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Sunday, May 25, 2025

માનસ નાલંદા વિશ્વવિદ્યાલય - 957

 

રામ કથા - 957

માનસ નાલંદા વિશ્વવિદ્યાલય

નાલંદા, બિહાર

શનિવાર, તારીખ 24/05/2025 થી રવિવાર, તારીખ 01/06/2025

મુખ્ય પંક્તિ

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई।

अलप काल बिद्या सब आई॥

तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही।

बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही॥

 

1

Saturday, 24/05/2025

 

 

भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥

गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई॥2॥

 

ज्यों ही सब भाई कुमारावस्था के हुए, त्यों ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया। श्री रघुनाथजी (भाइयों सहित) गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और थोड़े ही समय में उनको सब विद्याएँ आ गईं॥2॥

કથા સંવાદની પ્રથમ પંક્તિ વશિષ્ઠ મહારાજના ગુરુકૂલ વિદ્યાલયમાંથી છે.

तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही। बिद्यानिधि कहुँ बिद्या दीन्ही॥

जाते लाग न छुधा पिपासा। अतुलित बल तनु तेज प्रकासा॥4॥

 

तब ऋषि विश्वामित्र ने प्रभु को मन में विद्या का भंडार समझते हुए भी (लीला को पूर्ण करने के लिए) ऐसी विद्या दी, जिससे भूख-प्यास न लगे और शरीर में अतुलित बल और तेज का प्रकाश हो॥4॥

 કથા સંવાદની બીજી પંક્તિ વિશ્વામિત્રના શુભ – સિદ્ધ આશ્રમના ગુરુકૂલ વિદ્યાપીઠમાં થી લેવામાં આવી છે.

 

 

नाथ जानि अस आयसु होऊ। कौतुकु करौं बिलोकिअ सोऊ॥

कमल नाल जिमि चाप चढ़ावौं। जोजन सत प्रमान लै धावौं॥4॥

ऐसा जानकर हे नाथ! आज्ञा हो तो कुछ खेल करूँ, उसे भी देखिए। धनुष को कमल की डंडी की तरह चढ़ाकर उसे सौ योजन तक दौड़ा लिए चला जाऊँ॥4॥

કથા સ્વયં પોતાનું સ્થાન પસંદ કરે છે.

સ્વાધ્યાય કર્યા પછી જ પ્રવચન કરી શકાય.  …….. ઉપનિષદ

હવે  પવિત્રતા ના અભિયાનની આવશ્યકતા છે

માનસમાં ૯ વિદ્યાપીઠ છે.

1.    વશિષ્ઠ મહારજનું ગુરુકૂલ એ એવું વિદ્યાલય છે જ્યાં બ્રહ્મ – રામ વિદ્યા પ્રાપ્તિ માટે જાય છે.

2.    વિશ્વામિત્રનો શુભ આશ્રમ – સિદ્ધ આશ્રમ પણ ગુરુકૂલ છે, વિદ્યાલય છે.

3.    પરશુરામનો મહેંદ્રગિરિ પર્વત ઉપર આવેલો આશ્રમ વિદ્યાલય છે.

4.    ભરદ્વાજ ઋષિનો પ્રયાગમાં આવેલો આશ્રમ વિદ્યાલય છે.

5.    ગૌતમ ઋષિનો આશ્રમ વિદ્યાલય છે.

6.    વાલ્મીકિ ઋષિની વિદ્યાપીઠ વિદ્યાલય છે જે શૂન્યથી પૂર્ણતાની વિદ્યાપીઠ છે.

7.    મહર્ષિ કુંભજની વિદ્યાપીઠ વિચારોની વિદ્યાપીઠ છે.

8.    ઉજ્જૈનના મહાકાલનું મંદિર પઠ વિદ્યાલય છે.

9.    મેરૂ પર્વત ઉપર લોમસની વિદ્યાપીઠ છે.

હનુમાનજીમાં ધર્મની પવિત્રતા, અર્થની પવિત્રતા – શાસ્ત્રનો સાચો અર્થ સમજવાની પવિત્રતા, કામની પવિત્રતા – હનુમાનજીમાં કોઈ કામ પેદા થતો નથી, અને મોક્ષની પવિત્રતા છે.

પરંપરા પ્રવાહી, પવિત્ર અને પરોપકારી હોવી જોઈએ.

માનસમાં બાલકાંડમાં મંગલાચરણના સાત શ્લોક અને ઉત્તરકાંડમાં ગરુડના સાત પ્રશ્નો વચ્ચે માનસ સમાવિષ્ઠ થયેલ છે.

અત્રિ ઋષિએ ભગવાન રામની સ્તુતિ ………

नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं॥

भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं॥1॥

हे भक्त वत्सल! हे कृपालु! हे कोमल स्वभाव वाले! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निष्काम पुरुषों को अपना परमधाम देने वाले आपके चरण कमलों को मैं भजता हूँ॥1॥

निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं॥

प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं॥2॥

आप नितान्त सुंदर श्याम, संसार (आवागमन) रूपी समुद्र को मथने के लिए मंदराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले और मद आदि दोषों से छुड़ाने वाले हैं॥2॥

प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं॥

निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं॥3॥

हे प्रभो! आपकी लंबी भुजाओं का पराक्रम और आपका ऐश्वर्य अप्रमेय (बुद्धि के परे अथवा असीम) है। आप तरकस और धनुष-बाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी,॥3॥

दिनेश वंश मंडनं। महेश चाप खंडनं॥

मुनींद्र संत रंजनं। सुरारि वृंद भंजनं॥4॥

सूर्यवंश के भूषण, महादेवजी के धनुष को तोड़ने वाले, मुनिराजों और संतों को आनंद देने वाले तथा देवताओं के शत्रु असुरों के समूह का नाश करने वाले हैं॥4॥

मनोज वैरि वंदितं। अजादि देव सेवितं॥

विशुद्ध बोध विग्रहं। समस्त दूषणापहं॥5॥

आप कामदेव के शत्रु महादेवजी के द्वारा वंदित, ब्रह्मा आदि देवताओं से सेवित, विशुद्ध ज्ञानमय विग्रह और समस्त दोषों को नष्ट करने वाले हैं॥5॥

नमामि इंदिरा पतिं। सुखाकरं सतां गतिं॥

भजे सशक्ति सानुजं। शची पति प्रियानुजं॥6॥

हे लक्ष्मीपते! हे सुखों की खान और सत्पुरुषों की एकमात्र गति! मैं आपको नमस्कार करता हूँ! हे शचीपति (इन्द्र) के प्रिय छोटे भाई (वामनजी)! स्वरूपा-शक्ति श्री सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित आपको मैं भजता हूँ॥6॥

त्वदंघ्रि मूल ये नराः। भजंति हीन मत्सराः॥

पतंति नो भवार्णवे। वितर्क वीचि संकुले॥7॥

जो मनुष्य मत्सर (डाह) रहित होकर आपके चरण कमलों का सेवन करते हैं, वे तर्क-वितर्क (अनेक प्रकार के संदेह) रूपी तरंगों से पूर्ण संसार रूपी समुद्र में नहीं गिरते (आवागमन के चक्कर में नहीं पड़ते)॥7॥

विविक्त वासिनः सदा। भजंति मुक्तये मुदा॥

निरस्य इंद्रियादिकं। प्रयांतिते गतिं स्वकं॥8॥

जो एकान्तवासी पुरुष मुक्ति के लिए, इन्द्रियादि का निग्रह करके (उन्हें विषयों से हटाकर) प्रसन्नतापूर्वक आपको भजते हैं, वे स्वकीय गति को (अपने स्वरूप को) प्राप्त होते हैं॥8॥

तमेकमद्भुतं प्रभुं। निरीहमीश्वरं विभुं॥

जगद्गुरुं च शाश्वतं। तुरीयमेव केवलं॥9॥

उन (आप) को जो एक (अद्वितीय), अद्भुत (मायिक जगत से विलक्षण), प्रभु (सर्वसमर्थ), इच्छारहित, ईश्वर (सबके स्वामी), व्यापक, जगद्गुरु, सनातन (नित्य), तुरीय (तीनों गुणों से सर्वथा परे) और केवल (अपने स्वरूप में स्थित) हैं॥9॥

भजामि भाव वल्लभं। कुयोगिनां सुदुर्लभं॥

स्वभक्त कल्प पादपं। समं सुसेव्यमन्वहं॥10॥

(तथा) जो भावप्रिय, कुयोगियों (विषयी पुरुषों) के लिए अत्यन्त दुर्लभ, अपने भक्तों के लिए कल्पवृक्ष (अर्थात्‌ उनकी समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले), सम (पक्षपातरहित) और सदा सुखपूर्वक सेवन करने योग्य हैं, मैं निरंतर भजता हूँ॥10॥

अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं॥

प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे॥11॥

हे अनुपम सुंदर! हे पृथ्वीपति! हे जानकीनाथ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मुझ पर प्रसन्न होइए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। मुझे अपने चरण कमलों की भक्ति दीजिए॥11॥

पठंति ये स्तवं इदं। नरादरेण ते पदं॥

व्रजंति नात्र संशयं। त्वदीय भक्ति संयुताः॥12॥

जो मनुष्य इस स्तुति को आदरपूर्वक पढ़ते हैं, वे आपकी भक्ति से युक्त होकर आपके परम पद को प्राप्त होते हैं, इसमें संदेह नहीं॥12॥

2

Sunday, 25/05/2025

કૈલાશ ત્રુભુવનીય વિશ્વ વિદ્યાલય છે.

પરશુરામ, વાલી અને કુંભકર્ણ જે ત્રણ અહંકારી છે તે ભગવાન રામના પાલે પડેલ છે.

વાલીમાં રજોગુણી અહંકાર છે, પરશુરામમાં સાત્વિક અહંકાર છે અને કુંભકર્ણમાં તમો ગુણી અહંકાર છે.

અહંકારી વ્યક્તિ બદલો લેવામાં પ્રવૃત્ત રહે, પ્રતિશોધ કરે.

કુંભકર્ણ વાનર રીંછને ખાઈ જાય છે, અહીં તેનો અહંકાર સદગુણોને ખાઈ જાય છે.

“અમે કંઈ નથી” એવું કહેવું એ સૌથી મોટામાં મોટો અહંકાર છે.

 

श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् ।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ २३ ॥

इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा ।

क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥ २४ ॥

 

That Person (Devotee) truly performs Devotional Service unto the Supreme Lord;

That I consider the best thing Learnt (fulfilling the ultimate goal of life).

श्रीप्रह्राद (Shrii-Prahraada): Sri Prahrada (Sri Prahlada)

उवाच (Uvaaca): Said

श्रवणं (Shravannam): Hearing

कीर्तनं (Kiirtanam): Chanting

विष्णोः (Vissnnoh): Of Lord Vishnu

स्मरणं (Smarannam): Remembering

पादसेवनम् (Paada-Sevanam): Serving His Feet

पाद (Paada) = Foot

सेवन (Sevana) = Service

अर्चनं (Arcanam): Worshipping

वन्दनं (Vandanam): Eulogizing

दास्यं (Daasyam): (Having the attitude of) Servant

सख्यमात्मनिवेदनम् (Sakhyam-Aatma-Nivedanam): (Having the attitude of) Friend and Surrendering oneself (to Him)

सख्य (Sakhya) = Friend

आत्म (Aatma) = Self

निवेदन (Nivedana) = Surrender

इति (Iti): Thus

पुंसार्पिता (Pumsa-Arpitaa): (If a) Person offered

पुंस (Pumsa) = Person

अर्पित (Arpita) = Offered

विष्णौ (Vissnnau): Unto Lord Vishnu

भक्तिश्चेन्नवलक्षणा (Bhaktish-Cen-Nava-Lakssannaa): (If a person offered) Devotion with these Nine Attributes

भक्ति (Bhakti) = Devotion

चेत् (Cet) = If

नव (Nava) = Nine

लक्षण (Lakssanna) = Attributes

क्रियते (Kriyate): (That person truly) performs

क्रि (Kri) = To do

 

भगवत्यद्धा (Bhagavaty[i]-Addhaa): (That person) truly (performs devotional service) unto the Supreme Lord

भगवति (Bhagavati) = Supreme Lord

अद्धा (Addhaa) = Certainly, Truly

तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् (Tan-Manye-[A]dhiitam-Uttamam): That I consider the best thing Learned

तत् (Tat) = That

मन्ये (Manye) = I Consider

अधीत (Adhiita) = Learned

उत्तम (Uttama) = Best

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Day 3

Monday, 26/05/2025

ઈર્ષા, નિંદા, દ્વેષ ન કરવાથી પવિત્રતા આવે.

સંપૂર્ણ સમર્પણથી પવિત્રતા આવે.

पावन पर्बत बेद पुराना। राम कथा रुचिराकर नाना।।

मर्मी सज्जन सुमति कुदारी। ग्यान बिराग नयन उरगारी।।7।।

 

वेद-पुराण पवित्र पर्वत हैं। श्रीरामजीकी नाना प्रकारकी कथाएँ उन पर्वतों में सुन्दर खानें हैं। संत पुरुष [उनकी इन खानोंके रहस्यको जाननेवाले] मर्मी हैं और सुन्दर बुद्धि [खोदनेवाली] कुदाल है। हे गरुड़जी ! ज्ञान और वैराग्य- ये दो उनके नेत्र हैं।।7।।

 

पूरन काम राम अनुरागी। तुम्ह सम तात न कोउ बड़भागी।।

संत बिटप सरिता गिरि धरनी। पर हित हेतु सबन्ह कै करनी।।3।।

 

आप पूर्णकाम हैं और श्रीरामजीके प्रेमी हैं। हे तात ! आपके समान कोई बड़भागी नहीं है। संत, वृक्ष, नदी, पर्वत और पृथ्वी-इन सबकी क्रिया पराये हितके लिये ही होती है।।3।।

વૃક્ષ સાધુ છે.

 

Day 4

Tuesday, 27/05/2025

વિશ્વાસની ત્રણ આંખ છે.

1.   નીજ આંખ – વિશ્વાસ પોતાનો જ હોવો જોઈએ. બીજા ઉપર રાખેલ વિશ્વાસ ક્યારેક વિશ્વાસઘાત બની જાય છે.

2.   અજ – વિશ્વાસ અજન્મા – અજ છે.

3.   સહજ – સહજ વિશ્વાસની ત્રીજી આંખ છે.

અંધકારનું પણ પોતાનું એક અજવાળું હોય છે.

માનસમાં ૨૨ પર્વત છે અને પ્રત્યેક પર્વત એક એક સદગ્રંથ છે.

વેદ ૪ છે અને પુરાણ ૧૮ છે જે ૪+૧૮ = ૨૨ થાય.

1      કૈલાસ – કૈલાસ પર્વત ઋગ્વેદ છે.

2      નિલકંઠ

3        હિમાલય

4        નર નારાયણ

5        ગૌરી શંકર

6        ગોવર્ધન – ગોવર્ધન પર્વત સામવેદ છે.

7        દ્રોણગિરિ પર્વત – આ પર્વત યજુર્વેદ છે. ઔષધિનો ભંડાર છે.

8        અયોધ્યા જે પણ એક પર્વત છે.

9        સહયાદ્રી

10      શબરીમાલા

11      અંબાજી

12      મંદરાચલ

13      એકલસુતા

14      ઋષિમુખ

15      સુમેર

16      આબુ

17      નિલગિરિ – આ પર્વત અથર્વવેદ છે.

18      મહેંદ્રગિરિ

19      ગિરનાર

20      ચિત્રકૂટ

21      આબુ

22      વિંદ્યાચલ જે અચલ છે.

 

दिल को उस राह पे चलना ही नहीं

जो मुझे तुझ से जुदा करती है

                            ….. Parveen Shakir

भए कामबस जोगीस तापस पावँरन्हि की को कहै।

देखहिं चराचर नारिमय जे ब्रह्ममय देखत रहे॥

अबला बिलोकहिं पुरुषमय जगु पुरुष सब अबलामयं।

दुइ दंड भरि ब्रह्मांड भीतर कामकृत कौतुक अयं॥

जब योगीश्वर और तपस्वी भी काम के वश हो गए, तब पामर मनुष्यों की कौन कहे? जो समस्त चराचर जगत को ब्रह्ममय देखते थे, वे अब उसे स्त्रीमय देखने लगे। स्त्रियाँ सारे संसार को पुरुषमय देखने लगीं और पुरुष उसे स्त्रीमय देखने लगे। दो घड़ी तक सारे ब्राह्मण्ड के अंदर कामदेव का रचा हुआ यह कौतुक (तमाशा) रहा।

 

Day 5

Wednesday, 28/05/2025

આચાર્ય, પ્રાદ્યાપક, કુલપતિ વગેરેમાં આઠ પ્રકારની વૃત્તિ હોવી જોઈએ.

        ૧      ગણેશ વૃત્તિ – વિવેક હોવો જોઈએ, સ્થિરતા હોવી જોઈએ, વિવેક સ્થાયી ભાવનો હોવો જોઈએ.

        ૨      ગૌરી વૃત્તિ – આ બધામાં પોતાના છાત્રો પ્રત્યે  માતા જેવું વાત્સલ્ય હોવું જોઈએ.

કિસાનમાં કર્મ અને કૃપા બંને છે, તે કર્મ કરે છે અને કૃપાથી વરસાદ પડે છે.

જ્યારે બાળકો ગધેડાની પૂંછ ઉપર ફટકડા બાંધી સળગાવે ત્યારે તે બાળકોનું કર્મ છે પણ ગધેડા ઉપર કૃપા નથી.

જ્યારે કોઈ પરિવારમાં કોઈ એક વ્યક્તિ પાગલ બની જાય છે ત્યારે તે વ્યક્તિ ઉપર કૃપા નથી અને કર્મ પણ નથી.

કઈ પણ કર્મ કર્યા વિના પણ કૃપા વરસે.

        ૩      ગો વૃત્તિ – આ બધામાં ગાય જેવો સ્વભાવ હોવો જોઈએ, બધાને પોતાના માને, ગાય જેવા રાંક હોવા જોઈએ, ઊગ્ર ન હોવા જોઈએ.

        ૪      ગિરા વૃત્તિ – સરસ્વતી વૃત્તિ – બોલવાની કળા હોવી જોઈએ. આચાર્યમાં પ્રભુ ભજન, સંગિતની ધારા, કોઈ ગ્રંથ હોવો જોઈએ.

        ૫      ગંગ વૃત્તિ – આ બધામાં વિચારની ધારા, જ્ઞાનની ધારા હોવી જોઈએ.

        ૬      ગોપાલ વૃત્તિ – આ બધામાં પોતાની પ્રત્યેક ઈંદ્રીયો ઉપર વિનય પૂર્વકનો સંયમ હોવો જોઈએ.

જે વ્યક્તિની પ્રત્યેક ઈંદ્રીય તે વ્યક્તિની દાસી બની જાય તેને ગોસ્વામી – ગોસાંઈ કહેવાય.

        ૭      ગગન વૃત્તિ – બધામાં આકાશ જેવી વિશાળ વૃત્તિ હોવી જોઈએ.

        ૮      ગ્રંથ વૃત્તિ

માણસે કેવી રીતે સુવું જોઈએ એ વિષે તુલસીદાસજી કહે છે …..

 

राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन।

सुमिरि संभु गुरु बिप्र पद किए नीदबस नैन॥357॥

विनय भरे उत्तम वचन कहकर श्री रामचन्द्रजी ने सब माताओं को संतुष्ट किया। फिर शिवजी, गुरु और ब्राह्मणों के चरणों का स्मरण कर नेत्रों को नींद के वश किया। (अर्थात वे सो रहे)॥357॥

 

नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना॥

घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं॥1॥

 

नींद में भी उनका अत्यन्त सलोना मुखड़ा ऐसा सोह रहा था, मानो संध्या के समय का लाल कमल सोह रहा हो। स्त्रियाँ घर-घर जागरण कर रही हैं और आपस में (एक-दूसरी को) मंगलमयी गालियाँ दे रही हैं॥1॥

 

Day 8

Saturday, 31/05/2025

સત્ય, વૈરાગ્ય સચિવ છે.

જ્યારે સચિવ, વૈદ્ય અને ધર્મ ગુરુ કોઈ પ્રલોભનના કારણે મૂલ તત્વ ન સમજાવે તો પતન થાય.

 

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥

मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥37॥

રામ નામ મંત્ર એક સંજીવની છે.

સચિવ વિચાર આપે, સારથી ગતિ આપે. સુમંત સચિવ છે તેમજ સારથી પણ છે.

માનસમાં ચાર મંથનની કથા છે.

સાગરમાંથી ઉત્પન્ન થયેલ લક્ષ્મી ક્ષાર યુક્ત છે.

 

कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा। रामु बिलोकहिं गंग तरंगा॥

सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई। बिबुध नदी महिमा अधिकाई॥3॥

 

अनेक कथा प्रसंग कहते हुए श्री रामजी गंगाजी की तरंगों को देख रहे हैं। उन्होंने मंत्री को, छोटे भाई लक्ष्मणजी को और प्रिया सीताजी को देवनदी गंगाजी की बड़ी महिमा सुनाई॥3॥

 

पेम अमिअ मंदरु बिरहु भरतु पयोधि गँभीर।

मथि प्रगटेउ सुर साधु हित कृपासिंधु रघुबीर॥238॥

 

प्रेम अमृत है, विरह मंदराचल पर्वत है, भरतजी गहरे समुद्र हैं। कृपा के समुद्र श्री रामचन्द्रजी ने देवता और साधुओं के हित के लिए स्वयं (इस भरत रूपी गहरे समुद्र को अपने विरह रूपी मंदराचल से) मथकर यह प्रेम रूपी अमृत प्रकट किया है॥238॥

 

 

Day 9

Sunday, 01/06/2025

કથા શ્રોતાઓનો શ્રીંગાર છે.

આનંદ આપણો સ્વભાવ છે, અધિકાર છે, સ્વરુપ છે.

बिस्वास एक राम - नामको ।

मानत नहिं परतीति अनत ऐसोइ सुभाव मन बामको ॥१॥

पढ़िबो पर्यो न छठी छ मत रिगु जजुर अथर्वन सामको ।

ब्रत तीरथ तप सुनि सहमत पचि मरै करै तन छाम को ? ॥२॥

करम - जाल कलिकाल कठिन आधीन सुसाधित दामको ।

ग्यान बिराग जोग जप तप , भय लोभ मोह कोह कामको ॥३॥

सब दिन सब लायक भव गायक रघुनायक गुन - ग्रामको ।

बैठे नाम - कामतरु - तर डर कौन घोर घन घामको ॥४॥

को जानै को जैहै जमपुर को सुरपुर पर धामको ।

तुलसिहिं बहुत भलो लागत जग जीवन रामगुलामको ॥५॥

 

मुझे तो एक राम - नामका ही विश्वास है । मेरे कुटिल मनका कुछ ऐसा ही स्वभाव है कि वह और कहीं विश्वास ही नहीं करता ॥१॥

छः ( न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , मीमांसा , वेदान्त ) शास्त्रोंका तथा ऋक , यजु , अथर्वण और साम वेदोंका पढ़ना तो मेरी छठीमें ही नहीं पड़ा ( भाग्यमें ही नहीं लिखा गया ) है , और व्रत , तीर्थ , तप आदिका तो नाम सुनकर मन डर रहा है । कौन ( इन साधनोंमें ) पच - पचकर मरे या शरीरको क्षीण करे ? ॥२॥

कर्मकाण्ड ( यज्ञादि ) कलियुगमें कठिन है और उसका होना भी धनके अधीन है । ( अब रहे ) ज्ञान , वैराग्य , योग , जप और तप आदि साधन , सो इनके करनेमें काम , क्रोध , लोभ , मोह आदिका भय लगा है ॥३॥

इस भव ( संसार ) - में श्रीरघुनाथजीके गुणसमूहको गानेवाले ही सदा सब प्रकारसे योग्य हैं । जो राम - नामरुपे कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं , उन्हें घनघोर घटा योग्य हैं । जो राम - नामरुपी कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं , उन्हें घनघोर घटा ( तमोमय अज्ञान ) अथवा तेज धूप ( विषयोंकी चकाचौंध ) - का क्या डर हैं ? भाव यह है कि वे अज्ञानके वश होकर विषयोंमें नहीं फँस सकते । इससे पाप - ताप उनसे सदा दूर रहते हैं ॥४॥

कौन जानता है कि कौन नरक जायगा , कौन स्वर्ग जायगा और कौन परमधाम जायगा ? तुलसीदासको तो इस संसारमें रामजीका गुलाम होकर जीना ही बहुत अच्छा लगता है ॥५॥

શાંતિ પ્રાપ્તિ માટે કામના ન રાખવી.

·       "एक भरोसो, एक बल, एक आस, विश्वास" तुलसीदास जी का एक प्रसिद्ध दोहा है। इसका अर्थ है: मेरा एकमात्र भरोसा, एकमात्र बल, एकमात्र आशा और एकमात्र विश्वास श्री राम में है। यह राम रूपी घनश्याम (मेघ) के लिए चातक की तरह है, तुलसीदास जी। यह दोहा में भी पाया जाता है।

इस दोहे का अर्थ यह है कि तुलसीदास जी के जीवन में, राम ही उनकी एकमात्र शक्ति, एकमात्र सहारा, एकमात्र आशा और एकमात्र विश्वास हैं। वे राम के लिए चातक की तरह हैं, जो केवल स्वाति नक्षत्र की वर्षा के लिए तरसता है, वैसे ही तुलसीदास जी केवल राम के लिए ही जीते हैं।

यह दोहा तुलसीदास जी की भक्ति और विश्वास को दर्शाता है। वे श्री राम में ही पूरी तरह से लीन हैं और उन्हें ही अपना सर्वस्व मानते हैं।

 

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः

निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥71॥

 

विहाय-त्याग कर; कामान्भौतिक इच्छाएँ; यः-जो; सर्वान्समस्त; पुमान्-पुरुष; चरति-रहता है; निःस्पृहः-कामना रहित; निर्मम:-स्वामित्व की भावना से रहित; निरहंकारः-अहंकार रहित; सः-वह; शान्तिम्-पूर्ण शान्ति को; अधिगच्छति-प्राप्त करता है।

जिस मुनष्य ने अपनी सभी भौतिक इच्छाओं का परित्याग कर दिया हो और इन्द्रिय तृप्ति की लालसा, ममत्व के भाव और अंहकार से रहित हो गया हो, वह पूर्ण शांति को प्राप्त करता है।

इस श्लोक में श्रीकृष्ण मनुष्य की शांति के मार्ग में आने वाले बाधक तत्त्वों की व्याख्या कर रहे हैं और फिर अर्जुन को उनका परित्याग करने को कहते हैं।

 

1.   सांसारिक इच्छाएँ: जिस क्षण हम अपनी इच्छाओं को मन में प्रश्रय देते हैं उसी क्षण हम लोभ और क्रोध के जाल में फंस जाते हैं। इसलिए आंतरिक शांति का मार्ग कामनाओं की पूर्ति करने के स्थान पर उनका नाश करने से प्राप्त होता है।

2.   लोभः सर्वप्रथम, भौतिक उन्नति की लालसा से हमारा बहुमूल्य समय व्यर्थ होता है यह कभी न समाप्त होने वाली दौड़ है। विकसित देशों के लोग उत्तम रहन-सहन और खान पान से युक्त रहते हैं किन्तु फिर भी वे विक्षुब्ध रहते हैं क्योंकि उनकी लालसाएँ समाप्त नहीं हुई हैं। अतः जो संतोष रूपी धन पा लेता है उसे जीवन की अनमोल निधि मिल जाती है।

3.   अहंकारः समाज में होने वाले अधिकतर विवाद अहंकार से उत्पन्न होते हैं। हॉवर्ड बिजनेस स्कूल के विद्वान और 'व्हॉट दे डोंट टीच यू ऍट हॉवर्ड बिजनेस स्कूल' नामक पुस्तक के लेखक मार्क एच. मैकॉरमैक लिखते हैं-"अधिकतर व्यावसायिक अधिकारियों में अहंकार भरा होता है।" सांख्यिकी के आँकड़ों के अनुसार अधिकतर व्यावसायिक कार्यकारी अहंकार के कारण ही उच्च प्रबंधीय स्तर पर अपनी जीविका छोड़ देते हैं। अहंकार का पोषण करने और उसे बढ़ाने की अपेक्षा उससे मुक्ति पाने से ही शांति प्राप्त होती है।

4.   स्वामित्वः अज्ञानता के कारण मन में स्वामित्व की भावना उत्पन्न होती है। हम संसार में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाएंगे तब ऐसे में हम सांसारिक पदार्थों को अपना कैसे मान सकते हैं।

 

जो संन्यासी पुरुष सम्पूर्ण कामनाओंको और भोगोंको अशेषतः त्यागकर अर्थात् केवल जीवनमात्रके निमित्त ही चेष्टा करनेवाला होकर विचरता है।

तथा जो स्पृहासे रहित हुआ है अर्थात् शरीरजीवनमात्रमें भी जिसकी लालसा नहीं है।

ममतासे रहित है अर्थात् शरीरजीवनमात्रके लिये आवश्यक पदार्थोंके संग्रहमें भी यह मेरा है ऐसे भावसे रहित है।

तथा अहंकारसे रहित है अर्थात् विद्वत्ता आदिके सम्बन्धसे होनेवाले आत्माभिमानसे भी रहित है।

वह ऐसा स्थितप्रज्ञ ब्रह्मवेत्ता ज्ञानी संसारके सर्वदुःखोंकी निवृत्तिरूप मोक्ष नामक परम शान्तिको पाता है अर्थात् ब्रह्मरूप हो जाता है।

 

जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है, वह शान्तिको प्राप्त होता है।

 जो पुरुष सब कामनाओं को त्यागकर स्पृहारहित? ममभाव रहित और निरहंकार हुआ विचरण करता है? वह शान्ति प्राप्त करता है।।

ભગવાનની કૃપા પામવા માટેના ઉપાય …

૧      એકાંતમાં રહેવું, એકનો પણ અંત કરી દેવો. એકાગ્રતામાં એકની પ્રધાનતા હોય છે. એકાંતમાં રહેવું એ એક સાધના છે, અનુષ્ઠાન છે.

રાધામાં દ્વૈત પેદા થતાં તે રુદન કરવા લાગે છે. રાધા એવું માનવા લાગી કે તે પ્રેમિકા છે અને કૃષ્ણ પ્રેમી છે આમ પ્રેમિકા અને પ્રેમીનો દ્વૈત પેદા થતાં રાધા રુદન કરવા લાગે છે. હકિકતમાં રાધા અને કૃષ્ણ એક જ છે, તેમનામાં દ્વૈત છે જ નહિં.

        ૨      પ્રેમથી ભગવાનની કૃપા પ્રાપ્ત થાય.

પ્રેમના પાંચ રુપ છે.

1.   પ્રેમ

2.   પરમ પ્રેમ જ્યાં અંતઃકરણ (મન, બુદ્ધિ, ચિત અને અહંકાર) મટી જાય છે.

3.   તત્ત્વ પ્રેમ જે પ્રેમનું સુક્ષત્મ રુપ છે.

4.   કેવલ પ્રેમ

5.   નિષ્કેવલ પ્રેમ

 

मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥

परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥1॥

 

मिलन की प्रीति कैसे बखानी जाए? वह तो कविकुल के लिए कर्म, मन, वाणी तीनों से अगम है। दोनों भाई (भरतजी और श्री रामजी) मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को भुलाकर परम प्रेम से पूर्ण हो रहे हैं॥1॥

 

 

कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥3॥

मन का दुःख कह डालने से भी कुछ घट जाता है। पर कहूँ किससे? यह दुःख कोई जानता नहीं। हे प्रिये! मेरे और तेरे प्रेम का तत्त्व (रहस्य) एक मेरा मन ही जानता है॥3॥

 

रामहि  केवल  प्रेमु  पिआरा।  जानि  लेउ  जो  जान  निहारा॥

राम  सकल  बनचर  तब  तोषे।  कहि  मृदु  बचन  प्रेम  परिपोषे॥1॥

 

श्री  रामचन्द्रजी  को  केवल  प्रेम  प्यारा  है,  जो  जानने  वाला  हो  (जानना  चाहता  हो),  वह  जान  ले।  तब  श्री  रामचन्द्रजी  ने  प्रेम  से  परिपुष्ट  हुए  (प्रेमपूर्ण)  कोमल  वचन  कहकर  उन  सब  वन  में  विचरण  करने  वाले  लोगों  को  संतुष्ट  किया॥1॥  આ કેવલ પ્રેમ છે.

નિષ્કેવલ પ્રેમ – બંદર ભાલુ રામ પ્રત્યે નિષ્કેવલ પ્રેમ કરે છે.

કેવલ પ્રેમમાં દાતા – ઈશ્વર – બુદ્ધ પુરુષ પાસેથી કંઈ જ જોઈતું નથી.

કેવલ પ્રેમમાં પ્રેમી ઈચ્છે છે કે તેનિ પ્રિયતમ ક્યારેક યાદ કરે અને પ્રેમી પણ ક્યારેક યાદ કરે છે.

જ્યારે નિષ્કેવલ પ્રેમમાં યાદ કરવાનું રહેતું જ નથી. અહીં પ્રિયતમ પણ પ્રેમીને ભૂલી જાય છે અને પ્રિયતમને પ્રેમીને ભૂલી જવાનો હક પણ છે પણ પ્રેમી તેના પ્રિયતમને યાદ કરે છે.

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको

मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है

નિષ્કેવલ પ્રેમી – બંદર, ભાલુ ભગવાન રામ સાથે શરારત પણ કરે છે અને તેવી શરારત કરવાનો તેને હક પણ છે.

        ૩      કોઈ સાધુની કરુણાથી ઈશ્વર કૃપા પ્રાપ્ત થાય.

        ૪      નિષ્કામ વ્રત નિયમ ઈશ્વર કૃપા પ્રાપ્ત કરાવે.

        ૫      પ્રભુની કૃપા મૂર્તિને પોતાના દિલમાં સ્થાપના કરવાથી પરમાત્માની કૃપા પ્રાપ્ત થાય.

નાલંદા વિશ્વ વિદ્યાલય અને આનંદા વિશ્વ વિદ્યાલયની તુલના ….

 

નાલંદા વિશ્વ વિદ્યાલય

આનંદા વિશ્વ વિદ્યાલય

1

આ વિદ્યાલયનું બહિ્રરુપ હોય.

આ વિદ્યાલયનું આંતર રુપ હોય.

 2

આ વિદ્યાલયમાં અનેક વિષયોનો અભ્યાસ કરાવવામાં આવે છે.

આ વિદ્યાલયમાં કોઈ વિષય નથી હોતો પણ વિશ્વાસ હોય છે. આને આવો વિશ્વાસ ફક્ત કોઈ એક ઉપર જ હોય.

 3

આ વિદ્યાલય સાધન સંપન્ન હોય.

આ વિદ્યાલય સાધના સંપન્ન હોય.

 4

આ વિદ્યાલયમાંથી પ્રમાણપત્ર મળે.

આ વિદ્યાલયમાંથી પ્રેમ પત્ર મળે.

 5

આ વિદ્યાલયમાંથી ડિગ્રી મળે.

આ વિદ્યાલયમાંથી જિગરી મળે.

 6

આ વિદ્યાલયમાં કૂલપતિ હોય.

આ વિદ્યાલયમાં કુલ ગતિ – પૂર્ણ ગતિ હોય.

 7

આ વિદ્યાલયમાં અભ્યાસક્રમ હોય.

આ વિદ્યાલયમાં દેહાભ્યાસ હોય.

 8

આ વિદ્યાલય કર્મ પ્રધાન હોય, વિદ્યાલય બનાવવા માટે ઘણું કર્મ કરવું પડે.

આ વિદ્યાલય કૃપા પ્રધાન હોય.