રામ કથા - 924
માનસ શ્રદ્ધાંજલિ
મોરબી, ગુજરાત
શનિવાર, તારીખ
30/09/2023 થી રવિવાર તારીખ 08/10/2023
બીજ પંક્તિઓ
बंदउँ संत समान चित हित
अनहित नहिं कोइ।
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि
सम सुगंध कर दोइ॥
जे श्रद्धा संबल रहित नहिं
संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति
जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥
1
Saturday, 30/09/2023
बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥3 (क)॥
मैं
संतों को प्रणाम करता हूँ, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु!
जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन)
दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं (वैसे ही संत शत्रु और मित्र दोनों
का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।)॥3 (क)॥
जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥38॥
जिनके
पास श्रद्धा रूपी राह खर्च नहीं है और संतों का साथ नहीं है और जिनको श्री रघुनाथजी
प्रिय हैं, उनके लिए यह मानस अत्यंत ही अगम है। (अर्थात् श्रद्धा, सत्संग और भगवत्प्रेम
के बिना कोई इसको नहीं पा सकता)॥38॥
2
Sunday, 01/10/2023
कहि सक न सारद सेष नारद
सुनत पद पंकज गहे।
अस दीनबंधु कृपाल अपने
भगत गुन निज मुख कहे॥
सिरु नाइ बारहिं बार चरनन्हि
ब्रह्मपुर नारद गए।
ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ
जे हरि रँग रँए॥
'शेष और शारदा भी नहीं कह सकते' यह सुनते ही नारदजी
ने श्री रामजी के चरणकमल पकड़ लिए। दीनबंधु कृपालु प्रभु ने इस प्रकार अपने श्रीमुख
से अपने भक्तों के गुण कहे। भगवान् के चरणों में बार-बार सिर नवाकर नारदजी ब्रह्मलोक
को चले गए। तुलसीदासजी कहते हैं कि वे पुरुष धन्य हैं, जो सब आशा छोड़कर केवल श्री
हरि के रंग में रँग गए हैं।
3
Monday, 02/10/2023
सनमानि सकल बरात आदर दान
बिनय बड़ाइ कै।
प्रमुदित महामुनि बृंद
बंदे पूजि प्रेम लड़ाइ कै॥
सिरु नाइ देव मनाइ सब सन
कहत कर संपुट किएँ।
सुर साधु चाहत भाउ सिंधु
कि तोष जल अंजलि दिएँ॥1॥
आदर,
दान, विनय और बड़ाई के द्वारा सारी बारात का सम्मान कर राजा जनक ने महान आनंद के साथ
प्रेमपूर्वक लड़ाकर (लाड़ करके) मुनियों के समूह की पूजा एवं वंदना की। सिर नवाकर, देवताओं
को मनाकर, राजा हाथ जोड़कर सबसे कहने लगे कि देवता और साधु तो भाव ही चाहते हैं, (वे
प्रेम से ही प्रसन्न हो जाते हैं, उन पूर्णकाम महानुभावों को कोई कुछ देकर कैसे संतुष्ट
कर सकता है), क्या एक अंजलि जल देने से कहीं समुद्र संतुष्ट हो सकता है॥1॥
ईस भजनु सारथी सुजाना।
बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा।
बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥
ईश्वर
का भजन ही (उस रथ को चलाने वाला) चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है।
दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है॥4॥
७
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श्रद्धासूक्तम्
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Shraddha
Suktam
श्रद्धासूक्तम्
ऋग्वेदसंहितायां
दशमं मण्डलं, १५१ एकपञ्चाशदुत्तरशततमं सूक्तम् ।
ऋषिः-
श्रद्धा कामायनी । देवता- श्रद्धा । छन्दः- १, ४, ५ अनुष्टुप्;
२
विराडनुष्टुप्; ३ निचृदनुष्टुप् । स्वरः- गान्धारः ।
श्र॒द्धया॒ग्निः
समि॑ध्यते श्र॒द्धया॑ हूयते ह॒विः ।
श्र॒द्धां
भग॑स्य मू॒र्धनि॒ वच॒सा वे॑दयामसि ॥ १०.१५१.०१
प्रि॒यं
श्र॑द्धे॒ दद॑तः प्रि॒यं श्र॑द्धे॒ दिदा॑सतः ।
प्रि॒यं
भो॒जेषु॒ यज्व॑स्वि॒दं म॑ उदि॒तं कृ॑धि ॥ १०.१५१.०२
यथा॑
दे॒वा असु॑रेषु श्र॒द्धामु॒ग्रेषु॑ चक्रि॒रे ।
ए॒वं
भो॒जेषु॒ यज्व॑स्व॒स्माक॑मुदि॒तं कृ॑धि ॥ १०.१५१.०३
श्र॒द्धां
दे॒वा यज॑माना वा॒युगो॑पा॒ उपा॑सते ।
श्र॒द्धां
हृ॑द॒य्य१॒॑याकू॑त्या श्र॒द्धया॑ विन्दते॒ वसु॑ ॥ १०.१५१.०४
श्र॒द्धां
प्रा॒तर्ह॑वामहे श्र॒द्धां म॒ध्यंदि॑नं॒ परि॑ ।
श्र॒द्धां
सूर्य॑स्य नि॒म्रुचि॒ श्रद्धे॒ श्रद्धा॑पये॒ह नः॑ ॥ १०.१५१.०५
स्वररहितम्
।
श्रद्धयाग्निः
समिध्यते श्रद्धया हूयते हविः ।
श्रद्धां
भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि ॥ १०.१५१.०१
प्रियं
श्रद्धे ददतः प्रियं श्रद्धे दिदासतः ।
प्रियं
भोजेषु यज्वस्विदं म उदितं कृधि ॥ १०.१५१.०२
यथा
देवा असुरेषु श्रद्धामुग्रेषु चक्रिरे ।
एवं
भोजेषु यज्वस्वस्माकमुदितं कृधि ॥ १०.१५१.०३
श्रद्धां
देवा यजमाना वायुगोपा उपासते ।
श्रद्धां
हृदय्य१याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु ॥ १०.१५१.०४
श्रद्धां
प्रातर्हवामहे श्रद्धां मध्यंदिनं परि ।
श्रद्धां
सूर्यस्य निम्रुचि श्रद्धे श्रद्धापयेह नः ॥ १०.१५१.०५
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Text title : shraddhAsUkta
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Category : veda, svara, sUkta
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Language : Sanskrit
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Subject :
philosophy/hinduism/religion
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Proofread by : Palak
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Source : https://sanskritdocuments.org/mirrors/rigveda/e-text.htm
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Indexextra : (Videos 1, 2,
Marathi, Details, Rigveda)
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Latest update : January 02, 2021
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