પૂજ્ય મોરારિ
બાપુએ “માનસ પિતૃ દેવો ભવ” ની સાપુતારામાં ચાલતી રામ કથાના સાતમા દિવસે પિતૃ સ્તોત્રનું ગાન કર્યું હતું. આ પિતૃ સ્તોત્ર
અને તેનો ભાવાર્થ સૌજન્ય સહ અત્રે પ્રસ્તુત છે. આ સ્તોત્ર અને તેના ભાવાર્થની લિંક
પણ અત્રે દર્શાવેલ છે.
पुराणोक्त पितृ
स्तोत्र
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अर्चितानाममूर्तानां
पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा
तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां
च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
तान् नमस्याम्यहं
सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।
नक्षत्राणां
ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च
तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।
देवर्षीणां
जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य
सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।
प्रजापतं कश्यपाय
सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च
सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
नमो गणेभ्यः
सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे
नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान्
पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा
सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान्
नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं
विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि
ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव
तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो
योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते
मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।
अर्थ:
===
रूचि बोले
- जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न
हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि
देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने
वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि
राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को
मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों,
ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को
मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
जो देवर्षियों
के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को
मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप,
सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों
में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को
प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के
आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण
जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप
अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज
में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा
जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर
प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।
विशेष - मार्कण्डेयपुराण
में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’
कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय
भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।
३.भगवान भोलेनाथ
की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न
मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ दोष संकट बाधा आदि शांत होकर
शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :
पितृ स्तोत्र
[ Pitru Stotram ] :
पितृ स्तोत्र
के फायदे : जिस भी जातकों के जन्मकुंडली में पितृ दोष है तो आपको पितृ स्तोत्र का पाठ
करना बहुत लाभकारी व् हितकारी होगा ! पितृ स्तोत्र का पाठ हमें श्राद्ध पक्ष या फिर
हम अपने पितरो की पुण्य तिथि पर ब्राह्मण को भोजन करवाते समय पितृ स्तोत्र का पाठ किया जाना चाहिये ! यही आप पितृ दोष के कारन
परेशान चल रहे हो या आपको कार्य में रुकावट आ रही हो तो पितृ स्तोत्र का हर दिन पाठ मात्र करने से आप पितृ दोष में कमी
ला सकते है इसका पाठ हर रोज कीजिये !! यदि आप हर दिन इसका 11 बार पाठ करते हो तो यह
विशेष रूप से बहुत जल्द असर दिखाता हैं !! Online Specialist Astrologer Acharya
Pandit Lalit Sharma द्वारा बताये जा रहे पितृ स्तोत्र का पाठ करके आप भी अपने जीवन
में फायदा व् लाभ उठा सकते है !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा
माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श
लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव
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पितृ देव स्तोत्र
!! Pitra Dev Stotra
अर्चितानाममूर्तानां
पितृणां दीप्ततेजसाम् । नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां
च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा । सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां
च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा । तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
नक्षत्राणां
ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा । द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां
जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् । अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
प्रजापते: कश्पाय
सोमाय वरुणाय च । योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
नमो गणेभ्य:
सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु । स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान्
पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा । नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान्
नमस्यामि पितृनहम् । अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
ये तु तेजसि
ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो
योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।
अर्थ : रूचि
बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न
हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच,
सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं
प्रणाम करता हूँ। जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक
हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ। नक्षत्रों, ग्रहों,
वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ
जोड़कर प्रणाम करता हूँ। जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा
सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। प्रजापति,
कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम
करता हूँ। सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है।
मैं योगदृष्टिसम्पन्न
स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ। चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी
पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता
हूँ। अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि
और सोममय है। जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में
दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो
को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी
पितर मुझपर प्रसन्न हों ।
विशेष – मार्कण्डेयपुराण
में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’
कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय
भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है ।~
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