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Monday, February 21, 2022

માનસ સમાધાન - 892

 રામ કથા - 892

માનસ સમાધાન

લોનાવાલા, મહારાષ્ટ્ર

શનિવાર, ૧૯/0૨/૨૦૨૨ થી રવિવાર, ૨૭/0૨/૨0૨૨

મુખ્ય ચોપાઈ

समाधानु  करि  सो  सबही  का। 

गयउ  जहाँ  दिनकर  कुल  टीका॥

समाधान  तब  भा  यह  जाने। 

भरतु  कहे  महुँ  साधु  सयाने॥

 

 

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Saturday, 19/02/2022


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समाधानु  करि  सो  सबही  का।  गयउ  जहाँ  दिनकर  कुल  टीका॥

राम  सुमंत्रहि  आवत  देखा।  आदरु  कीन्ह  पिता  सम  लेखा॥3॥

 

सब  लोगों  का  समाधान  करके  (किसी  तरह  समझा-बुझाकर)  सुमंत्र  वहाँ  गए,  जहाँ  सूर्यकुल  के  तिलक  श्री  रामचन्द्रजी  थे।  श्री  रामचन्द्रजी  ने  सुमंत्र  को  आते  देखा  तो  पिता  के  समान  समझकर  उनका  आदर  किया॥3॥ 

 

समाधान  तब  भा  यह  जाने।  भरतु  कहे  महुँ  साधु  सयाने॥

लखन  लखेउ  प्रभु  हृदयँ  खभारू।  कहत  समय  सम  नीति  बिचारू॥3॥

 

तब  यह  जानकर  समाधान  हो  गया  कि  भरत  साधु  और  सयाने  हैं  तथा  मेरे  कहने  में  (आज्ञाकारी)  हैं।  लक्ष्मणजी  ने  देखा  कि  प्रभु  श्री  रामजी  के  हृदय  में  चिंता  है  तो  वे  समय  के  अनुसार  अपना  नीतियुक्त  विचार  कहने  लगे-॥3॥

 

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Sunday, 20/02/2022

समस्या के प्रकार और जब समस्या आती हैं तब हमारी भक्ति कुंठित क्यों आती है?

समस्या से पहले समाधान आता हि हैं।

कालग्रस्त समस्या, स्वाभाव से समस्या, गुण के कारण समस्या हैं।

प्यास से पहले पानि की व्यवस्था परम करता हि हैं।

वृक्ष के उपर बैठा हुआ समाधान तो जग जननी जानकी भी नहीं देख शकती हैं। समाधान नजदिक हि होता हैं, बहुत दूर शोधनेकी आवश्यकता हि नहीं हैं।

मानस का आरंभ संशय हैं जो सबसे बडा प्रश्न हैं, मध्य समाधान हैं – अयोध्याकांड में तीन बार समाधान आता हैं - अंत कोई परम की शरणागती हैं।

भय और मोह से मुक्त कौन हैं?

राम कथा परम विलास हैं। कृष्ण की सुंदर चाल, विश्वको संमोहित करनेबाला स्मित और उसका समग्र विश्व को प्रेम परम विलास हैं।

प्रेम जींदगीके लिये अतिशय जरुरी हैं।

मोह और प्रेम में थोडा सा फर्क हैं जो हम समज नहीं शकते हैं।

अपने स्वभाव पर विजय पाना मुश्किल हैं।

यमुनाष्टक का पाठ करनेसे हमारा स्वभाव नहीं बदलता हैं लेकिन सामनेवाला हमारे स्वभाव को कबुल कर लेता हैं।

सुख का साधन क्या हैं?

सुख का साधन दुःख हैं।

कुंता सदा दुःख मागती हैं जो सुख पानेका साधन हैं। और ऐसा सुख मिलनेके बाद सुख दुःख की सापेक्ष्ता मिट जाती हैं।

अहंकार बंधन हैं जिसके कारण हि गंगा शिव की जटामें बंधित हो जाती हैं। गंगा का अहंकार मिटानेके लिये शिव गंगाको अपनी जटामें बंधित कर देते हैं।

 

पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा॥

तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी। कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी॥4॥

 

जो तुमने श्री रघुनाथजी की कथा का प्रसंग पूछा है, जो कथा समस्त लोकों के लिए जगत को पवित्र करने वाली गंगाजी के समान है। तुमने जगत के कल्याण के लिए ही प्रश्न पूछे हैं। तुम श्री रघुनाथजी के चरणों में प्रेम रखने वाली हो॥4॥

कटु बानी सुनकर गंगा – भक्ति चली जाती हैं।

जब भजनानंदी अप्रिय बोलता हैं यब भक्ति चली जाती हैं। प्रेम में – भक्ति में कोई खुलासा नहीं जोता हैं, प्रेम – भक्तिका कोई बंधारण नहीं हैं।, प्रेम शिखनेके लिये कथा के सिवा ओर कोई शिक्षण संस्था नहीं हैं।

राम, राम कृपा और राम कथा हि समस्या के साधन हैं। राम, राम कृपा और राम कथा एक हि हैं।

राम, राम कथा और राम कृपा बुद्ध पुरुष हि हैं।

હું કશું નથી જાણતો એ જ સૌથી મોટું જ્ઞાન છે.

मानस में जो समस्या आती हैं वह वैश्विक समस्या हैं।

 

रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥

रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥1॥

 

श्री रामचन्द्रजी की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेह रूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुग रूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो॥1॥

विलास समुहमें भोगा जाता हैं।

संशय सबसे बडी समस्या हैं।

 

नाथ एक संसउ बड़ मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥

कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौं न कहउँ बड़ होइ अकाजा॥4॥

 

हे नाथ! मेरे मन में एक बड़ा संदेह है, वेदों का तत्त्व सब आपकी मुट्ठी में है (अर्थात्‌ आप ही वेद का तत्त्व जानने वाले होने के कारण मेरा संदेह निवारण कर सकते हैं) पर उस संदेह को कहते मुझे भय और लाज आती है (भय इसलिए कि कहीं आप यह न समझें कि मेरी परीक्षा ले रहा है, लाज इसलिए कि इतनी आयु बीत गई, अब तक ज्ञान न हुआ) और यदि नहीं कहता तो बड़ी हानि होती है (क्योंकि अज्ञानी बना रहता हूँ)॥4॥

शंकर का महामंत्र राम हैं। राम महा मंत्र हैं।

 

महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥

महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥2॥

 

जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥2॥

 

सती के मन में संशय आने से मानस में राम कथा का आरंभ होता हैं।

जब विश्वास आयेगा तब हि संशय दूर होता हैं।

बहुत काल तक सतसंग करने से बाद हि संशय दूर होता हैं।

कभी कभी  स्वयं अनुभव करनेके बाद संशय दूर होता हैं, संशय पतन के लिये भी होता हैं, संशय विश्व मंगल के लिये भी होता हैं।

साधु हि समाधान हैं।

धरती को भी समस्या आती हैं जिसका समाधान ब्रह्मा देते हैं।

दशरथ की समस्या विश्वामित्र हैं जिसका समाधान गुरु वशीष्ट देते हैं।

अहल्या की समस्या स्वयं राम करते हैं।

धनुष्यभंग के समस्या का समाधान लक्ष्मण करता हैं।

परशुराम की समस्या का समाधान स्वयं राम करते हैं।

राम नाम अजन्मा हैं, राम नाम पुरातन, सनातन, नित्य, शास्वत हैं।

दुष्ट का संग करनेसे बुद्धि शापित होती हैं, दुष्ट का अन्न खानेसे बुद्धि शापित होती हैं, दूसरोके लिये दुष्ट भावना करनेसे बुद्धि शापित होती हैं, ऐसी शापित बुद्धि राम नाम से उद्धारीत होती हैं।

 

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Monday, 21/02/2022

द्वंद का समाधन कैसे खोजे?

समाधान तुरंत भी मिल शकता हैं, कई समाधान के लिये अनेक वर्ष चाहिये, कई समाधान अनेक जन्मो के बाद मिलता हैं।

समाधान के सगोत्री शब्द

समाधान में सम + आधान हैं। सम का अर्थ सब में सम रहना हैं, आधान का अर्थ गर्भ स्थान हैं। समाधान के लिये दो व्यक्ति को सम रहकर गर्भ का आधान करना पडता हैं। गर्भ पकने में देर लगती हैं।

बहुत समय तक सतसंग करनेसे गुरु और आश्रित को गर्भ का आधान होता हैं और समय पर वह गर्भ पकता है।

सतसंग से प्राप्त शीतल विवेकसे द्वंद दूर होता हैं।

वैराग्य साधु का विलास हैं। मानस के सात सोपान ७ स्टार हैं।

 

 

 

 

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Tuesday, 22/02/2022

 

वेदांत के अनुसार समाधान का अर्थ ध्यान, तन्मयता, एकाग्रता होता हैं। समाधि भी समाधान का अर्थ हैं।

कृतकृत्यभाव भी समाधान का अर्थ हैं।

प्रेम मार्ग में – भक्ति मार्ग में ९ लक्षण समाधान तक पहुंचेने के लिये बताया हैं।

ज्ञान मार्ग में ध्यान समाधान का अर्थ हैं। ज्ञान मार्ग दुर्गम हैं। ज्ञान मार्ग में चर्चा बहुत होती हैं और मंझिल पहुंचना रह जाता हैं।

भक्ति मार्ग – प्रेम मार्ग का समाधान तृप्ति हैं, डकार हैं। प्रेम मार्ग में भरत के जीवन में आये हुए विघ्न आनेका खतरा हैं। अनुसंधान राहित्य – भक्ति मार्गमें अनुसंधान नहीं तुटना चाहिये। ज्ञान मार्ग की समाधि में संविधान हैं, प्रेम मार्ग में कोई संविधान नहीं हैं। परम का उच्चारण करनेसे प्रेम मार्ग में समाधान मिलता हैं। प्रमाद, भोग लालसा प्रेम मार्ग के विघ्न हैं।

परिवार में कोई एक व्यक्ति को समाधान मिल जाय तो पुरा परिवार में दीया जलता हैं।

भोग में विवेक होगा तो भोग विघ्न नहीं बनेगा।

रसास्वादन ज्ञान मार्ग में विघ्न हैं जब कि भक्ति मार्ग में रस का मिहामा हैं – रसोवैसः।

कैलास का विलास परम विलास हैं, हमारा विलास पामर विलास हैं।

मुक्ति से ज्यादा मस्ती में आनंद हैं।

लय - नींद्रा विघ्न हैं।

भरत की चित्रकूट यात्रा के पांच विघ्न – व्रत भंग होना, (पादूका समाधान हैं), (अभाव ग्रस्त बहुत विवेकी होता हैं), लोकमंगल के लिये अपना व्रत भंग करना चाहिये, गुहराज का सामना करना, समाज का बिना समज विरोध करना विघ्न हैं, भरद्वाज मुनि द्वारा परीक्षा – कसोटी, देवताओ द्वारा विघ्न करना, अपने परिवार जनो द्वारा विरोध – मार डालने तक का प्रयास।

अभिमान शून्य, भोग में विवेक और ममता कम होने लगे तो ऐसा व्यक्ति संसारमें हैं वह संसारी होता हुए नित्य संन्यासी हैं।  ………… विवेकचुडामणि

 

 

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Wednesday, 23/02/2022

 

तॄप्ति समाधान हैं।

ईश्वर अपनी ईच्छा अनुसार अवतार लेता है लेकिन यह ईश्वर अपने भक्तोकी ईच्छा अनुसार जीवन जीता हैं।

ज्ञानी न बनो लेकिन प्रेमी बनो।

कथा शांत रस से शुरु होती हैं विराम भी शांत रस में होती हैं।

मानसमें ९ रस हैं।

वारकरी संप्रदाय का सूत्र – अवस्था - श्रद्धा, विरक्ति, अद्वैत, प्रियत्व, स्वरुपत्व, ईश्वर हैं, ईश्वरकी कृपा भी हैं, भाव की उत्कट्टा, प्रप्ति वगेरे हैं।

तर्क के समाप्त हो जाने पर जो स्थिति हैं वह समाधि हैं।

विभु को पकडो, विभुता को न पकडो, विभुत्ति समस्या पेदा करती हैं, विभु समाधान हैं, प्रभुता को न पकडो, प्रभु को पकडो, शिभु को पकडो, शंभुता – सती को न पकडो। सती अनेक समस्या पेदा करती हैं।

 

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Thursday, 24/02/2022

 

प्रदोषे दीपक : चन्द्र:,प्रभाते दीपक:रवि:।

त्रैलोक्ये दीपक:धर्म:,सुपुत्र: कुलदीपक:।।

 

संध्या काल में चन्द्रमा दीपक है, प्रभात काल में सूर्य दीपक है, तीनों लोकों में धर्म दीपक है और सुपुत्र कूल का दीपक है।

यह चारो दीपककी समस्या भी हैं।

चंद्र को राहु की समस्या हैं, पूर्णता प्राप्त होते हि राहु का – क्षय पक्ष लग जाता हैं।

समय पसार होना ग्रहण की समस्या का समाधान हैं, कुछ समय धैर्य रखनेसे ऐसी समस्या का समाधान मिलता हैं।

पूर्णता का दावा कभी भी नहीं करना भी एक समाधान हैं।

प्रारब्ध भोगे बिना पुरा नहीं होता हैं, बुद्ध पुरुष प्रारब्ध बदलनेके लिये सक्षम हैं।

नियति प्रारब्ध नहीं हैं, नियति को स्वीकारनेसे हि छूटती हैं।

ग्रंथी गांठ जैसी हैं, ग्रंथी और गांठ उलटी दीशामें घुमनसे छूटती हैं।

 

टेढ़ जानि सब बंदइ काहू वक्र चंद्रमहि ग्रसई न राहु

 

टेड़ा जानकर लोग किसी भी व्यक्ति की वंदना प्रार्थना करते हैं।  टेड़े चन्द्रमा को राहु भी नहीं ग्रसता है।

सूर्य की समस्या का समाधान धर्य हैं।

दीपक जलानेने के लिये पोषण और रक्षण चाहिये।

धर्म की समस्या का समाधान धर्मको पोषण देना और धर्मकी रक्षा करना हैं।

सम के अनेक अर्थ हैं – एक जात का ताल, द्रष्टि का एक प्रकार, धुतराष्ट के एक बेटेका नाम,

संपत्ति के तीन हि उपयोग हैं, दान, भोग और विनाश।

कभी भी कुसंग नहीं करना चाहिये।

बेहोशी, प्रमाद - आलस और एकाग्रता भंग समाधनमें बाधक हैं।

 

 

 

 

 

 

 

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Friday, 25/02/2022

सम +आधान

सम का एक अर्थ सम – कसम हैं।

आधान का अर्थ – धारण करना, अग्नाधान, गर्भाधान, अन्नाधान, जलाधान, गुरुके वचन का आधान करना, वगेरे

गुरु कुंभार हैं और शिष्य कुंभ – घडा हैं।

कुंभार घडे को आकार देता हैं, घडा मिट्टि से बनता है, मिट्टि पृथ्वीकी संतान हैं ईसीलिये घडे को घैर्य रखकर सहन करना पडता हैं। घडा बनाने में जल तत्व का उपयोग होता हैं, जल एक एक कण को एकत्रित करता हैं, गुरु शिष्यको रसमय बनाकर सबसे जोडता हैं, गुरु हमारी सब ईन्द्रीयोको एकत्रित करके हमें रसमय बनाकर रसोवैसः तक ले जाता हैं। कुंभार आकाश के नीचे सुकाता हैं, गुरु हमे महाकाशमें सुकाता हैं, अग्नि तत्व घडाको पकाता हैं, वायु तत्व और आकाश तत्व सुकाता हैं, फिर घडा बिकनेके लिये बाझारमें रखता हैं। जहाम ग्राहक परीक्षा करकर खरीदता हैं। गुरु आश्रितको बाझारमें भेजता हैं क्योंकि वहां हि आश्रित दूसरोकी सेवा कर शकेगा। जब आश्रित सेवा करता हैं तब उसका गुरु उसके लिये सिमरन करता हैं। कुंभार घडा बनानेके लिये अपने पांव से गुंदता हैं लेकिन यही बना हुआ घडा किसी युवतीके शिर पर श्रींगार बनता हैं। गुरु एक हाथ से पीटता हैं – प्रहार करता हैं और दूसरे हाथ से प्रसाद देता हैं।

जिसका गुरु टिकाउ हैं उसका आश्रित बिकाउ नहीं होता हैं।

बहुत पुकार करनेके बाद रोना हैं।

रस लेनेके लिये बहुत सहन करना पडता हैं।

काम आवेश हैं और राम भावेश हैं, हमें आवेशमें नहीं आना हैं लेकिन भावेशमें आना हैं – रहना हैं।

 

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Saturday, 26/02/2022

 

राम कथा के चार संवाद हमारे लिये समाधान हैं।

शिव और पार्वती का स्थान स्मशान हैं, स्मशान सबसे बडा समाधान हैं, शिव स्मशान निवासी हैं, काशी महा स्मशान हैं, मुक्ति भी समाधान हाइं लेकिन मुक्ति दुर्लभ हैं। मृत्यु ध्रुव होनेके नाते समाधान हैं। ऐसे भी कथा हमें मार हि डालती हैं।

आदमी मर जाय और ईच्छा रह जाय तो वह मृत्यु हैं और ईच्छा मर जाय और आदमी जीवित रहे तो वह मुक्ति हैं।

हर कथा में हम मर जाते हैं।

हस्ती स्मशानमें रह जाती हैं और अस्थी घर आती हैं।
प्रयाग की कथा पनघट की कथा हैं, प्रयाग पनघट व्यासपीठ हैं जहां प्यास मिटती हैं। राम कथा प्यास मिटाती हैं।

कथामें जो रुप – रस  आते हैं वह सभी रस हमारी प्यास बुझाती हैं।

तुलसी की कथा जमावडे की कथा हैं। जहां अनेक साधु संत जमा होकर कथा सुनते हैं। कथा में जो चोट के लायक होते हैं उनको घायल किया जाता हैं।

मीरा कुछ नहीं जानती हैं सिर्फ प्रेम करना जानती हैं। मीरा प्रेम दिवानी हैं।

जब कृष्ण गोपी की मटकी फोडता था तब गोपीका भाग्य खुल जाता था और कृष्ण के जानेके बाद मटकी नहीं फूटती हैं लेकिन भाग्य फूट जाता हैं।

ईर्षा ईश्वरको दूर कर देती हैं, जब गोपी अपने अंदर अंदर ईर्षा, मद आता हें तब कृष्ण अद्रश्य हो जाता हैं।

अपनी ईन्द्रीयो से जो प्रेम रस पीता हैं वह सब गोपी हैं।

सुरता का अर्थ ११ ईन्द्रीयोका एक स्थान पर स्थिर हो जाना हैं। पांच ज्ञानेद्रीय + ५ कर्मेन्द्रीय + मन = ११

प्रेम किसीकी खोज नहीं करता हैं, प्रेम खुद में खो जाता हैं।

अदेखाई सबसे बदी खाई हैं।

निदान समाधान हैं, नींदा समाघान को खत्म कर देता हैं।

याज्ञ्यवल्क की कथा पनघट हैं।

भुशुडीकी कथा घुंघट की कथा हैं, भुषंडी बाहर्से कौआ हैं और अंदर से परमहंस हैं। घुंघट मे अनेक रहस्य खुलते हैं।

ज्ञान वृक्ष हैं, प्रेम लता हैं। लताका फल नहीं होता हैं, महेंक होती हैं।

लता वृक्षको कसकर लिपट जाती हैं।

प्रेम अमर हैं, प्रेम अनंत हैं।

प्रेम वेल का बीज निरंतर याद - स्मृति हैं।

प्रेम बेलके बीज का सींचन अश्रु का जल हैं, ईष्ट का प्रताप प्रकाश हैं, अपना बुद्ध पुरुष ईसी बेल बीजका रक्षण करता हैं, ऐसी प्रेम बेल का लक्ष्य विश्वास वट को लिपट जाना हैं।

हम गुरु को खोज नहीं शकते हैं, गुरु हि अपने शिष्य को खोज लेता हैं।

अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चार पदार्थ हैं, अर्थ – धन एक समस्या हैं। अर्थ से परम अर्थ तक की यात्रा करनी हैं।

अर्थ के १५ अनर्थ हैं।

धन के तीन रास्ता – भोग, दान और विनाश हैं। अर्थका भोग विवेकपूर्ण रीतसे करना चाहिये।

अर्थ बाह्य जगतकी समस्या का समाधान देता हैं।

अर्थका दान एक मात्र उपाय हैं ऐसा करनेसे अर्थकी वृद्धि होती हैं।

ठाकोरजी का प्रसाद – कृपा हैं।

प्रसाद में प्र का अर्थ प्रभु हैं, सा का अर्थ साक्षात और द का अर्थ दर्शन हैं।

अन्न दूसरो का मन बदलता हैं।

ईश्वरकी कृपा होती हैं तब हि हरि भजन होता हैं।

धर्म की समस्या का समाधान सत्य, प्रेम और करुना हैं।

काम की समस्या का समाधान रति हैं, रति का अर्थ भक्ति हैं, प्रभु प्रेम हैं, रति युक्त काम , काम का समाधान हैं।

मोक्ष का समाधान मोह का क्रमशः क्षय हैं।

 

9

Sunday, 27/02/2022

जीवन समस्यायोसे भरा हैं।

समाधान जब पक जाता हैं – सूत्र जब अपने आप पक जाते हैं तब व्यक्ति अनारके फल की तरह फट जाता हैं।

जब परम विश्राम प्राप्त होता हैं, जब कृतकृत्य भाव प्रगट होता हैं, जब अहोभाव होता हैं, तब वह परम समाधान की प्राप्ति हैं। ऐसा समाधान हमारी संपदा हैं जिसे जाहिर नहीं करना चाहिये।

गरुडके सात प्रश्न हैं। जो सप्त समाधान हैं।

 

पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ।।

नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न मम कहहु बिचारी।।2।।

 

पक्षिराज गरुड़जी फिर प्रेमसहित बोले-हे कृपालु ! यदि मुझपर आपका प्रेम है, तो हे नाथ ! मुझे अपना सेवक जानकर मेरे सात प्रश्नों के उत्तर बखानकर कहिये।।1।।

 

प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधारा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा।।

बड़ दुख कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी।।2।।

 

हे नाथ ! हे धीरबुद्धि ! पहले तो यह बताइये कि सबसे दुर्लभ कौन-सा शरीर है ? फिर सबसे बड़ा दुःख कौन है और सबसे बड़ा सुख कौन है, यह भी विचार कर संक्षेप में ही कहिये।।2।।

 

संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु।।

कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला।।3।।

 

संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिये। फिर कहिये कि श्रुतियोंमें प्रसिद्ध सबसे महान पुण्य कौन-सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है।।3।।

 

मानस रोग कहहु समुझाई। तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई।।

तात सुनहु सादर अति प्रीती। मैं संछेप कहउँ यह नीती।।4।।

 

फिर मानस रोगों को समझाकर कहिये। आप सर्वज्ञ हैं और मुझपर आपकी कृपा भी बहुत है [काकभुशुण्डिजीने कहा-] हे तात ! अत्यन्त आदर और प्रेमके साथ सुनिये। मैं यह नीति संक्षेप में कहता हूँ।।4।।

 

नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।

नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी।।5।।

 

मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। यह मनुष्य-शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देनेवाला है।।5।।

 

सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर।।

काँच किरिच बदलें ते लेहीं। कर ते डारि परस मनि देहीं।।6।।

 

ऐसे मनुष्य-शरीरको धारण (प्राप्त) करके जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयोंमें अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदलेमें काँचके टुकड़े ले लेते हैं।।6।।

 

नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं।।

पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया।।7।।

 

जगत् में दरिद्रता के समान दुःख नहीं है तथा संतोंके मिलने के समान जगत् में सुख नहीं है। और हे पक्षिराज ! मन, वचन और शरीर से परोपकार करना यह संतोंका सहज स्वभाव है।।7।।

 

संत सहहिं दुख पर हित लागी। पर दुख हेतु असंत अभागी।।

भूर्ज तरू सम संत कृपाला। पर हित निति सह बिपति बिसाला।।8।।

 

संत दूसरोंकी भलाईके लिये दुःख सहते हैं और अभागे असंत दूसरों को दुःख पहुँचाने के लिये। कृपालु संत भोजके वृक्षके समान दूसरों के हित के लिये भारी विपत्ति सहते हैं (अपनी खालतक उधड़वा लेते हैं)।।8।।

यह जगत ईश्वरकी बगीया हैं।

करुना से मिली वस्तुका अपमान मत करना।

सतसंग से बडा कोई स्वर्ग नहीं हैं।

जब कला का दुरुपयोग होता हैं तब वह कला काल बन जाती हैं।

जहां कथा होती हैं वही स्वर्ग हैं।

कुछ महत्वकी वस्तु का अभाव दरिद्र हैं, जिसके पास सत्य, समद्रष्टि नहीं हैं वह भी दरिद्र हैं।

जहां भेद होता हैं वहां भगवान नहीं होता हैं।

 

सन इव खल पर बंधन करई। खाल कढ़ाइ बिपति सहि मरई।।

खल बिनु स्वारथ पर अपकारी। अहि मूषक इव सुनु उरगारी।।9।।

 

किंतु दुष्ट लोग सनकी भाँति दूसरों को बाँधते हैं और [उन्हें बाँधनेके लिये] अपनी खाल खिंचवाकर विपत्ति सहकर मर जाते हैं। हे सर्पोंके शत्रु गरुड़जी ! सुनिये; दुष्ट बिना किसी स्वार्थके साँप और चूहे के समान अकारण ही दूसरों का अपकार करते हैं।।9।।

 

पर संमपदा बिनासि नाहीं। जिमि ससि हति उपल बिलाहीं।।

दुष्ट उदय जग आरति हेतू। जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू।10।।

 

वे परायी सम्पत्ति का नाश करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं, जैसे खेती का नाश करके ओले नष्ट हो जाते हैं। दुष्ट का अभ्युदय (उन्नति) प्रसिद्ध अधम केतू के उदय की भाँति जगत् के दुःख के लिये ही होता है ।।10क।।

 

 

 

संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इंदु तमारी।।

परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा।पर निंदा सम अघ न गरीसा।।11।।

 

और संतों का अभ्युदय सदा ही सुखकर होता है, जैसे चन्द्रमा और सूर्य का उदय विश्व भर के लिये सुख दायक है। वेदोंमें अहिंसा को परम धर्म माना है और परनिन्दा के समान भारी पाप नहीं है।।1।।

 

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्हे ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।15।।

 

सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत-से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वाद है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है।।15।।

वात पित और कफ सम्यक रुपमें जरुरी हैं।

 

सदगुर बैद बचन बिस्वासा।

 

 

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