રામ કથા - 953
માનસ રામ કથા
સોનગઢ, ગુજરાત
શનિવાર, તારીખ 08/03/2025 થી રવિવાર, તારીખ 16/03/2025
મુખ્ય પંક્તિ
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥
1
Saturday, 08/03/2025
जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि
प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन
सत कोटि अपारा॥3॥
जिसने यह कथा पहले न सुनी हो, वह
इसे सुनकर आश्चर्य न करे। जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह जानकर आश्चर्य
नहीं करते कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है (रामकथा अनंत है)। उनके मन में
ऐसा विश्वास रहता है। नाना प्रकार से श्री रामचन्द्रजी के अवतार हुए हैं और सौ करोड़
तथा अपार रामायण हैं॥2-3॥
સનાતન ધર્મમાં કોઈ દીવાલ કે બારણા
નથી.
વેશના સાધુ બનવા કરતાં વૃત્તિના
સાધુ બનવું વધારે યોગ્ય છે.
આશીર્વાદ ગુરુ જ આપે તેમજ આશીર્વાદ
પણ ગુરુના જ લેવાય.
જેને બોધ થયેલો હોય એ કોઈનો વિરોધ
ન કરે.
સનાતન ધર્મ શાસ્વત છે.
મિથ્યા ભાષણ કરનારનો નાશ થાય છે.
કોઈ પણ વાત સત્યાત્મક હોવી જોઈએ,
શાસ્ત્રાત્મક હોવી જોઈએ તેમજ સ્નેહાત્મક હોવી જોઈએ.
ઊકરડામાં જો આંબો ઊગે તો તે ઊકરડો
રૂડો લાગે પણ જો કોઈના બગીચામાં બાવળ ઊગે તો તે બગીચો રૂડો ન લાગે.
સત્ય સાથે ઊભા રહેવામાં ઘણા લાયનવાદીઓ
પલાયનવાદી થઈ જાય છે.
આ રામ કથા માટે કેટલાક સમિધ છે.
ચોરી કરવી, ખોટું કરવું, વ્યસન કરવા વગેરે ખોટા માર્ગો છે.
कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥32 क॥
श्री रामजी के गुणों के समूह कुमार्ग,
कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दम्भ और पाखण्ड को जलाने के लिए वैसे ही हैं, जैसे
ईंधन के लिए प्रचण्ड अग्नि॥32 (क)॥
કથા ફક્ત વચનાત્મક જ ન હોવી જોઈએ
પણ રચનાત્મક હોવી જોઈએ. …… કૃષ્ણશંકર દાદા
2
Sunday, 09/03/2025
No hurry, no worry પણ કેવલ હરિહરિ
શાંતિ આપશે. ……. વિનોબા ભાવે
સિંહ રાશીમાં મ અને ટ આવે છે.
સિંહ રાશીના ૫ મ
1. માનસ
2. માળા
3. મારૂતિ
4. મહામંત્ર
5. મોરારી
બાપુ
સિંહ રાશી ના ૫ ટ
a. ટકો
b. ટીકો
- તિલક
c. ટીકા
d. ટીકા
e. તાંબલી
– ટ થી લખાય
रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥32 ख॥
रामचरित्र पूर्णिमा के चन्द्रमा
की किरणों के समान सभी को सुख देने वाले हैं, परन्तु सज्जन रूपी कुमुदिनी और चकोर के
चित्त के लिए तो विशेष हितकारी और महान लाभदायक हैं॥32 (ख)॥
રાકેશ નો અર્થ ચંદ્ર થાય.
कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥1॥
जिस प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री
शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्री शिवजी ने विस्तार से उसका उत्तर कहा, वह
सब कारण मैं विचित्र कथा की रचना करके गाकर कहूँगा॥1॥
जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि
आचरजु करै सुनि सोई॥
આપણામાં શ્રવણત્વ – શ્રવણ કરવાની
કળા – પેદા થવી જોઈએ.
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥
जिसने यह कथा पहले न सुनी हो, वह
इसे सुनकर आश्चर्य न करे। जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह जानकर आश्चर्य
नहीं करते कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है (रामकथा अनंत है)। उनके मन में
ऐसा विश्वास रहता है। नाना प्रकार से श्री रामचन्द्रजी के अवतार हुए हैं और सौ करोड़
तथा अपार रामायण हैं॥2-3॥
कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥4॥
कल्पभेद के अनुसार श्री हरि के सुंदर
चरित्रों को मुनीश्वरों ने अनेकों प्रकार से गया है। हृदय में ऐसा विचार कर संदेह न
कीजिए और आदर सहित प्रेम से इस कथा को सुनिए॥4॥
राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥33॥
श्री रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उनके
गुण भी अनन्त हैं और उनकी कथाओं का विस्तार भी असीम है। अतएव जिनके विचार निर्मल हैं,
वे इस कथा को सुनकर आश्चर्य नहीं मानेंगे॥3॥
વંદના પ્રકરણની ચોપાઈઓ …………
जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥4॥
राजा जनक की पुत्री, जगत की माता
और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं
मनाता हूँ, जिनकी कृपा से निर्मल बुद्धि पाऊँ॥4॥
પોતાની પ્રિય વ્યક્તિની વાત માનવી
જોઈએ.
જાનકી રામની વનમાં ન આવવાની વાત
માનતી નથી અને પરિણામે તેનું અપહરણ થાય છે.
સતી ભગવાન શંકરની વાત માનતી નથી
તેથી તે યજ્ઞ કુંડમાં હોમાઈ જાય છે અને નાશ પામે છે.
મંદોદરીની વાત રાવણ માનતો નથી તેથી
તેનો સર્વ નાશ થાય છે.
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥
राजीवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥5॥
फिर मैं मन, वचन और कर्म से कमलनयन,
धनुष-बाणधारी, भक्तों की विपत्ति का नाश करने और उन्हें सुख देने वाले भगवान् श्री
रघुनाथजी के सर्व समर्थ चरण कमलों की वन्दना करता हूँ॥5॥
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न॥18॥
जो वाणी और उसके अर्थ तथा जल और
जल की लहर के समान कहने में अलग-अलग हैं, परन्तु वास्तव में अभिन्न (एक) हैं, उन श्री
सीतारामजी के चरणों की मैं वंदना करता हूँ, जिन्हें दीन-दुःखी बहुत ही प्रिय हैं॥18॥
ભગવાન આદિ શંકરાચાર્યનાં ૬ અમૃત
……….
1. આદર
સહિત ક્ષમા આપવી.
2. સંતોષ
– જીવનમાં જે મળ્યું છે તેનાથી સંતોષ રાખવો.
3. દયા
– નાના પ્રત્યે દયા રાખવી, નાનાનું ધ્યાન રાખવું.
4. આર્જવ
– સરલતા, વહેવારમાં સરળતા રાખવી.
5. શાંતિ
– ગમે તેવી ઘટના બને તો પણ શાંત રહેવું.
6. સંયમ
– પોતાની ઈન્દ્રીયો ઉપર વિવેક પૂર્ણ રીતે સંયમ રાખવો.
નામ વંદના કરતાં તુલસીદાસજી કહે
છે કે ………………..
बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥
मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम'
की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात्
'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों
का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥1॥
महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥2॥
जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री
शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा
को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥2॥
जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥3॥
आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के
प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम ('मरा', 'मरा') जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी के
इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम सहस्र नाम के समान है, पार्वतीजी सदा अपने पति (श्री
शिवजी) के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं॥3॥
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥1॥॥
अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव
(बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण
होता है। उसी (परम कल्याणकारी) राम नाम का स्मरण करके और श्री रघुनाथजी को मस्तक नवाकर
मैं रामजी के गुणों का वर्णन करता हूँ॥1॥
રામને બજો, રામને ગાઓ અને રામની
કથા સાંભળો.
જેના હાથમાં બેરખો હશે તેની પાસે
યમ નહીં આવે, ભલે પછી તે વ્યક્તિ બેરખો રાખતો પણ ફેરવતો ન હોય.
જેને બહું આવડતું હોય તે બહું ભૂલો
કરે.
હરિનામ પરમાત્માની શ્રેષ્ઠ પૂજા
છે.
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाखा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥
श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने
मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में
देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुंदर 'रामचरित मानस' नाम रखा॥6॥
कहउँ कथा सोइ सुखद सुहाई। सादर सुनहु सुजन मन लाई॥7॥
मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा
को कहता हूँ, हे सज्जनों! आदरपूर्वक मन लगाकर इसे सुनिए॥7॥
ન ધરા સુધી, ન ગગન સુધી, નહીં ઉન્નતિ, ન પતન સુધી,
અહીં આપણે તો જવું હતું, ફક્ત એકમેકના મન સુધી… ગની દહીંવાળા
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥4॥
एक राम तो अवध नरेश दशरथजी के कुमार
हैं, उनका चरित्र सारा संसार जानता है। उन्होंने स्त्री के विरह में अपार दुःख उठाया
और क्रोध आने पर युद्ध में रावण को मार डाला॥4॥
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥46॥
हे प्रभो! वही राम हैं या और कोई
दूसरे हैं, जिनको शिवजी जपते हैं? आप सत्य के धाम हैं और सब कुछ जानते हैं, ज्ञान विचार
कर कहिए॥46॥
जैसें मिटै मोर भ्रम भारी। कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥
जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥1॥
हे नाथ! जिस प्रकार से मेरा यह भारी
भ्रम मिट जाए, आप वही कथा विस्तारपूर्वक कहिए। इस पर याज्ञवल्क्यजी मुस्कुराकर बोले,
श्री रघुनाथजी की प्रभुता को तुम जानते हो॥1॥
रामभगत तुम्ह मन क्रम बानी। चतुराई तुम्हारि मैं जानी॥
चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा॥2॥
तुम मन, वचन और कर्म से श्री रामजी
के भक्त हो। तुम्हारी चतुराई को मैं जान गया। तुम श्री रामजी के रहस्यमय गुणों को सुनना
चाहते हो, इसी से तुमने ऐसा प्रश्न किया है मानो बड़े ही मूढ़ हो॥2॥
तात सुनहु सादर मनु लाई। कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला॥3॥
हे तात! तुम आदरपूर्वक मन लगाकर
सुनो, मैं श्री रामजी की सुंदर कथा कहता हूँ। बड़ा भारी अज्ञान विशाल महिषासुर है और
श्री रामजी की कथा (उसे नष्ट कर देने वाली) भयंकर कालीजी हैं॥3॥
Monday, 10/03/2025
પહેલો પ્રેમ પત્ર રૂક્ષ્મણીએ કૃષ્ણને
લખ્યો છે.
જીવ, જગત અને જગદીશ છે. … પાંડુરંગ દાદા
કરોડપતિ વ્યક્તિની ગૃહીણીના ગળામાં
પિત્તળનો હાર પણ સાચો લાગે (સોનાનો છે તેવો લાગે) પણ ગરીબ વ્યક્તિની ગૃહિણીના ગળામાં
સોનાનો હાર પણ નકલી લાગે.
આપણે પરમના આશ્રિત હોવાને નાતે આપણે
પણ સાચા લગવા જોઈએ.
રામાયણનો પૂર્વ ભાગ વેદાંત છે, મધ્ય
ભાગ વિશ્વાસ છે અને અંતનો ઉત્તરકાંડ પછીનો ભાગ વિજ્ઞાન છે.
પ્રકૃતિ, સંસ્કૃતિ અને સંસૃતિ -
સંસારની સેવા કરવાની છે.
બ્રહ્મનિષ્ઠ એ છે જે જપ નિષ્ઠ હોય
– નિરંતર જપ કરતો હોય, જે તપ નિષ્ઠ હોય – જે સહન કરનાર હોય અને જે ખપ નિષ્ઠ હોય.
ખપ નિષ્ઠ એટલે જરુરિયાત પુરતું જ
રાખવું. LIVING EITH LESS બનવું.
દુનિયા પાસે રાંક ન બનવું પણ આપણા
માંહલ્યાને રાંક રાખવો.
સંગ્રહ સંરક્ષક નથી પણ ઉપાધિ છે.
જપ પાંચ પ્રકારે થાય.
દરેક શ્વાસે જપ કરવા
હ્ર્દયની ધડકન સાથે જપ કરવા
ચાલતી વખતે ડલએ પગલે જપ કરવા
આંખના પલકારે જપ કરવા
મણકે મણકે નામ જપ કરવા.
પાત્ર, દેશ અને સમય જોઈને તે પ્રમાણે
સહન કરવું.
4
Tuesday, 11/03/2025
मुण्डकोपनिषद् verse १२
परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृतः कृतेन।
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्
॥
The seeker of the Brahman,
having put to the test the worlds piled up by works, arrives at world-distaste,
for not by work done is reached He who is Uncreated. For the knowledge of That,
let him approach, fuel in hand, a Guru, one who is learned in the Veda and is
devoted to contemplation of the Brahman.
ब्रह्म-जिज्ञासु (ब्राह्मण) कर्म-संचित
लोकों की परीक्षा करके संसार के फीकेपन (निर्वेद) का अनुभव करता है, क्योंकि कर्मों
को करने से ही 'उस' की उपलब्धि नहीं हो सकती जो 'अकृत'३ है। उस 'परतत्त्व' के ज्ञान
के लिए वह (ब्राह्मण) हाथ में समिधा धारण करके वेदविद् (श्रोत्रिय) एवं ब्रह्मनिष्ठ
गुरु के पास जाये । ३ अथवा, '''वह' जो असृष्ट है, सृष्ट पर आधारित नहीं है।" शाब्दिक
अनुवादː ''कृत के द्वारा (अथवा, बनाये गया के द्वारा) 'अकृत' ('यह'
जो असृष्ट है) नहीं।"
કથા શ્રવણ/ગાયનના ૩ હેતું છે.
1. સ્વાંતઃ
સુખાય
2. પોતાની
વાણીને પવિત્ર કરવા માટે
3. પોતાના
મનને બોધ મળે તે માટે
કથાના શ્રોતા કેવા હોવા જોઈએ?
·
કથાનો શ્રોતા આર્ત હોવો જોઈએ.
·
કથા શ્રવણની તિવ્રતા – જિજ્ઞાસા – પીપાસા હોવી જોઈએ.
કથામાં કોણ નિમિત્ત બને?
द्विज द्रोहिहि न सुनाइअ कबहूँ। सुरपति सरिस होइ नृप जबहूँ।।
राम कथा के तेइ अधिकारी जिन्ह
कें सत संगति अति प्यारी।।3।।
ब्राह्मणों के द्रोही को, यदि वे
देवराज (इन्द्र) के समान ऐश्वर्यवान् राजा भी हो, तब भी यह कथा कभी नहीं सुनानी चाहिये।
श्रीरामजीकी कथाके अधिकारी वे ही हैं जिनको सत्संगति अत्यन्त प्रिय है।।3।।
કથાનો સાર શું છે?
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति
पावन पुरान श्रुति सारा॥
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥
इसमें श्री रघुनाथजी का उदार नाम
है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, कल्याण का भवन है और अमंगलों को
हरने वाला है, जिसे पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं॥1॥
एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा।।
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत
सुनिअ राम गुन ग्रामहि।।3।।
[तुलसीदासजी कहते हैं-] इस कलिकाल
में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साध नहीं है। बस, श्रीरामजीका ही
स्मरण करना, श्रीरामजी का ही गुण गाना और निरन्तर श्रीरामजीके ही गुणसमूहोंको सुनना
चाहिये।।3।।
કોઈનું આંચકી લીધેલું અમૃત અમર કરશે
પણ અભય નહીં કરે.
આપણું, મન, શરીર, વાણી, આંખો, વૃત્તિઓ
વગેરે ચંચળ હોય છે.
जे ब्रह्म अजमद्वैतमनुभवगम्य मनपर ध्यावहीं।।
ते कहहुँ जानहुँ नाथ हम तव सगुन जस नित गावहीं।।
करुनायतन प्रभु सदगुनाकर देव यह बर मागहीं।
मन बचन कर्म बिकार तजि तव चरन
हम अनुरागहीं।।6।।
ब्रह्म अजन्म है, अद्वैत है केवल
अनुभवसे ही जाना जाना जाता है और मन से परे है-जो [इस प्रकार कहकर उस] ब्रह्म का ध्यान
करते हैं, वे ऐसा कहा करें और जाना करें, किन्तु हे नाथ ! हम तो नित्य आपका सगुण यश
ही गाते हैं। हे करुणा के धाम प्रभो ! हे सद्गुणोंकी खान ! हे देव ! हम यह बर माँगते
हैं कि मन, वचन और कर्म से विकारों को त्यागकर आपके चरणोंमें ही प्रेम करें।।6।।
5
Wednesday, 12/03/2025
ડાહ્યા માણસે પ્રતિજ્ઞા ન કરવી પણ
પ્રતિક્ષા કરવી, શિવ સંકલ્પ કરવો.
રામ નિશિચરનો નાશ કરવાની પ્રતિજ્ઞા
કરે છે.
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
श्री रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया
कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा-जाकर
उनको (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया॥9॥
नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4॥
हे नाथ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ।
हे देवताओं के रक्षक! मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है। मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव
से ही मुझे पाप प्रिय हैं, जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज स्नेह होता है॥4॥
नि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥2॥
फिर विभीषणजी ने, श्री जानकीजी जिस
प्रकार वहाँ (लंका में) रहती थीं, वह सब कथा कही। तब हनुमान्जी ने कहा- हे भाई सुनो,
मैं जानकी माता को देखता चाहता हूँ॥2॥
હનુમાન વિભીષણને ભાઈ કહી સંબોધે
છે તેથી વિભીષણ હનુમાનનો ભાઈ છે. હનુમાન ભરતના ભાઈ છે અને ભરત રામના ભાઈ છે. આમ વિભીષણ
પણ રામના ભાઈ થાય છે.
તેથી રામ વિભીષણનો નાશ નથી કરતા
અને આમ તેનો નાશ ન કરવામાં રામની નિશિચરનો નાશ કરવાની પ્રતિજ્ઞાનો ભંગ થતો નથી.
બધાનો સ્વીકાર કરવા પોતે અસંગ બનવું
પડે. આકાશ અસંગ છે કારણ કે આકાશમાં પૃથ્વી, ગ્રહો, તારા, બ્રહાંડ વગેરે સમાવિષ્ઠ છે.
ભક્તિ એટલે સબંધ, પરમાત્મા સાથે
સંબંધ રાખવો.
6
Thursday, 13/03/2025
સત્ય બોલવું પણ પોતાનું સ્વાધ્યાય
ન છોડવું.
કથા શ્રવણ/ગાયન સ્વાધ્યાય છે, રિયાઝ
છે.
7
Friday, 14/03/2025
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा ॥
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥4॥
हे वीर! साँवले और गोरे शरीर वाले
आप कौन हैं, जो क्षत्रिय के रूप में वन में फिर रहे हैं? हे स्वामी! कठोर भूमि पर कोमल
चरणों से चलने वाले आप किस कारण वन में विचर रहे हैं?॥4॥
मृदुल मनोहर सुंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता ॥
की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायन की तुम्ह दोऊ॥5॥
मन को हरण करने वाले आपके सुंदर,
कोमल अंग हैं और आप वन के दुःसह धूप और वायु को सह रहे हैं क्या आप ब्रह्मा, विष्णु,
महेश- इन तीन देवताओं में से कोई हैं या आप दोनों नर और नारायण हैं॥5॥
जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।
की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार॥1॥
अथवा आप जगत् के मूल कारण और संपूर्ण
लोकों के स्वामी स्वयं भगवान् हैं, जिन्होंने लोगों को भवसागर से पार उतारने तथा पृथ्वी
का भार नष्ट करने के लिए मनुष्य रूप में अवतार लिया है?॥1॥
ગાંધીજીએ સાત પ્રકારનાં સામાજિક
પાપ ગણાવ્યાં છે.
1 સિદ્ધાંત વગરનું રાજકારણ સામાજિક
પાપ છે. અમુક સમયે પોતાના સ્વાર્થ માટે સિદ્ધાંતોને બાજુએ મુકી રાજકારણ કરવું, નિર્ણયો
લેવા સામાજિક પાપ છે.
2 પરિશ્રમ વિનાની સંપત્તિ સામાજિક
પાપ છે. વગર મહેનતે કઈક મેળવી લેવું સામાજિક પાપ છે.
કઈ કર્યા વગર સન્માન થાય તે પણ સામાજિક
પાપ છે.
3 આંતર સુખ વગરના બહિર મોજ શોખ સામાજિક
પાપ છે. તેથી જ LIVING WITH LESS આવ્યું છે.
કોઈ પણ વ્યક્તિએ પોતાના પરિવારમાં
બોજ ન બનવું જોઈએ.
4 ચારિત્ર્ય વિનાનું જ્ઞાન સામાજિક
પાપ છે.
5 નીતિ વગરનો વેપાર સામાજિક પાપ છે.
6 સંવેદના/માનવતા વિનાનું વિજ્ઞાન
સામાજિક પાપ છે.
7 ત્યાગ વિનાની પૂજા સામાજિક પાપ છે.
મોરારી બાપુના વિચાર પ્રમાણે સામાજિક
પાપ પાંચ પ્રકારનાં હોય છે.
1. બૌધિક
વ્યક્તિઓની ધર્મ પ્રત્યેની ઉદાસિનતા સામાજિક પાપ છે.
2. ખોટી
ઘેલછા સામાજિક પાપ છે.
3. કોઈ
પણ ધર્મની કટ્ટરતા સામાજિક પાપ છે.
4. દાંભિક
દાનવીરો સામાજિક પાપ છે. પોતાના નામ અને પ્રતિષ્ઠા માટે દાન આપનાર વ્યક્તિઓ સામાજિક
પાપ છે.
5. ધર્માનતરમાં
રહેનારા સામાજિક પાપ છે.
દરેકના ઘરમાં સાત વસ્તુ – સાત રત્નો
હોવા જોઈએ.
1. દરેકને
આંગણાવાળું ઘર હોવું જોઈએ.
2. દરેકને
પોતાના ઘરના સભ્યો માટે આરોગ્યપ્રદ આહાર મળવો જોઈએ.
3. દરેકને
લોક મર્યાદા સચવાય તે માટે સ્વચ્છ અને સાદા વસ્ત્રો મળવાં જોઈએ.
4. દરેકને
ભારતીય પરંપરાનું શિક્ષણ મળવું જોઈએ.
5. દરેકને
યોગ્ય પ્રકારની આરોગ્ય સુવિધા મળવી જોઈએ.
6. દરેકને
પોતાનાં કાર્ય કરવા માટે સારાં ઓજાર મળવાં જોઈએ.
7. દરેકને
સાત્વિક અને શીલ પ્રધાન મનોરંજન મળે તેવાં ઉપકરણો મળવાં જોઈએ.
પહેલો છેડો ધર્મ અને આખરી છેડો મોક્ષ
હોવો જોઈએ.
બ્રહ્મ દૂરથી દૂર અને નજીક થી નજીક
છે.
રવિને ભેટવા કરતાં મજા છે દૂર રહેવામાં.
પાયો પરમ વિશ્રામ એ જ મોક્ષ છે.
હનુમાનજીને પાંચ મુખ છે, જેમ કે
વરાહ મુખ, હૈડગ્રીવ મુખ, નૃસિંગ મુખ, ગરુડ મુખ અને વાનર મુખ.
આપણી છ ઋતુઓ છે.
1. વર્ષા
ઋતુ જે ભજનની ઋતુ છે.
2. શરદ
ઋતુ જે મિલનની ઋતુ છે.
3. હેમંત
ઋતુ જે લગ્નની ઋતુ છે.
4. ગ્રિષ્મ
ઋતુ તપસ્યાની ઋતુ છે.
5. શિશિર
ઋતુ હપ તમની ઋતુ છે.
6. વસંત
ઋતુ શ્રીંગારની ઋતુ છે.
સતી વૃંદાના સતીપણાને લીધે જલંધર
રાક્ષસનું મૃત્યુ થતું નથી. અહીં ધર્મના કવચના આવરણમાં અધર્મ પલપે છે.
8
Saturday/ 15/03/2025
સંકટના ૮ પ્રકાર છે.
1. ધર્મ
સંકટ – મહારાજા દશરથના જીવનમાં ત્રણ વખત ધર્મ સંકટ આવે છે.
I.
દશરથ રાજા શ્રવણને બાણ મારે છે અને તેનું મૃત્ય થાય છે ત્યારે
શ્રવણના અંધ માબાપ રાજાને શ્રાપ આપે છે તે વખતનું સંકટ.
II.
વિશ્વામિત્ર જ્યારે રામ ને માગે છે ત્યારે દશરથ રાજા રામને
ન આપવાનું કહે છે તે વખતનું સંકટ.
III.
કૈકેયી બે વરદાન માગે છે તે વખતનું સંકટ.
सुत सनेहु इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु।
सकहु
त आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु॥40॥
इधर तो पुत्र का स्नेह है और उधर वचन (प्रतिज्ञा), राजा इसी धर्मसंकट
में पड़ गए हैं। यदि तुम कर सकते हो, तो राजा की आज्ञा शिरोधार्य करो और इनके कठिन क्लेश को मिटाओ॥40॥
2. પ્રાણ
સંકટ – સુગ્રીવને પ્રાણ સંકટ આવે છે.
3. દેહ
સંકટ – જટાયુને દેહ સંકટ આવે છે.
4. પારિવારિક
સંકટ – રાજા પ્રતાપભાનુને પારિવારિક સંકટ આવે છે.
5. સામાજિક
સંકટ – રાવણ જ્યારે વૈદિક બ્રાહ્મણો વગેરેનો દેશ નિકાલ કરે છે તે સામાજિક સંકટ છે.
6. રાષ્ટ્ર
સંકટ – વાલીને રાષ્ટ્ર સંકટ આવે છે.
7. વિશ્વ
સંકટ – રાવણ દેવતાઓને બંધક બનાવે છે તે વિશ્વ સંકટ છે.
8. ભજન
સંકટ – જ્યારે એવી પરિસ્થિતિ આવે કે આપણું ભજન – હરિ સ્મરણ અટકી જાય. જાનકીને લંકામાં
આવું સંકટ આવે છે.
रामो विग्रहवान् धर्मः साधुः सत्यपराक्रमः।
राजा सर्वस्य लोकस्य देवानाम् इव वासवः॥
राम धार्मिकता के अवतार हैं, वे
सद्गुण के अवतार हैं, सत्यवादी हैं और अमोघ पराक्रमी हैं। वे संपूर्ण मानवता के शासक
हैं, वैसे ही जैसे इंद्र देवताओं के शासक हैं।
अभिवादनशीलस्य नित्यं ब्रद्धोपसेविना , चत्वारि तस्य वर्ध्यंते आयु: विद्या
यशो बलम ।
जो लोग सुशील और विनम्र होते हैं,
जो लोग बड़ों का अभिवादन करते हैं, जो लोग अपने बुज़ुर्गों की सेवा करते हैं, ऐसे लोगों
के आयु, विद्या, यश, और बल ये चार गुण अपने-आप बढ़ते हैं ॥
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Sunday, 16/03/2025
સંતોષ – પરમ વિશ્રામ સંગ્રહથી ન
આવે પણ ત્યાગથી જ આવે.
जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद।
करहिं जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि
सुछंद॥134॥
प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने यथायोग्य सम्मान
करके मुनि मंडली को विदा किया। (श्री रामचन्द्रजी के आ जाने से) वे सब अपने-अपने
आश्रमों में अब स्वतंत्रता के साथ योग, जप, यज्ञ और तप करने लगे॥134॥
श्रद्धापत्नी सत्यं यजमानः॥
श्रद्धासत्यं तदित्युत्तमं मिथुनम्॥
श्रद्धया सत्येन मिथुनेन स्वर्गाल्लोकान् जयतीति॥
Faith is wife, and truth is
husband; this couple is the best ever, by this couple people can go beyond even
svarga very easily.
बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन
जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥
मैं उन वाल्मीकि मुनि के चरण कमलों
की वंदना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना की है, जो खर (राक्षस) सहित होने पर भी
(खर (कठोर) से विपरीत) बड़ी कोमल और सुंदर है तथा जो दूषण (राक्षस) सहित होने पर भी
दूषण अर्थात् दोष से रहित है॥14 (घ)॥
जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥
जिसने यह कथा पहले न सुनी हो, वह
इसे सुनकर आश्चर्य न करे। जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह जानकर आश्चर्य
नहीं करते कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है (रामकथा अनंत है)। उनके मन में
ऐसा विश्वास रहता है। नाना प्रकार से श्री रामचन्द्रजी के अवतार हुए हैं और सौ करोड़
तथा अपार रामायण हैं॥2-3॥
यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं सुकविना श्रीशम्भुना दुर्गमं
श्रीमद्रामपदाब्जभक्तिमनिशं प्राप्त्यै तु रामायणम्।
मत्वा तद्रघुनाथनामनिरतं स्वान्तस्तंमःशान्तये
भाषाबद्धमिदं चकार तुलसीदासस्तथा मानसम्।।1।।
श्रेष्ठ कवि भगवान् शंकरजीने पहले
जिस दुर्गम मानस-रामायणकी, श्रीरामजीके चरणकमलोंके नित्य-निरन्तर [अनन्य] भक्ति प्राप्त
होनेके लिये रचना की थी, उस मानस-रामायणको श्रीरघुनाथजीके नाममें निरत मानकर अपने अन्तः
करणके अन्धकारको मिटानेके लिये तुलसीदासने इस मानसके रूपमें भाषाबद्ध किया।।1।।
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
अनेक पुराण, वेद और (तंत्र) शास्त्र
से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की
कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत
करता है॥7॥