછવો એ કોઈને માપવાની પ્રથા છે.

પ્રેમ બંને તરફ પ્રગટ થાય.

જેમ આંખના ગોળાની રક્ષા પાંપણ કરે છે તેમ  સીતા અને રામ લક્ષ્મણની રક્ષા કરે છે.

भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै।

देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे॥

अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं।

दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं॥

 

जब योगीश्वर और तपस्वी भी काम के वश हो गए, तब पामर मनुष्यों की कौन कहे? जो समस्त चराचर जगत् को ब्रह्ममय देखते थे, वे अब उसे स्त्रीमय देखने लगे। स्त्रियाँ सारे संसार को पुरुषमय देखने लगीं और पुरुष उसे स्त्रीमय देखने लगे। दो घड़ी तक सारे ब्राह्मण्ड के अंदर कामदेव का रचा हुआ यह कौतुक (तमाशा) रहा।

 

धरी न काहूँ धीर सब के मन मनसिज हरे।

जे राखे रघुबीर ते उबरे तेहि काल महुँ॥85॥

 

किसी ने भी हृदय में धैर्य नहीं धारण किया, कामदेव ने सबके मन हर लिए। श्री रघुनाथजी ने जिनकी रक्षा की, केवल वे ही उस समय बचे रहे॥85॥

 

हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।

समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥

इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।

सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥

इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।

जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥

तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।

कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥

 

सूरदासजी कहते हैं - मेरे स्वामी! मेरे दुर्गुणों पर ध्यान मत दीजिये! आपका नाम समदर्शी है, उस नाम के कारण ही मेरा उद्धार कीजिये। एक लोहा पूजा में रखा जाता है (तलवार की पूजा होती है) और एक लोहा (छुरी) कसाई के घर पड़ा रहता है, किंतु (समदर्शी) पारस इस भेद को नहीं जानता, वह तो दोनों को ही अपना स्पर्श होने पर सच्चा सोना बना देता है। एक नदी कहलाती है और एक नाला, जिसमें गंदा पानी भरा है, किंतु जब दोनों गङ्गाजी में मिल जाते हैं, तब उनका एक-सा रूप होकर गङ्गा नाम पड़ जाता है। इसी प्रकार सूरदासजी कहते हैं- यह शरीर माया (माया का कार्य) और जीव ब्रह्म (ब्रह्म का अंश) कहा जाता है, किंतु माया के साथ तादात्म्य हो जाने के कारण वह (ब्रह्मरूप जीव) बिगड़ गया (अपने स्वरूप से च्युत हो गया।) अब या तो आप इनको पृथक् कर दीजिये (जीव की अहंता-ममता मिटाकर उसे मुक्त कर दीजिये), नहीं तो आपकी (पतितों का उद्धार करने की) प्रतिज्ञा टली (मिटी) जाती है।

Day 4

Tuesday,12/08/2025

સાધુ અને સંત તેમજ ઋષિ અને મુનિ વચ્ચે શું ફેર છે?

સંત ગૃહસ્થ હોય છે.

તુલસીદાસ, તુકારામ, નરસિંહ મેહતા, મીરાંબાઈ વગેરે સંત છે તેમજ તે બધા ગૃહસ્થ હતા.

સાધુ વિરક્ત હોય તેમજ સંસારી પણ હોય. સાધુ પોતાના પિંડને વાચાને તેમજ શરીરને સમજી લે છે.

આમ તો સાધુ સંત એક જ છે, એક બીજાના પર્યાય છે.

ભગવાન શંકર સંસારી છે છતાં માનસમાં બ્રહ્મા શંકર ભગવાનને સાધુ કહે છે.

ચાર જણાની વાણી શ્રેષ્ઠ વાણી કહેવાય છે, આ ચાર બ્રહ્મા, સરસ્વતી, સુરગુરુ બ્રહસ્પતી અને સદગુરુ.

રામ સાધુ છે, કૌશલ્યા પણ સાધુ છે.

સત શબ્દ ભ્રહ્મ  ઉપર બિંદીનું શિખર લાગે ત્યારે તે સંત કહેવાય.

મુનિ વિરક્ત હોય, તે મૌન રહે.

ઋષિ બોલે, તે ગૃહસ્થ હોય.

ઋષિ અને મુનિમાં બહું ફેર નથી.

બુદ્ધ ભગવાને ૪ વસ્તુ કહી છે.

          એકાંતમાં રહેવું જ્યાં એકનો પણ અંત થઈ જાય. એકાંતમાં રહેવાથી વિચારોનો અંત થઈ જશે.

બુદ્ધ પુરુષના સાનિધ્યમાં રહેવાથી તેના વાઈબ્રેશન આપણને મળશે, સેવા કરવાનો મોકો મળશે, પરિપૂર્ણ સમર્પણ પ્રાપ્ત થશે.

                      મૌન રાખવું. મુશ્કહારટ સહિત મૌન રાખવાથી બુદ્ધિના દુષ્ટ તર્ક સમાપ્ત થશે.

                      ધ્યાન કરવું જેનાથી ચિત વૃત્તિનો નિરોધ થશે.

                      સમાધિમાં રહેવું, આમ કરવાથી અહંકાર મટશે.

રક્ષક એ એક વ્યવસ્થા છે અને રક્ષક બહાર હોય જ્યારે સંરક્ષક જે રામ રક્ષા છે અને તે અંદર હોય.

 

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥

बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥

 

समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान हनुमानजी उस पर से बड़े वेग से उछले॥3॥

હનુમાનજી રામનું સ્મરણ કરતાં કરતાં મોટા પર્વત ઉપર ચાઢી સીતા શોધ માટે છલાંગ લગાવે છે. તેમની આ સીતા – ભક્તિ શોધની યાત્રા દરમ્યાન ૪ અવરોધ આવે છે અને બધા અવરોધ વખતે રામ સ્મરણ તેમની રક્ષા કરે છે.

                      મૈનાક પર્વત નો અવરોધ જેને પ્રલોભનનું વિઘ્ન કહેવાય તે રામ રક્ષાથી બચાવે છે.

          સુરસાનું વિઘ્ન પણ હનુમાનજી પાર કરે છે, ભક્તિની શોધ કરવાના સમયે કોઈની સાથે સ્પર્ધામાં ઊતરી સમય વ્યય ન કરવો.  

          સિહિંકાનું વિઘ્ન

            રામ કિંકરજી મહારાજ સિંહિકાને ઈર્ષા કહે છે.

            સમુદ્ર જેવા વિશાળ વ્યક્તિમાં પણ ઈર્ષા હોય.

            હવા અને અફવા ગમે ત્યાંથી આવે.

           

          લંકામાં રાવણ હનુમાનજીને મૃત્યુ દંડ આપવાનું કહે છે ત્યારે વિભીષણ તે માટે ના પાડે છે.

 

ઉપરના બધા વિઘ્નો રામને હ્મદયમાં રાખવાથી બચાવે છે. આપણે પણ જો રામને હ્મદયમાં રાખીએ તો આવા વિઘ્નોથી બચી શકીએ.

રામનો પ્રભાવ તેમજ સ્વભાવ રક્ષા કરે છે.

પ્રવર શ્રોતા

ચાતક શ્રોતા જે એક જ લક્ષ્ય રાખે.

હંસ જેવા શ્રોતા જે પોતાના સ્વભાવ પ્રમાણે જે અનુકૂળ હોય તેને સ્વીકારી લે.

પદ, પ્રતિષ્ઠા, પૈસા, પ્રગતિ, પ્રાણ, પરિવાર વગેરે નૂ ભરોંસો ન કરવો, આ બધા ગમે ત્યારે આપણાથી દૂર થઈ જાય, વિરુદ્ધ થઈ જાય, ગમે ત્યારે જતા રહે.

તેથી ભરોંસો ફક્ત રામ ઉપર જ કરાય.

અર્થના ૧૫ અનર્થ છે.

ક્રિકેટની રમતમાં ત્રણ સ્ટમ એ મન, બુદ્ધિ, ચિત છે.

ઓવરના ૬ બોલ એ કામ,ક્રોધ, લોભ, મોહ, મદ અને મત્સર છે.

વિકેટ કિપર એ અહંકાર છે જે એકદમ નજીક રહીને આઉટ કરવા પ્રયત્નશીલ હોય છે.

એંપાયર એ સીર્ય ચંદ્ર છે જે ફક્ત સત્ય આધારિત નિર્ણય આપે છે.

થર્ડ એંપાયર એ ભગવાન ત્રોલોચન છે.

પરમાત્મા જ આપણી પાસે કર્મ અને પુરુષાર્થ કરાવે છે.

ભગવાન રામના અવતાર કાર્યમાં એક કારણ નારદનો શ્રાપ છે.

રામ લીલા વખતે નારદ ભગવાન રામ ને મળે છે અને પોતાના શ્રાપ માટે પસ્તાવો કરે છે ત્યારે ભગવાન રામ કહે છે કે તે બધું મારિ ઈચ્છાથી જ થયું છે.

 

मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला॥

मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे॥

 

हे कृपालु! मेरा शाप मिथ्या हो जाए। तब दीनों पर दया करने वाले भगवान ने कहा कि यह सब मेरी ही इच्छा (से हुआ) है। मुनि ने कहा - मैंने आप को अनेक खोटे वचन कहे हैं। मेरे पाप कैसे मिटेंगे?

 

 Day 5

Wednesday, 13/08/2025

 

આ કથા સંવાદની પંક્તિઓ જ્યારે નારદ પંપા સરોવરમાં ભગવાન રામને મળે છે ત્યારની છે.

હનુમાનજી તેમની સીતા શોધની યાત્રા દરમ્યાન સિંહિકાને મારી નાખે છે, સિંહિકા એ ઈર્ષા છે જે સીતા – ભક્તિના શોધમાં વિઘ્ન છે તેને નષ્ટ કરિએ ત્યારે જ ભક્તિની પ્રાપ્તિ થાય.

ઈર્ષા મરે ત્યારે જ ભગવાન  ઈશ્વર મળે. ઈશ્વર તો આપણને પ્રાપ્ત થયેલ જ છે પણ ઈર્ષાના કારણે આપણે ઓળખી નથી શકતા. જો ઈર્ષા મરે તો જ ઈશ્વર ઓળખાય.

 

शुद्धोसि बुद्धोसि निरंजनोऽसि,संसारमाया परिवर्जितोऽसि

संसारस्वप्नं त्यज मोहनिद्रामदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्॥

 

पुत्र यह संसार परिवर्तनशील और स्वप्न के सामान है इसलिये मॊहनिद्रा का त्याग कर क्योकि तू शुद्ध ,बुद्ध और निरंजन है।

મોરારી બાપુ કહે છે કે તમે મને ૯ દિવસ આપો, હું તમને નવ જીવન આપીશ.

ભગવાને આપણને મનુષ્ય જીવન આપી તેમની કૃપા કરી જ દીધી છે. પણ પ્રેમનો અભાવ છે. તેથી ભગવાન પાસે પ્રેમ માગો.

બુદ્ધ પુરુષના સાંકેતિક – સ્વાભાવિક લક્ષણ નીચે મુજબ છે.

            ૧          બુદ્ધ પુરુષની બધી ક્રિયા સમાધિ હોય છે.

૨          જેનો ઉપરનો ભાગ બૌધિક – વિચારક હોય, વચ્ચેનો ભાગ હાર્દિક – સંવેદનશીલ હોય અને નીચેનો ભાગ ધાર્મિક (તેના આચરણમાં ધાર્મિકતા હોય) હોય તે સાધુ પુરુષ છે. સાધુ વિચારક હોય, સંવેદનશીલ હોય અને આચરણમાં ધાર્મિક હોય.

"નિષેધ કોઈનો નહિ, વિદાય કોઈને નહિ

હું શુદ્ધ આવકાર છું, હું સર્વનો સમાસ છું."

-રાજેન્દ્ર શુક્લ

            ૩          બુદ્ધ પુરુષનું મૂળ – ખાનદાની ઊંચે હોય, ઉપર હોય, તેના મૂળિયને કોઈ કાપી ન શકે.

            ૪          બુદ્ધ પુરુષ આધ્યાત્મિક માર્ગ ધંધા માટે પસંદ ન કરે પણ પોતાના સ્વભાવથી કરે.

            ૫          ભજન એ સાધુનો સ્વભાવ છે.

            ૬          બુદ્ધ પુરુષ પાસેથી અમૃત ધારા, પ્રેમ ધારામ શાંતિની ધારા, અશ્રુની ધારાની વર્ષા થાય.

            ૭          બુદ્ધુ પુરુષ બહું શિષ્ય ન બનાવે. શિષ્ય બનાવવામાં બંધન આવે છે.

૮          બુદ્ધ પુરુષ ઘણા શાસ્ત્રોનો અભ્યાસ ન કરે. જો વધારે શાસ્ત્રોનો અભ્યાસ કરવામાં આવે તો તેવા સમયે શાસ્ત્રોના અર્થ પોતાની મૌલિકતા પ્રમાણે કરે અને તેથી શાસ્ત્રનો મૂળ અર્થ બદલાઈ જાય. ભજન કરવામાં અત્યંત શાસ્ત્ર અભ્યાસની જરુર નથી. સમજ્યા વગરના અભ્યાસની જરુર નથી.

            ભજનાનંદીની પાછળ શાસ્ત્રો – ગ્રંથો આવે છે.

૯          બુદ્ધ પુરુષ આપણે ગમે તેવા હોઈએ તો પણ આપણો સ્વીકાર કરે છે, કદી તિરસ્કાર ન કરે.

            સ્વીકાર અને સંતોષ જો જીવનમાં આવે તો ઘણો ફાયદો થાય.

રામ કૌશલ્યા અને શબરીને એક જ કક્ષામાં રાખે છે.

 

ન ધરા સુધી, ન ગગન સુધી, નહીં ઉન્નતિ, ન પતન સુધી,

અહીં આપણે તો જવું હતું, ફક્ત એકમેકના મન સુધી

 

– ગની દહીંવાલા

શ્રોતા વક્તા બંને જ્ઞાની જ છે.

લંકિની કહે છે કે  ………..

 

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥1॥

 

अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है॥1॥

કોઈ પણ જાગૃત વ્યક્તિ બીજાને જાગૃત કરી શકે છે.

 

गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥

अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥2॥

 

और हे गरुड़जी! सुमेरु पर्वत उसके लिए रज के समान हो जाता है, जिसे श्री रामचंद्रजी ने एक बार कृपा करके देख लिया। तब हनुमान जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण किया और भगवान का स्मरण करके नगर में प्रवेश किया॥2॥

જો સત્ય હશે તો અસ્તિત્વ તેની રક્ષા અવશ્ય કરશે.

જેણે ઝેર પીધું છે તેની રક્ષા રામે કરી છે.

ભજન કરનારની નિંદા બહું થતી હોય છે. ભજન કરનાર માટે નિંદા એ INCOME TAX સમાન છે, જેટલું ભજન વધારે તેટલો INCOME TAX વધારે ભરવો પડે.

કૂતરુ ભસેં જ, સંસ્કૃતના સ્તોત્ર ન બોલે.

આપણને – સામાન્ય વ્યક્તિને પગ હોય પણ વિશેષ મહા પુરુષને ચરણ હોય, બુદ્ધ પુરુષને ચરણ કમલ હોય.

 

भृकुटि बिलास नचावइ ताही। अस प्रभु छाड़ि भजिअ कहु काही॥

मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई। भजत कृपा करिहहिं रघुराई॥

 

भगवान उस माया को भौंह के इशारे पर नचाते हैं। ऐसे प्रभु को छोड़कर कहो, (और) किसका भजन किया जाए। मन, वचन और कर्म से चतुराई छोड़कर भजते ही रघुनाथ कृपा करेंगे।

 

न कर्मणा न प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमानशुः।

परेण नाकं निहितं गुहायां विभ्राजते यद्यतयो विशन्ति ॥

 

 

उस (अमृत) की प्राप्ति न कर्म के द्वारा, न सन्तान के द्वारा और न ही धन के द्वारा हो पाती है। (उस) अमृतत्व को सम्यक् रूप से (ब्रह्म को जानने वालों ने) केवल त्याग के द्वारा ही प्राप्त किया है। स्वर्गलोक से भी ऊपर गुहा अर्थात् बुद्धि के गह्वर में प्रतिष्ठित होकर जो ब्रह्मलोक प्रकाश से परिपूर्ण है, ऐसे उस (ब्रह्मलोक) में संयमशील योगीजन ही प्रविष्ट होते हैं ॥

સતસંગ ન થાય તો વાંધો નથી પણ કુસંગ ન થવો જોઈએ.

 

अस अभिलाषु नगर सब काहू। कैकयसुता हृदयँ अति दाहू॥

को न कुसंगति पाइ नसाई। रहइ न नीच मतें चतुराई॥4॥

 

नगर में सबकी ऐसी ही अभिलाषा है, परन्तु कैकेयी के हृदय में बड़ी जलन हो रही है। कुसंगति पाकर कौन नष्ट नहीं होता। नीच के मत के अनुसार चलने से चतुराई नहीं रह जाती॥4॥

કોઈ પણ વૈદિક મંત્ર મહામંત્ર છે.

શરણાગત ભાવથી કર્મના ઘાટ ઉપર જવું પડે.

દીકરીમાં કૃષ્ણની સાત વિભૂતિ સમાવિષ્ઠ છે.

 

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।

कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।10.34।।

 

।10.34।। सबका हरण करनेवाली मृत्यु और उत्पन्न होनेवालोंका उभ्दव मैं हूँ तथा स्त्री-जातिमें कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ।

।।10.34।। मैं सर्वभक्षक मृत्यु और भविष्य में होने वालों की उत्पत्ति का कारण हूँ; स्त्रियों में कीर्ति, श्री, वाक (वाणी), स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ।।

Day 6

Thursday, 14/08/2025

મન અને બુદ્ધિ વિષયી હોય તો ચાલે પણ ચિત વિષયી ન હોવું જોઈએ.

જીવન એ એક યોગ છે, અનુષ્ઠાન છે.

શ્રાવણ માસમાં સવારે રિદ્રષ્ટકમ નો પાઠ કરવો જોઈએ, બપોરે શિવ મહિમ્ન નો પાઠ કરવો જોઈએ અને સાંજે તાંડવ સ્ત્રોત્રનો પાઠ કરવો જોઈએ.

આદિ શંકર, સનાતન ધર્મ ત્રણ ને ગુરુ માને છે.

 

ईश्वरो गुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने |

व्योमवद् व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः

Salutations to Lord Dakshinamurti, who is all-pervasive like space but who appears (as though) divided as Lord, Guru, and the Self.

"ईश्वरो गुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने" यह श्लोक दक्षिणामूर्ति स्तोत्र का एक भाग है, जिसका अर्थ है "ईश्वर, गुरु और आत्मा, ये तीनों एक ही हैं, विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं, जैसे आकाश सभी दिशाओं में व्याप्त है। मैं उस दक्षिणामूर्ति को नमन करता हूँ।"

પહેલા ગુરુ ભગવાન શંકર છે, બીજા ગુરુ પોતાના ગુરુ છે અને ત્રીજા ગુરુ પોતાનો આત્મા છે.

ઈશ્વર એટલે મહાદેવ.

આ ત્રણેય ગુરુમાં ફક્ત મૂર્તિ ભેદ છે, આ ત્રણેય આકાશમાં વ્યાપ્ત છે.

કાકભુષુંડી ગુરુ અપરાધ કરે છે.

 

एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम।

गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम॥106 क॥

 

 

एक दिन मैं शिव जी के मंदिर में शिवनाम जप रहा था। उसी समय गुरुजी वहाँ आए, पर अभिमान के मारे मैंने उठकर उनको प्रणाम नहीं किया॥106 (क)॥

ગુરુની પરંપરા પવિત્ર, પ્રવાહી અને પરોપકારી હોવી જોઈએ.

ભગવાન સાત વસ્તુમાં પોતાનું ગુજરાન ચલાવે છે. LIVING WITH LESS.

પુષ્પદંત રચિત મહિમ્ન સ્ત્રોત્રમાં આનું વર્ણન છે.

 

મહોક્ષ: ખટવાંગં પરશુરજિનં ભસ્મ ફણિન:

કપાલં ચતીયતવ વરદ ! તંત્રીપકરણમ્ |

સુરાસ્તાં તામૃદ્ધિ દધતિ તુ ભવદભ્રૂપ્રણિહિતાં

નહિ સ્વાત્મારામ વિષયમૃગતૃષ્ણા ભ્રમયતિ || 8 ||

 

હે વરદાન આપનાર : નંદી ખટવાંગ ફરશી, વ્યાધચર્મ, ભસ્મ, સર્પ, કપાળ વગેરે તારા જીવનનિર્વાહનાં સાધનો છે. છતાં તેં આપેલી સંપત્તિને રાજાઓ પણ ભોગવે છે. અભયના દાતા ! વિષયો ઝાંઝવાના જળ જેવા છે. તે આત્માથી જ પ્રસન્ન એવા યોગીને બ્રહ્મનિષ્ઠાથી ચલાયમાન કરી શકતા નથી.

ગંગા પ્રવાહી છે તેમજ પવિત્ર પણ છે.

ભગવાન શંકરનાં સાત વસ્તુ ……….

                      મહોક્ષ – બુઢા બળદ

                      ખટવાંગ જે એક પ્રકારનો ખાટલો છે જેને ફ્ક્ત એક જ પાયો છે.

                      પરશુ – ફરસી

                      મૃગ છાલ

                      સર્પના અલંકાર

                      ભષ્મ

                      ખોપડીની માળા

બુદ્ધ પુરુષ પોતાના આશ્રિતના વૈભવથી આનંદિત થાય પણ તેની અપેક્ષા ન રાખે, વૈભવથી ભ્રમિત ન થાય.

ગુરુના ૧૦ અપરાધ નીચે પ્રમાણે છે. શિષ્યે આવા અપરાધોથી બચવું જોઈએ.

          ગુરુ સાથે કદી અદ્વૈત ન રાખવો, આવું ન કરવું એ ગુરુ અપરાધ છે. ગુરુ અને શિષ્ય એક નથી પણ બે છે.

                        ગુરુ સાથે એવું વર્તવું કે હું સેવક છું અને તમે ગુરુ છો.

                      ગુરુને ફક્ત મનુષ્ય સમજવો ગુરુ અપરાધ છે. તુલસીદાસજી પણ ગુરુને નર રુપ હરિ કહે છે.

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।

महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥

 

मैं उन गुरु महाराज के चरण कमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं॥5॥

 

                      ગુરુએ આપેલ મંત્રને કોઈના પ્રલોભનથી છોદી દેવો ગુરુ અપરાધ છે.

                      ગુરુએ આપેલ ઈષ્ટ ગ્રંથને બદલી કોઈ બીજો ગ્રંથ રાખવો ગુરુ અપરાધ છે.

                      ગુરુ એ સાધ્ય છે, લક્ષ્ય છે, ગુરુને સાધન બનાવવો એ ગુરુ અપરાધ છે.

                      ગુરુ પાસે જુઠુ બોલવું ગુરુ અપરાધ છે.

                      ગુરુને શિખામણ આપવી એ ગુરુ અપરાધ છે.

          ગુરુ કરતાં પોતાનામાં વધારે વિદ્યા છે એવું માનવું ગુરુ અપરાધ છે. આવું કરવાથી ઈર્ષા પેદા થાય.

          ગુરુની રજત તુલા કરવી એ ગુરુ અપરાધ છે. ગુરુની તુલા તેના જ્ઞાન વિરાગથી થાય.

 

ગુરુએ પણ નીચે પ્રમાણેના શિષ્ય અપરાધ ન કરવા જોઈએ.

                      ગુરુ શિષ્યનું ધન અપહરણ કરે એ ગુરુએ કરેલો અપરાધ છે.

                      ગુરુએ શિષ્યના પરિવારના સભ્યોનું શોષણ ન કરવું જોઈએ.

                        ગુરુ પોષક હોય, શોષક ન હોય.

                      શિષ્ય સાથે બદલો લેવો એ ગુરુએ કરેલો અપરાધ છે.

                      કોઈ પણ પ્રકારના ભય કે પ્રલોભન બતાવી શિષ્ય બનાવવા એ અપરાધ છે.

                      શિષ્યની પાત્રતા બ હોય છતાં અકારણ પ્રશંસા કરવી એ અપરાધ છે.

                      શિષ્યનું દુઃખ દૂર ન કરવું એ અપરાધ છે.

ઉજ્જેનના મહાકાલના મંદિરમાં કાકભુષુંડી ભગવાન શિવની પૂજા અર્ચના કરે છે અને તે વખતે તેના ગુરુ ત્યાં આવે છે. પણ કાકભુષુંડી ગુરુની અવગણના કરી તેની શિવ પૂજા ચાલું રાખે છે. આ જોઈ ભગવાન શિવ કોપાયમાન થાય છે. તેથી તેમને રીઝવવા આ ગુરુ રુદ્રષ્ટકનું ગાન કરે છે. રુદ્રાષ્ટકમાં આઠ બંધ છે અને આ આઠ બંધ આઠ જણાએ ગાયા છે.

 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥

હે મોક્ષ સ્વરૂપ, વિભુ, વ્યાપક, બ્રહ્મ અને વેદ સ્વરૂપ, ઈશાન દિશાના ઈશ્વર તથા સૌના સ્વામી શ્રી શિવજી! હું આપને નમસ્કાર કરું છું. નિજસ્વરૂપમાં સ્થિત (અર્થાત્ માયા આદિ રહિત), (માયા આદિ) ગુણોથી રહિત, ભેદ રહિત, ઇચ્છા રહિત, ચેતન આકાશ સ્વરૂપ તથા આકાશને જ વસ્ત્ર રૂપ ધારણ કરનાર (અથવા આકાશને પણ આચ્છાદિત કરનાર) હે દિગંબર, હું આપને ભજુ છું.

 ઉપરનો પહેલો બંધ ગુરુએ, પરમ સાધુએ ગાયો છે.

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥२॥

નિરાકાર, ૐ-કારના મૂળ, તુરીય (ત્રણ ગુણોથી અતીત), વાણી, જ્ઞાન અને ઇન્દ્રિયોથી શ્રેષ્ઠ, કૈલાસપતિ, વિકરાલ, મહાકાલથી પણ કાલ, કૃપાળુ, ગુણોના ધામ, સંસારથી શ્રેષ્ઠ હે પરમેશ્વર, હું આપને નમસ્કાર કરું છું.

ઉપરનો બીજો બંધ મા પાર્વતી ગાય છે કે દુર્ગા રાગમાં ગવાયો છે.

 

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥

જે હિમાચલની સમાન ગૌરવર્ણ તથા ગંભીર છે, જેમના શરીરમાં કરોડોં કામદેવોની જ્યોતિ તથા શોભા છે, જેમના મસ્તક પર સુંદર નદી ગંગાજી વિરાજમાન છે, જેમના લલાટ પર બાળ ચંદ્રમા (બીજનો ચંદ્ર) અને ગળામાં સર્પ સુશોભિત છે.

ઉપરનો ત્રીજો બંધા ગંગા મૈયા ગાય છે.

 

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥४॥

જેમના કાનોમાં કુંડળ ઝૂમી રહ્યા છે, સુંદર ભ્રુકુટી અને વિશાળ નેત્ર છે; જે પ્રસન્ન મુખ, નીલકંઠ અને દયાળું છે; સિંહચર્મનું વસ્ત્ર ધારણ કર્યું છે અને મુંડમાળા પહેરી છે, સૌના પ્રિય અને સૌના નાથ, કલ્યાણ કરનાર, શ્રી શિવજીને હું ભજુ છું.

ઉપરનો ચોથો બંધ બ્રહ્માના કહેવાથી વિણા વાદિની સરસ્વતી માતા ભોપાલી રાગમાં ગાય છે.

 

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥५॥

પ્રચંડ (રુદ્રરૂપ), શ્રેષ્ઠ, તેજસ્વી, પરમેશ્વર, અખંડ, અજન્મા, કરોડોં સૂર્યો સમાન પ્રકાશ વાળા, ત્રણે પ્રકારના શૂળો (દુઃખો) ને નિર્મૂળ કરનાર, હાથમાં ત્રિશૂલ ધારણ કરેલ, ભાવ-પ્રેમ દ્વારા પ્રાપ્ત થવાવાળા, હે ભવાનીપતિ શ્રી શિવ શંકર, હું આપને ભજુ છું.

ઉપરનો પાંચમો બંધ મૃદંગ સાથે ગણેશ ગાય છે.

 

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥

કલાઓથી શ્રેષ્ઠ, કલ્યાણ સ્વરૂપ, કલ્પનો અંત (પ્રલય) કરનાર, સજ્જનોને સદા આનંદ આપનાર, ત્રિપુરના શત્રુ સચ્ચિદાનન્દઘન, મોહને હરનાર, મનને મથનાર કામદેવના શત્રુ, હે પ્રભુ! પ્રસન્ન થાઓ, પ્રસન્ન થાઓ.

 ઉપરનો છઠ્ઠો બંધ કાર્તિકેય મયુરના નૃત્ય સાથે ગાય છે.

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥७॥

જ્યાર સુધી, હે પાર્વતી પતિ, મનુષ્ય તમારા ચરણકમળોને નથી ભજતા, ત્યાર સુધી તેને ઇહલોક (પૃથ્વી) અને પરલોકમાં સુખ-શાંતિ નથી મળતી અને ન તો એના તાપોનો નાશ થાય છે. તેથી હે સમસ્ત જીવોની અંદર (હ્રદયમાં) નિવાસ કરનાર પ્રભુ! પ્રસન્ન થાઓ, પ્રસન્ન થાઓ.

આ બધા ગાયન વખતે નંદી સાક્ષી છે. સાતમો બંધ કાચબો ગાય છે.

 

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥८॥

હું ન તો યોગ જાણું છું, ન જપ અને ન પૂજા. હે શિવ શંભુ ! હું તો નિરંતર-હંમેશા આપને જ નમસ્કાર કરું છું. હે પ્રભુ! વૃદ્ધત્વ તથા જન્મ-મૃત્યુના દુઃખસમૂહોથી બળતા મુજ દુખીની દુઃખથી રક્ષા કરો. હે ઈશ્વર! હે શંભુ! હું આપને નમસ્કાર કરું છું.

 ઉપરના આઠમા બંધને સાધુ પુરુષ ભુષુંડીને ગાવાનું કહેતાં ભુષુંડી પોતે ગાય છે.

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥

બ્રાહ્મણો દ્વારા ભગવાન રુદ્રની આ સ્તુતિ એ શંકરજીની તુષ્ટિ (પ્રસન્નતા) કહેવમાં આવી છે. જે મનુષ્ય આ સ્તુતિનો ભક્તિપૂર્વક પાઠ કરે છે, તેના પર ભગવાન શંભુ પ્રસન્ન થાય છે.

ઉપરનો બંઘ જે આઠેય જણાએ ગાયો છે તે બધા ભેગા મળી એક સાથે ગાય છે.

ભારતમાં ૧૨ જ્યોતિર્લિંગ છે તેમાં સોમનાથ, કેદારનાથ, મહાકાલ, રામેશ્વર અને કાશીના વિશ્વનાથ મહાન છે.

સુગ્રીવ અને વિભીષણની રક્ષા ભગવાન રામ કરે છે.

સમુહ કિર્તન કરવાથી ચેતના એકત્રીત થાય છે અને પર્યાવરણ શુદ્ધ થાય છે એવું ઑશોનું મંતવ્ય છે.

આ એક સ્વચ્છતા અભિયાન છે.

Day 7

Friday, 15/08/2025

ભારતીય રાષ્ટ્ર ધ્વજનું ભાષ્ય અનેક રીતે કરવામાં આવ્યું છે જેમ કે સામાજિક, રાષ્ટ્રીય, રાજકીય, ધર્મ મૂલક વગેરે.

રાષ્ટ્ર ધ્વજનું આધ્યાત્મિક અર્થ ઘટન નીચે પ્રમાણે કરી શકાય.

રાષ્ટ્ર ધ્વજનો કેસરી – ભગવો રંગ શિવજીનો રંગ છે. શિવજીની ધજા ગેરુઆ રંગની હોય છે.

આ રંગ ત્યાગ, બલિદાન તેમજ શહિદીનો પ્રતીક છે.

દશનામ તેમજ સંન્યાસ માં ભગવો રંગ પહેરવામાં આવે છે.

આ કલ્યાણકારી વિચારનો રંગ છે.

સૂર્યોદય અને સૂર્યાસ્ત સમયે લાલીમા – ગુલાબી રંગ હોય છે.

સાધુ જ્યારે જાગે તે જ બ્રહ્મ મૂહુર્ત કહેવાય.

 લીલો રંગ ભગવાન કૃષ્ણનો રંગ છે.

આખી સૃષ્ટિ ભગવાન કૃષ્ણના કારણે હરીભરી છે.

શ્વેત રંગ ઉદાસીનતાનો રંગ છે જેમાં કોઈ પોતાનું નથી કોઈ પારકું નથી.

ઉદાસીન – શ્વેત  રંગ એ કોઈ વસ્ત્ર નથી પણ વૃત્તિ છે.

રાષ્ટ્ર ધ્વજનું ચક્ર ભગવાન બુદ્ધ નું ચક્ર છે જેમાં બધાને સુખી રાખવાનો સંદેશ છે.

 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

 

1: Om, May All be Happy,

2: May All be Free from Illness.

3: May All See what is Auspicious,

4: May no one Suffer.

5: Om Peace, Peace, Peace.

આપણી પાસે પ્રાણ, આત્મા અને પરમાત્મા છે જેની રક્ષા ભગવાન રામ કરે છે.

સીતાજી અગ્નિમાં સમાઈ જાય છે ત્યારે ભગવાન રામ તેમની રક્ષા કરે છે.

લંકા દહન વખતે રામ હનુમાનજીની રક્ષા કરે છે.

રામ પ્રાણના પણ પ્રાણ છે.

 

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।.

यह श्लोक दर्शाता है कि जो व्यक्ति नम्रता, बड़ों के प्रति सम्मान और वृद्धजनों की सेवा करता है, उसे स्वाभाविक रूप से चार लाभ मिलते हैं: लंबा जीवन, प्रचुर ज्ञान, समाज में सम्मान और शारीरिक शक्ति.

ઘરને મંદિર બનાવો.

જેનું ચરિત્ર હોય તેની કથા થાય.

કોઈ પણ વસ્તુનો અતિરેક ઝેર છે.  …….. વિવેકાનંદ

ભોળપણ એ મોટામાં મોટું શાણપણ છે જે અઢિયાના ઉદાહરણથી ફ્લિત થાય છે.

Day 8

Friday, 16/08/2025

આપણા શાસ્ત્રો પ્રમાણે કુલ ૧૧ નારાયણ છે.

1.     આદિ નારાયણ

2.     લક્ષ્મીનારાયણ

3.     બદ્રીનારાયણ

4.     નરનારાયણ

5.     રામ નારાયણ

6.     શિવ નારાયણ

7.     સૂર્ય નારાયણ

8.     સત્ય નારાયણ

9.     હનુમાન નારાયણ

10.  ગણેશ નારાયણ

11.  દુર્ગા નારાયણ

ભગવાન શિવનો અભિષેક ગંગા જલ અથવા સાદા જલથી થાય.

રામનો અભિષેક સરયુ જલથી થાય.

કૃષ્ણનો અભિષેક અશ્રુ જલથી થાય.

હુકમ કરો નહીં પણ હું કમ કરો.

રામ બધાની રક્ષા કરે છે તો રામની રક્ષા કોણ કરે છે?

શ્રેષ્ઠની રક્ષા તેની જનની કરે છે.

હિમાલયની ગોદમાં શાંતિ ન મળે એવી શાંતિ મા ની ગોદમાં મળે છે.

સેવક સ્વામીની રક્ષા કરે છે.

હનુમાનજી નિરંતર રામની રક્ષા કરે છે.

લક્ષ્મણ નિરંતર રામની રક્ષા કરે છે.

ધર્મ પત્ની પણ પતિની રક્ષા કરે છે.

વિષમ પરિસ્થિતિમાં પરમ તત્વની રક્ષા આદિ શક્તિ દુર્ગા કરે છે.

પુત્ર પણ પિતાની રક્ષા કરે છે. પ્રહલ્લાદ પોતાના પિતા હિરણાક્ષ્યની દુર્ગતિ ન થાય તેવું ભગાવાન નૃસિંહને કહે છે.

ગુરુ કૃપા પરમ તત્વની રક્ષા કરે છે. ગુરુ પરમ બ્રહ્મ છે, અસ્તિત્વ છે.

 

अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥

कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥5॥

 

निर्मल (पापरहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), (अहिंसादि) यम और (शौचादि) नियम- ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है॥5॥

પૂર્ણ આશ્રિતની રક્ષા ગુરુ કરે છે.

બાલકાંડ ભોજનશાળા છે.

અયોધ્યાકાંડ ધર્મ શાળા છે.

રાજાના કારણે રામે સત્તા છોડી અને પ્રજાના કારણે રામે સીતા છોડી.

ધર્મના કારણે રામ સત્ય નથી છોડતા.

 

धरमु न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना॥

मैं सोइ धरमु सुलभ करि पावा। तजें तिहूँ पुर अपजसु छावा॥3॥

 

वेद, शास्त्र और पुराणों में कहा गया है कि सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है। मैंने उस धर्म को सहज ही पा लिया है। इस (सत्य रूपी धर्म) का त्याग करने से तीनों लोकों में अपयश छा जाएगा॥3॥

 

અરણ્યકાંડ પર્ણ શાળા છે.

કિષ્કિંધાકાંડ વ્યામ શાળા છે. જ્યાં વાલી અને સુગ્રીવ બાથં બાથ કરે છે.

સુંદરકાંડ પાઠ શાળા છે, જ્યાં જીવનને સુંદર બનાવવાની પાઠ શાળાનો સંદર્ભ મળે છે.

લંકાકાંડ પ્રયોગ શાળા છે જ્યાં યુદ્ધના પ્રયોગ થયા છે.

ઉત્તરકાંડ ગૌશાળા છે.

હાથનો વિષય સ્પર્શ છે.

જીભનો રસ શબ્દ છે તેમજ રસ પણ છે. જીભ એટલે રસના.

આંખનો વિષય રૂપ છે.

નાકનો વિષય ગંધ છે.

પરમાત્મા ઈંદ્રીયાતીત છે.

કૃષ્ણ, રામ વગેરે ઈંદ્રીયોને ધારણ કરે છે, સ્વીકાર કરે છે.

રાસ લીલા દરમ્યાન કૃષ્ણ ભગવાન મનનો સ્વીકાર કરે છે.

રામના શબ્દ, સ્પર્શ, રૂપ, રસ અને ગંધની રક્ષા રામ કરે છે.

બુદ્ધ પુરુષનો શબ્દ નાભીનો હોય છે જેને અંતરવાણી કહેવાય છે અને નભનો પણ હોય છે જેને આકાશવાણી કહેવાય છે.

કોઈનો પરમ શબ્દ રક્ષા કરે છે.

કોઈનો સ્પર્શ રક્ષા કરે છે.

 

बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥

प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥

 

प्रभु उनको बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु प्रेम में डूबे हुए हनुमान जी को चरणों से उठना सुहाता नहीं। प्रभु का

 करकमल हनुमान जी के सिर पर है। उस स्थिति का स्मरण करके शिव जी प्रेममग्न हो गए॥1॥

પરમાત્માનું રૂપ રક્ષા કરે છે.

રસ આપણી રક્ષા કરે છે.

પરમાત્મા રસ રુપ છે, રસોવૈસઃ છે.

ગંધ આપણી રક્ષા કરે છે. પ્રતાપભાનુ રાજાનું ઉદાહરણ તેનો પુરાવો છે.

Day 9

Sunday, 17/08/2025

રામની સાથે જોડાયેલી ૫ વસ્તુ આપણી રક્ષા કરે છે.

                      સ્વયં રામ રક્ષા કરે છે. વાલીની રક્ષા રામ સ્વયં કરે છે.

 

सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी॥

अचल करौं तनु राखहु प्राना। बालि कहा सुनु कृपानिधाना॥1॥

 

बालि की अत्यंत कोमल वाणी सुनकर श्री राम जी ने उसके सिर को अपने हाथ से स्पर्श किया (और कहा-) मैं

 तुम्हारे शरीर को अचल कर दूँ, तुम प्राणों को रखो। बालि ने कहा- हे कृपानिधान! सुनिए॥1॥

                      રામ નામનું રટણ રક્ષા કરે છે.

                        અશોક વાટીકામાં સીતા રામ નામ નું રટણ કરે છે તેથી જીવિત રહે છે.

                      રામ કથા રક્ષણ કરે છે.

                      રામ દર્શનની લાલસા રક્ષણ કરે છે.

                      રામની પાદૂકા રક્ષણ કરે છે.

 

चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के॥

संपुट भरत सनेह रतन के। आखर जुग जनु जीव जतन के॥3॥

 

करुणानिधान श्री रामचंद्रजी के दोनों ख़ड़ाऊँ प्रजा के प्राणों की रक्षा के लिए मानो दो पहरेदार हैं। भरतजी के प्रेमरूपी रत्न के लिए मानो डिब्बा है और जीव के साधन के लिए मानो राम-नाम के दो अक्षर हैं॥3॥

આ રક્ષા પંચક છે.

જેણે સત્યની સાધના કરવી હોય તેણે ૬ વસ્તુ છોડવી પડે છે.

કૈકેયી દશરથ રાજાને તેણે માગેલા બે વચન પછી જ્યારે દશરથ રાજા રડવા લાગે છે ત્યારે કહે છે કે ……..

 

छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू॥

तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी॥4॥

 

या तो वचन (प्रतिज्ञा) ही छोड़ दीजिए या धैर्य धारण कीजिए। यों असहाय स्त्री की भाँति रोइए-पीटिए नहीं। सत्यव्रती के लिए तो शरीर, स्त्री, पुत्र, घर, धन और पृथ्वी- सब तिनके के बराबर कहे गए हैं॥4॥

હરિશચંદ્ર રાજાને સત્યના પાલન માટે આ ૬ વસ્તુ છોડવી પડે છે.

                      તન – હરિશચંદ્ર વેચાઈ જાય છે.

                      તિય – રાજાને પોતાની પત્ની તારામતીને છોડવી પડે છે.

                      તનય – રાજાને પોતાના પુત્ર રોહિતને છોદવો પદે છે.

                      ધામ – રાજાને પોતાનું રાજ્ય છોડવું પડે છે.

                      પૃથ્વી

સત્ય, પ્રેમ અને કરુણા માટે આ ૬ વસ્તુને નીચે પ્રમાણે છોડવી પડે.

સત્ય માતે ૬ વસ્તુને તોડવી પડે, છોડવી પડે.

પ્રેમ કરનાર આ ૬ વસ્તુને ફૂલ સમાન ગણીને પરમને સમર્પણ કરી દે. તોડવું ન પડે પણ સમર્પણ કરવું પડે.

કરુણા માટે આ ૬ વસ્તુ કોઈની કરુણાના પ્રવાહમાં વહેવડાવી દે.