Translate

Search This Blog

Saturday, October 28, 2023

માનસ રાધાકષ્ટક - 925

 

રામ કથા - 925

માનસ રાધાકષ્ટક

બરસાના, ઉત્તર પ્રદેશ

શનિવાર, તારીખ 14/10/2023  થી રવિવાર તારીખ 22/10/2023

મુખ્ય પંક્તિ

बाम भाग सोभति अनुकूला।

आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला॥1॥

आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया।

सोउ अवतरिहि मोरि यह माया॥

 

 

 

1

Statuary, 14/10/2023

 

पद राजीव बरनि नहिं जाहीं। मुनि मन मधुप बसहिं जेन्ह माहीं॥

बाम भाग सोभति अनुकूला। आदिसक्ति छबिनिधि जगमूला॥1॥

जिनमें मुनियों के मन रूपी भौंरे बसते हैं, भगवान के उन चरणकमलों का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। भगवान के बाएँ भाग में सदा अनुकूल रहने वाली, शोभा की राशि जगत की मूलकारण रूपा आदि शक्ति श्री जानकीजी सुशोभित हैं॥1॥

 

जे सुनि सादर नर बड़भागी। भव तरिहहिं ममता मद त्यागी॥

आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया। सोउ अवतरिहि मोरि यह माया॥2॥

 

जिन (चरित्रों) को बड़े भाग्यशाली मनुष्य आदरसहित सुनकर, ममता और मद त्यागकर, भवसागर से तर जाएँगे। आदिशक्ति यह मेरी (स्वरूपभूता) माया भी, जिसने जगत को उत्पन्न किया है, अवतार लेगी॥2॥

 

नमस्ते श्रियै राधिकार्य परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै ।

सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तःप्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ॥ 1 ||

 

श्री राधिके! तुम्हीं श्रेय मार्ग की अधिष्ठात्री हो, तुम्हें नमस्कार है, तुम्हीं पराशक्ति राधिका हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुकुन्द की प्रियतमा हो, तुम्हें नमस्कार है। सदानन्दस्वरूपे देवि! तुम्हीं मेरे अन्त:करण के प्रकाश में श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझ पर प्रसन्न होओ ।

 

राधा तत्व अकथनीय, अवर्णनीय हैं।

राधा तत्व में योग और वियोग दोनो हैं।

 

राधा एक धारा हैं, राधा का उलटा धारा होता हैं। …………. ऑशो

जब हमारा कलेजा एक कोरा कागज हो जाय तब हि सदगुरु उस पर सही करते हैं।

राम चरित मानस के हरेक कां में एक एक मातॄ शरीर का चरित्र हैं।

बालकांड में मातृ शरीर सती का चरित्र हैं।

अयोध्याकांड में मातृ शरीर सीता का चरित्र हैं।

अरण्यकांड में मातृ शरीर अनसुया माता का चरित्र हैं।

किष्किन्धाकांड में मातृ  शरीर तारा का चरित्र हैं।

सुंदरकांड में त्रिजटा का चरित्र हैं।

लंकाकांड में मंदोदरी का चरित्र हैं।

उत्तरकांड में भक्ति स्वरुपा मातृ शरीर का चरित्र हैं।

 

2

Sunday, 15/10/2023

त्वं च लक्ष्मी शिवाधात्रि सावित्री च ………….

गंगा, गायत्री और गीता के पावित्र्य पर कभी भी शंका नहीं करनी चाहिये।

परम तत्व – राम, कृष्ण, भगवान शिव के सामर्थ्य पर कभी भी शंका नहीं करनी चाहिए।

मंत्र, धर्म,दायित्व निभा रही मातृ शरीर के चारित्र पर कभी भी शंका नहीं करनी चाहिये।

मित्र की मैत्री और साधु के चारित्र पर कभी भी शंका नहीं करनी चाहिये।

राधा के तीन बिंदु – गर्भकुल, गृहकुल और गुरुकुल जो ईन्द्रीयो का कुल हैं और जो कृष्णमय हैं वह हमें राधा की तरफ आकर्षित करते हैं।

 

3

Monay, 16/10/2023

 

राधा शब्दब्रह्म में रा का अर्थ मुक्ति, मोक्ष हैं और धा का अर्थ दोडना हैं, ईस तरह जिसका नाम लेनेसे (राधा का नाम लेने से) मुक्ति – मोक्ष जो नाम लेता हैं उस के पीछे पीछे दोडता हैं।

राम शब्दब्रह्म का नाम लेनेसे भी मुक्ति मिल जाती हैं ऐसा तुलसीदासजी कहते हैं।

 

अति दुर्लभ कैवल्य परम पद। संत पुरान निगम आगम बद।।

राम भगत सोइ मुकुति गोसाईं। अनइच्छित आवइ बरिआईं।।2।।

 

 

संत, पुराण, वेद और [तन्त्र आदि] शास्त्र [सब] यह कहते हैं कि कैवल्यरूप परमपद अत्यन्त दुर्लभ है; किंतु गोसाईं ! वही [अत्यन्त दुर्लभ] मुक्ति श्रीरामजी को भजने से बिना इच्छा किये भी जबरदस्ती आ जाती है।।2।।

 

जिस के साथ एक बार लगन लग जाने के बाद जन्मोजन्म कोई दूसरा न गमे उसे प्रेम – परम प्रेम कहते हैं।

 

स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् ।

स्वदानोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसी ताम् ॥ 2 ||

 

हे राधे ! आप तो उन श्री कृष्ण की आराधना करती हैं जिन्होंने आपके वस्त्रों को चुराया था तथा चुपचाप धोखे से आपका माखन भी चुराया करते थे | आपने तो अपनी निवि से श्री कृष्ण के उधर को भी बांध लिया था जिसके कारन उनका नाम “दामोदर पड़ा |  निश्चय ही मैं उन दामोदर प्रिया की शरण लेता हूँ |

 

वस्त्र वृत्ति हैं जिसे कृष्ण हरण कर लेता हैं।

4

Tuesday, 17/10/2023

हर व्यक्ति के लिये सब ग्रंथ सन्मानीय और उसके सत्य को स्वीकार करने के लिये हैं लेकिन हर व्यक्ति के लिये ईष्ट ग्रंथ एक हि होना चाहिये।

राम चरित मानस क्या हैं?

 

कलिमल हरनि बिषय रस फीकी। सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की।।

दलनि रोग भव मूरि अमी की। तात मातु सब बिधि तुलसी की।।

आरती श्री रामायणजी की। कीरति कलित ललित सिय पीय की।।

 

राम चरित मानस माबाप हैं और बापु कहते हैं कि उनके लिर राम चरित मानस सबकुछ हैं।

परमात्मा के चरण और बुध पुरुष की पादूका हि पूजनीय हैं, अन्य अवयव दर्शनीय हैं।

 

सिय  राम  प्रेम  पियूष  पूरन  होत  जनमु    भरत  को।

मुनि  मन  अगम  जम  नियम  सम  दम  बिषम  ब्रत  आचरत  को॥

दुख  दाह  दारिद  दंभ  दूषन  सुजस  मिस  अपहरत  को।

कलिकाल  तुलसी  से  सठन्हि  हठि  राम  सनमुख  करत  को॥

 

श्री  सीतारामजी  के  प्रेमरूपी  अमृत  से  परिपूर्ण  भरतजी  का  जन्म  यदि    होता,  तो  मुनियों  के  मन  को  भी  अगम  यम,  नियम,  शम,  दम  आदि  कठिन  व्रतों  का  आचरण  कौन  करता?  दुःख,  संताप,  दरिद्रता,  दम्भ  आदि  दोषों  को  अपने  सुयश  के  बहाने  कौन  हरण  करता?  तथा  कलिकाल  में  तुलसीदास  जैसे  शठों  को  हठपूर्वक  कौन  श्री  रामजी  के  सम्मुख  करता?

मानस में किस किस ने घर छोडा?

1.    भगवान राम

2.    विभीषण

3.    भरत

4.    मनु शतरुपा ने वैराग के प्रताप के कारण घर छोडा

 

भगवान राम के घर छोडनेका कारण

 

तापस  बेष  बिसेषि  उदासी। 

चौदह  बरिस  रामु  बनबासी॥

सुनि  मृदु  बचन  भूप  हियँ  सोकू। 

ससि  कर  छुअत  बिकल  जिमि  कोकू॥2॥

 

तपस्वियों  के  वेष  में  विशेष  उदासीन  भाव  से  (राज्य  और  कुटुम्ब  आदि  की  ओर  से  भलीभाँति  उदासीन  होकर  विरक्त  मुनियों  की  भाँति)  राम  चौदह  वर्ष  तक  वन  में  निवास  करें।  कैकेयी  के  कोमल  (विनययुक्त)  वचन  सुनकर  राजा  के  हृदय  में  ऐसा  शोक  हुआ  जैसे  चन्द्रमा  की  किरणों  के  स्पर्श  से  चकवा  विकल  हो  जाता  है॥2॥ 

राधाष्टक श्लोक ३

 

दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधाभिधाऽभूः ।

स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपञ्चाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ॥ 3 ||

 

हे राधा रानी ! आपने उन श्री कृष्ण की आराधना की जिनकी आराधना करना बहुत कठिन है परन्तु आपने अपनी आराधना तथा अपने निश्छल महान प्रेम से श्री कृष्ण को भी अपने वश में कर लिया जिसके कारण आप पूरे जगत में “श्री राधा के नाम से विख्यात हैं | श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपने अपने आप को यह नाम दिया है, हे राधा रानी मैं आपकी शरण में हूँ मुझ पर कृपा करो तथा मुझे श्री हरी का प्रेम प्रदान करो |

कृष्ण प्रेम हैं और राधा प्रीति हैं और उनके बीच प्रणय हैं।

प्रेम और पृति के बीच प्रणय हैं।

5

Wednesday, 18/10/2023

 

साधु हमारी सुरक्षा हैं।

 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।

 

।।4.8।। साधुओं-(भक्तों-) की रक्षा करनेके लिये, पापकर्म करनेवालोंका विनाश करनेके लिये और धर्मकी भलीभाँति स्थापना करनेके लिये मैं युग-युगमें प्रकट हुआ करता हूँ।

अनावश्यक वस्तुओ को ऊर करो तो आवश्यक अपनेआप प्रगट हो जायेगा।

ज्ञान वैराग्य नर हैं और भक्ति नरी हैं जो ज्ञान वैराग्य (कृष्ण) उपर छाई हुई हैं। रुखड बाबा की पंक्ति का राधा परख अर्थ यह हैं।

राधाष्टक श्लोक 4

 

 

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धः पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः ।

उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम् ॥ 4 ||

 

हे राधे ! प्रभु श्री कृष्ण तो सदा तुम्हारी प्रेम डोर से बंधे रहते हैं और एक पतंग की भांति तुम्हारे आस पास ही रहते हैं और क्रीड़ा करते हैं | हे देवी, हे श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपकी कृपा तो सब पर होती है, आप मुझ पर भी अपनी कृपा करें तथा मुझ से भी अपनी सेवा करवाएं |

प्रेम के सात स्थान हैं, स्थिति हैं।

1      स्नेह

2      प्रणय

3      रति

4      राग

5      अनुराग

6      भाव

7      महाभाव

स्नेह की स्थिति में प्रेमी याद में हमारी आंख में अश्रु आ जाते हैं, हम पिगल जाते हैं, और प्रेमी न भी पिगले।

प्रण्य की स्थिति में प्रेमी और प्रियतम दोनो की आंख में अश्रु आ जाते हैं।

रति के ३ प्रकार हैं।

साधारण रति जिस में व्यक्ति अपना सुख हि सोचता हैं।

समान रति में दोनो को सुख मिले ऐसा सोचते हैं।

समर्थ रति में सब का सुख सोचते हैं।

अनुराग पूजा हैं, साधना हैं।

 

मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।।

उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला। तहँ रह काकभुसुंडि सुसीला।।1।।

 

बिना प्रेम के केवल योग, तप, ज्ञान और वैराग्यादिके करनेसे श्रीरधुनाथजी नहीं मिलते। [अतएव तुम सत्संग के लिये वहाँ जाओ जहाँ] उत्तर दिशा में एक सुन्दर नील पर्वत है। वहाँ परम सुशील काकभुशुण्डिजी रहते हैं।।1।।

भाव स्थिति में हनिक, बौधिक साधक अपने भाव को छुपाते हैं.

भगवान शंकर और सती के बीच भगवान शंकर में भाव दशा हैं।

महाभाव अषाढी मेघ हैं, यह स्थिति में कोई नियंत्रण नहीं हैं. राधा में महाभाव हैं।

6

Thursday, 19/10/2023

 

बरसाना की धरती पर राधिका सत्य, प्रेम और करुना की वर्षा करती हैं।

अगर हम शुद्ध भावसे – खुल्ले अंतःकरण से जिसका चिंतन – स्मरण करत्ते हैं वह हमारे आसपास हि रहता हैं।

रस के प्रकार

पदार्थ का रस – खाद्य पदार्थ के  रस हैं जिसे षड रस कहते हैं।

काव्य रस – कवि जगत के ९ रस हैं।

मानस मे ध्यान रस का उल्लेख हैं।

पारा के शिवलिंग का एक रस हैं।

राम भक्ति का भी एक रस हैं।

ईस तरह यह ६+९+१+१+१ = १८ हैं जो एक पूर्णांक हैं।

आध्यत्म मार्ग, वेद मार्ग, योग मार्ग वगेरे भी रसमय होना चाहिये।

राधाष्तक का मंत्र 5

 

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम् ।

सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षः श्रियं चिन्तयेत् सचिदानन्दरूपाम् ॥ 5 ||

 

हे देवी आप प्रतिदिन नियत समय पर श्री कृष्ण को अङ्क की माला अर्थात अंक की माला अर्पित करती हैं तथा उनके साथ उनकी लीला भूमि श्री वृन्दावन धाम में उनके साथ विचरण करती हैं | भक्तजनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्द स्वरूप श्री लाडली का हमें उनका चिंतन करना चाहिए ।

7

Friday, 20/10/2023

व्रज की पांच वस्तु विषेश हैं।

1.    व्रज रेणु – व्रज रज

2.    कृष्ण की वेणु

3.    व्रज धेनु

4.    अश्रु पाद – गोपी जन का गदगद होकर रोना

5.    मेणुं – કૃષ્ણ ને કઈ મેણાંં – ટોણા મારા છે.

रस धारा में 5 विघ्न हैं।

1                हमारे आराध्य के सिवा दूसरे की आराधना करनेकी अभिलाषा रस धारा में विघ्न हैं।

2                हमारे ईष्ट ग्रंथ को छोडकर अन्य असद ग्रंथ पढनेकी अभिलाषा रसधारा मीं विघ्न हैं।

3                अपने आप को भगवदीय समज लेना रसधारा में विघ्न हैं।

4                अपना ईष्ट हि समर्थ हैं ऐसा न समजना विघ्न हैं।

5                अपने बुद्ध पुरुष के पास, अपने ईष्ट के पास कुछ छुपाना विघ्न हैं।

मेघा वह हैं जिस के जिवन में एक भी संशय न रहे।

 

सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी।।

ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी।।1।।

 

हे तात ! यह अकथनीय कहानी (वार्ता) सुनिये। यह समझते ही बनती है, कही नहीं जा सकती। जीव ईश्वर का अंश है। [अतएव] वह अविनाशी, चेतन, निर्मल और स्वभाव से ही सुख की राशि है।।1।।  

कृष्ण की आंख – परम की आंख शब्द कोष के अर्थ जैसी आंख नहीं हैं। ऐसा न समजना भी एक विघ्न हैं।

हमारी  आंख का शॄंगार कृष्ण प्रेम के अश्रु हैं।

मुकुद वह हैं जो हमारा मद, मन, माया, मोह और ममता हर ले।

8

Saturday, 21/10/2023

राधिकाजी छबिनिधि, ज्ञाननिधि, कृपानिधि, भावनिधि, शीलनिधि, प्रेम निधि हैं।

राधाजी कृष्ण पर भी कृपा करती हैं।

जब ज्ञान पूर्ण रुप में होगा तभी हि आंख से अश्रु नीकलेगा।

गुरु के बैठनेका कोना, अपने दिल का कोना, बुद्ध पुरुष की आंख का कोना भीगा रहना चाहिये।

विरह की स्थिति कोटी कोटी मुक्ति से ज्यादा अच्छी हैं।

बोध और प्रबोध में क्या फर्क हैं?

बोध स्वयंम में प्रगट होता हैं और निरंतर और शास्वत होता हैं।

प्रबोध दीआ जाता हैं।

हमारे कर्म, समय – काल, गुण और स्वभाव हमारे दुःख के कारण हैं।

9

Sunday, 22/10/2023

 

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गीमहं व्याप्यमानांतनुस्वेदविन्दुम् ।

महाहार्दवृष्टया कृपापाङ्गदृष्टया समालोकयन्ती कदा त्वां विचक्षे ॥ 6 ||

 

श्री राधे ! तुम्हारे मन तथा प्राणों में उन आनन्दकन्द श्री कृष्ण की असीमित अनंत प्रीति व्याप्त है अतएव तुम्हारे श्रीअङ्ग अर्थात श्रीअंग सदा ही रोमांच से विभूषित रहते हैं तथा तुम्हारा अंग अंग सूक्ष्म संवेद बिंदुओं से सुशोभित रहता है | तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा घनिष्ठ अनंत प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी तरफ देख रही हो, इस अवस्था में मुझे कब श्री राधे आपका दर्शन होगा ?

 

पदावावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः ।

पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तहदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ॥ 7||

 

हे देवी ! यद्यपि श्यामसुन्दर श्री कृष्ण स्वयं ही ऐसे हैं कि उनके चरणों का चिंतन किया जाए, तथापि वे स्वयं भी तुम्हारे चरण चिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। हे देवी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कृपा कर मेरे अन्तःकरण में असीम प्रकाश बिखेरते हुए अपने चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराए।

 

आज कल यात्री पर्यटक बन गये हैं।

पहले मूर्ति बनानेवाले साधक थे, अब वह कारीगर बन गये हैं।

व्रज रज की तुलना विश्व में भी नहीं हो शकती हैं।

 

Source Link : https://bhaktipujahindi.com/radha-ashtakam/

Posted here with thanks and courtesy to “bhaktipujateam1” - 

 

 

नमस्ते श्रियै राधिकार्य परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै ।

सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तःप्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ॥ 1 ||

 

हे राधा ! तुम ही श्री लक्ष्मी हो तुम्हें कोटि कोटि नमस्कार है, तुम ही परम शक्ति हो तुम्हें बार बार नमस्कार है | तुम मुकुंद अर्थात श्री कृष्ण की प्रिय हो, तुम्हें नमस्कार है | हे सदानंद स्वरूपा देवी तुम मेरे अन्तःकरण में श्याम सुंदर श्री कृष्ण के साथ शोभायमान होती हुई मुझ पर प्रसन्न हो जाओ |

 

स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् ।

स्वदानोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसी ताम् ॥ 2 ||

 

हे राधे ! आप तो उन श्री कृष्ण की आराधना करती हैं जिन्होंने आपके वस्त्रों को चुराया था तथा चुपचाप धोखे से आपका माखन भी चुराया करते थे | आपने तो अपनी निवि से श्री कृष्ण के उधर को भी बांध लिया था जिसके कारन उनका नाम “दामोदर पड़ा | निश्चय ही मैं उन दामोदर प्रिया की शरण लेता हूँ |

 

दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधाभिधाऽभूः ।

स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपञ्चाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ॥ 3 ||

 

हे राधा रानी ! आपने उन श्री कृष्ण की आराधना की जिनकी आराधना करना बहुत कठिन है परन्तु आपने अपनी आराधना तथा अपने निश्छल महान प्रेम से श्री कृष्ण को भी अपने वश में कर लिया जिसके कारण आप पूरे जगत में “श्री राधा के नाम से विख्यात हैं | श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपने अपने आप को यह नाम दिया है, हे राधा रानी मैं आपकी शरण में हूँ मुझ पर कृपा करो तथा मुझे श्री हरी का प्रेम प्रदान करो |

 

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धः पतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः ।

उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम् ॥ 4 ||

 

 हे राधे ! प्रभु श्री कृष्ण तो सदा तुम्हारी प्रेम डोर से बंधे रहते हैं और एक पतंग की भांति तुम्हारे आस पास ही रहते हैं और क्रीड़ा करते हैं | हे देवी, हे श्रीकृष्ण स्वरूपे ! आपकी कृपा तो सब पर होती है, आप मुझ पर भी अपनी कृपा करें तथा मुझ से भी अपनी सेवा करवाएं |

 

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम् ।

सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षः श्रियं चिन्तयेत् सचिदानन्दरूपाम् ॥  5 ||

 

हे देवी आप प्रतिदिन नियत समय पर श्री कृष्ण को अङ्क की माला अर्थात अंक की माला अर्पित करती हैं तथा उनके साथ उनकी लीला भूमि श्री वृन्दावन धाम में उनके साथ विचरण करती हैं | भक्तजनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्द स्वरूप श्री लाडली का हमें उनका चिंतन करना चाहिए ।

 

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गीमहं व्याप्यमानांतनुस्वेदविन्दुम् ।

महाहार्दवृष्टया कृपापाङ्गदृष्टया समालोकयन्ती कदा त्वां विचक्षे ॥ 6 ||

 

श्री राधे ! तुम्हारे मन तथा प्राणों में उन आनन्दकन्द श्री कृष्ण की असीमित अनंत प्रीति व्याप्त है अतएव तुम्हारे श्रीअङ्ग अर्थात श्रीअंग सदा ही रोमांच से विभूषित रहते हैं तथा तुम्हारा अंग अंग सूक्ष्म संवेद बिंदुओं से सुशोभित रहता है | तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा घनिष्ठ अनंत प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी तरफ देख रही हो, इस अवस्था में मुझे कब श्री राधे आपका दर्शन होगा ?

 

पदावावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः ।

पदं राधिके ते सदा दर्शयान्तहदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ॥  7 ||

 

हे देवी ! यद्यपि श्यामसुन्दर श्री कृष्ण स्वयं ही ऐसे हैं कि उनके चरणों का चिंतन किया जाए, तथापि वे स्वयं भी तुम्हारे चरण चिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। हे देवी ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कृपा कर मेरे अन्तःकरण में असीम प्रकाश बिखेरते हुए अपने चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराए।

 

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम् ।

श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तःस्वभावे गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे॥ 8 ||

 

हे राधे ! मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर सदा ही आपका नाम विद्यमान रहे, मेरे नेत्रों के समक्ष सदा आपका ही रूप प्रकाशित हो | हे देवी मेरे कानों में आपकी कीर्ति कथा गूंजती रहे और अन्तर्हृदय में लक्ष्मी-स्वरूपा श्री राधा के ही असंख्य गुणों का चिंतन होता रहे, बस यही मेरी आपसे कामना है।

 

इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य ।

सतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधानिसखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः ॥ 9 ||

 

जो भी दामोदर प्रिया श्री राधा से संबंध रखने वाले इन आठ श्लोकों का पाठ करते हैं, वह सदा ही श्री कृष्ण धाम वृन्दावन में उनकी सेवा के अनुकूल सखी शरीर पाकर सुख से रहते हैं।

VIDEO LINKS

DAY1 

DAY2 

DAY3 

DAY4 

DAY5 

DAY6 

DAY7 

DAY8 

DAY9 

 

 

 

No comments:

Post a Comment